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सूरा-अन-नहल | Surah 16

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सूरा-अन-नहल

| मक्का कालीन | आयत 128 | 

मधुमक्खी

सूरा-अन-नहल | Surah 16

अल्लाह के नाम से जो बहुत मेहरबान, रहम करने वाला है।

आपहुँचा अल्लाह का हुक्म सो उस की जल्दी न करो, वह पाक है और उस से बरतर जो वह (अल्लाह का) शरीक बनाते हैं। (1) 

वह फ़रिश्ते अपने हुक्म से वहि के साथ नाज़िल करता है अपने बन्दों में से जिस पर वह चाहता है कि तुम डराओ कि मेरे सिवा कोई माबूद नहीं, पस मुझ ही से डरो। (2) 

उस ने पैदा किए आस्मान और ज़मीन हिक्मत के साथ, वह उस से बरतर है जो वह शरीक करते हैं। (3) 

उस ने इन्सान को पैदा किया नुत्फ़े से, फिर वह नागहां खुला झगड़ालू हो गया। (4)

और उस ने चौपाए पैदा किए तुम्हारे लिए, उन में गर्म सामान (गर्म कपड़े) और फ़ाइदे हैं, और उन में से (वाज़ को) तुम खाते हो। (5) 

और तुम्हारे लिए उन में खूबसूरती और शान है जिस वक्त शाम को चरा कर लाते हो, और जिस वक्त सुबह को चराने ले जाते हो। (6)

और वह तुम्हारे बोझ उन शहरों तक ले जाते हैं जहां जानें हलकान किए बगैर तुम पहुंचने वाले न थे। बेशक तुम्हारा रब इतिहाई शफ़ीक़, निहायत रह्म वाला है। (7)

और घोड़े और खच्चर और गधे ताकि तुम उन पर सवार हो और जीनत के लिए (पैदा किए) और वह पैदा करता है जो तुम नहीं जानते| (8)

और सीधी राह अल्लाह तक पहुँचती है और उन में से (कोई) राह टेढ़ी है, और अगर वह । चाहता तो तुम सब को हिदायत द देता। (9) 

वही है जिस ने आस्मान से पानी बरसाया, उस से तुम्हारे लिए पीने को है, और उस से दरख़त (सैराब होते) हैं और जिन में तुम (मवेशी) चराते हो, (10) 

वह उस से तुम्हारे लिए उगाता है खेती, और जैतून, और खजूर, और अंगूर और हर किस्म के फल, बेशक उस में गौर ओ फ़िक्र करने वालों के लिए निशानियां हैं। (11)

और उस ने तुम्हारे लिए मुसख्खर किया रात और दिन को, और सूरज और चाँद को, और सितारे मुसख्खर (काम में लगे हुए) हैं। उस के हुक्म से, बेशक उस में अक्ल से काम लेने वाले लोगों के लिए निशानियां हैं। (12)

और तुम्हारे लिए जमीन में पैदा की मुख्तलिफ़ (चीजें) रंग ब रंग की, बेशक उस में सोचने वाले लोगों के लिए निशानियां हैं। (13)

और वही है जिस ने दर्या को मुसख्खर किया ताकि तुम उस से (मछलियों का) ताज़ा गोश्त खाओ, और उस से जेवर निकालो जो तुम पहनते हो, और तुम देखते हो उस में कतियां पानी को चीर कर चलती हैं और ताकि तुम उस के फज्ल से (रोजी तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो। (14) 

और उस ने जमीन पर पहाड़ रखे कि तुम्हें ले कर (जमीन) झुक न पड़े, और दर्या और रास्ते (बनाए) ताकि तुम राह पाओ। (15)

और अलामतें (बनाईं) और वह सितारों से रास्ता पाते हैं। (16) 

क्या जो (अल्लाह) पैदा करता है उस जैसा है जो पैदा नहीं करता, पस क्या तुम गौर नहीं करते? (17) 

और अगर तुम अल्लाह की नेमतें शुमार करो तो उन्हें पूरा न गिन सकोगे, बेशक अल्लाह बख्शने वाला, निहायत मेहबान है। (18)

और अल्लाह जानता है जो तुम छुपाते हो और जो तुम जाहिर करते हो। (19) 

और वह जिन्हें पुकारते हैं अल्लाह के सिवा वह कुछ भी पैदा नहीं करते बल्कि वह खुद पैदा किए गए हैं। (20) 

मुर्दे हैं, जिन्दा नहीं, (बेजान है), और वह नहीं जानते वह कब उठाए जाएंगे। (21) 

तुम्हारा माबूद, माबूदे यकता है, पस जो लोग ईमान नहीं रखते आखिरत पर उन के दिल मुन्किर हैं, और वह मगरूर है। (22) 

यकीनी बात है अल्लाह जानता है जो वह छुपाते हैं और जो वह जाहिर करते हैं। बेशक वह तकब्बुर करने वालों को पसन्द नहीं करता। (23)

और जब उन से कहा जाए क्या नाज़िल किया तुम्हारे रब ने? तो वह कहते हैं पहले लोगों की कहानियां हैं। (24) 

अन्जामे कार वह अपने पूरे बोझ उठाएंगे क़ियामत के दिन, और कुछ उन के बोझ जिन्हें वह बगैर इल्म के गुमराह करते हैं, खूब सुन लो, बुरा है जो वह लादते हैं। (25) 

जो उन से पहले थे उन्हों ने मक्कारी की पस उन की इमारत पर अल्लाह (का अजाब) बुन्यादों से आया, पस गिर पड़ी उन पर छत ऊपर से, और उन पर अजाब आया जहां से उन्हें खयाल न था। (26)

फिर वह उन्हें कियामत के दिन रुस्वा करेगा, और वह कहेगा कहां हैं मेरे वह शरीक जिन के बारे में तुम झगड़ते थे, इल्म वाले कहेंग बेशक आज के दिन रुसवाई और बुराई है काफ़िरों पर। (27) 

वह जिन की जान फ़रिश्ते (उस हाल में निकालते हैं कि वह अपने ऊपर जुल्म कर रहे होते हैं, फिर वह इताअत का पैगाम डालेंगे कि हम कोई बुराई न करते थे, हां हां! अल्लाह जानने वाला है जो तुम करते थे। (28) 

सो तुम जहन्नम के दरवाजों में दाखिल हो, उस में हमेशा रहोगे, अलबत्ता तकब्बुर करने वालों का बुरा ठिकाना है। (29) 

और परहेज़गारों से कहा गया तुम्हारे रब ने क्या उतारा? वह बोले बहतरीन (कलाम), जिन लोगों ने भलाई की उन के लिए इस दुनिया में भलाई है और आखिरत का घर (सब से) बेहतर है, और क्या खूब है। परहेजगारों का घर। (30) 

हमेशगी के बागात, जिन में वह दाखिल होंगे, उन के नीचे नहरें बहती हैं, वहां जो वह चाहेंगे उन के लिए होगा, अल्लाह परहेज़गारों को ऐसी ही जज़ा देता है। (31) 

वह जिन की जान फ़रिश्ते (उस हाल में) निकाले हैं कि वह पाक होते हैं, वह (फ़रिश्ते) कहते हैं तुम पर सलामती हो। (32) 

अपने आमाल के बदले जन्नत में दाखिल हो| क्या वह सिर्फ (यह) इन्तिज़ार करते हैं कि उन के पास फ़रिश्ते आएं, या तेरे रब का हुक्म आए, ऐसा ही उन लोगों ने किया जो उन से पहले थे, और अल्लाह ने उन पर जुल्म नहीं किया बल्कि वह अपनी जानों पर (खुद) जुल्म करते थे। (33) 

पस उन्हें पहुंचीं उन के आमाल की बुराइयां, और उन्हें घेर लिया उस (अजाब) ने जिस का वह मज़ाक उड़ाते थे। (34) 

और कहा जिन लोगों ने शिर्क किया (मुश्रिकों ने) अगर अल्लाह चाहता तो न हम परस्तिश करते और न हमारे बाप दादा उस के सिवाए किसी शै की, और हम उस के हुक्म के सिवा कोई शै हराम न ठहराते, उसी तरह उन लोगों ने किया जो उन से पहले थे, पस क्या है रसूलों के जिम्मे? मगर साफ़ साफ़ पहुंचा देना। (35) 

और तहक़ीक़ हम ने हर उम्मत में भेजा कोई न कोई रसूल कि अल्लाह की इबादत करो और सरकश से बचो, सो उन में से किसी को अल्लाह ने हिदायत दी, और उन में से बाज़ पर गुमराही साबित हो गई, पस जमीन में चलो फिरो, फिर देखो कैसा अन्जाम हुआ झूटलाने वालों का? (36) 

अगर तुम उन की हिदायत के लिए ललचाओ तो बेशक अल्लाह हिदायत नहीं देता जिसे वह गुमराह करता है, और उन का कोई मददगार नहीं। (37) 

और उन्हों ने अल्लाह की कसम खाई अपनी सख्त (पुर जोर) क़सम कि जो मर जाता है उसे अल्लाह (रोजे कियामत) नहीं उठाएगा। क्यों नहीं? उस पर उस का वादा सच्चा है, लेकिन अक्सर लोग नहीं जानते, (38) 

ताकि उन के लिए जाहिर कर दे जिस में वह इखतिलाफ़ करते हैं, और ताकि काफ़िर जान लें कि वह झूटे थे। (39) 

जब हम किसी चीज़ का इरादा करें तो हमारा फरमाना इस के सिवा नहीं कि हम उस को कहते हैं, कि “हो जा” तो वह हो जाता है। (40) 

और जिन लोगों ने अल्लाह के लिए हिजत कि उस के बाद के उन पर जुल्म किया गया, हम उन्हें ज़रूर जगह देंगे दुनिया में अच्छी और बेशक आख़िरत का अजर बहुत बड़ा है, काश वह (हिज्जत से रह जाने वाले) जानते। (41) 

जिन लोगों ने सबर किया और वह अपने रब पर भरोसा करते हैं। (42) 

और हम ने तुम से पहले भी मर्दी के सिवा (रसूल) नहीं भजे, हम वहि करते है उन की तरफ, याद रखने वालों से पूछो अगर तुम नहीं जानते कि उन रसूलों को हम ने भेजा था)। (43) 

निशानियों और किताबों के साथ, और हम ने तुम्हारी तरफ़ किताब नाज़िल कि है ताकि लोगों के लिए वाजेह कर दो जो उन की तरफ़ नाज़िल किया गया है, ताकि वह गौर ओ फ़िक्र करें। (44) 

जिन लोगों ने बुरे दाओ किए क्या वह उस से बेख़ौफ़ हो गए हैं कि अल्लाह उन को ज़मीन में धंसा दे? या उन पर अज़ाब आजाए जहां से उन को खबर ही न हो, (45) 

या वह उन्हें पकड़ ले चलते फिरते, पस वह (अल्लाह) को आजिज़ करने वाले नहीं, (46) 

या उन्हें डराने के बाद पकड़ ले, पस बेशक तुम्हारा रब इम्तिहाई शफ़ीक़ निहायत रम तरने वाला है। (47) 

क्या उन्हों ने नहीं देखा? कि जो चीज़ अल्लाह ने पैदा की है, उस के साए ढलते हैं, दाएं से और बाएं से, अल्लाह के लिए सिजदा करते हुए, और वह आजिज़ी करने वाले हैं। (48) 

और अल्लाह को सिजदा करता है जो भी आस्मानों में और जो भी जानदारों में से जमीन में है और फरिश्ते भी. और वह तकव्वुर नहीं करते। (49) 

वह अपने रब से डरते हैं (जो) उन के ऊपर है, और वह वही करते हैं जो उन्हें हुक्म दिया जाता है। (50) 

और अल्लाह ने कहा कि न तुम बनाओ दो माबूद| इस के सिवा नहीं कि वह माबूद यकता है, पस मुझ ही से डरो। (51) 

और उसी के लिए है जो आस्मानों में और जो जमीन में है और उसी के लिए इताअत ओ इबादत लाज़िम है, तो क्या अल्लाह के सिवा (किसी और से) तुम डरते हो? (52) 

और तुम्हारे पास जो कोई नेमत है सो अल्लाह की तरफ से है, फिर जब तुम्हें तकलीफ पहुंचती है तो उसी की तरफ़ तुम रोते चिल्लाते हो। (53) 

फिर वह जब तुम से सख्ती दूर कर देता है तो तुम में से एक फ़रीक उस वक्त अपने रब के साथ शरीक करने लगता है, (54) 

ताकि वह उस की नाशुक्री करें जो हम ने उन्हें दिया, तो तुम फाइदा उठालो, पस अनकरीब तुम जान लोगे। (55) 

और जो हम ने उन्हें दिया उस में से वह उन के लिए हिस्सा मकर्रर करते हैं, जिन (माबूदों) को वह नहीं जानते, अल्लाह की कसम तुम से उस (के बारे में ज़रूर पूछा जाएगा जो तुम झूट बान्धते थे। (56) 

और वह अल्लाह के लिए बेटियां ठहराते हैं, वह पाक है, और अपने लिए वह जो उन का दिल चाहता है। (57) 

और जब उन में से किसी को लड़की की खुशखबरी दी जाती है तो उस का चहरा सियाह पड़ जाता है और वह गुस्से से भर जाता है। (58) 

लोगों से छुपता फिरता है उस "बुराई” की खुशखबरी के सबब जो उसे दी गई (अब सोचता है) आया उस को रुसवाई के साथ रखे या उस को मिट्टी में दफ़न कर दे, याद रखो! बुरा है जो वह फैसला करते हैं। (59) 

जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते उन का हाल बुरा है, और अल्लाह की शान बुलन्द है, और वह गालिब हिक्मत वाला है। (60) 

और अगर अल्लाह गिरिफ्त करे लोगों की उन के जुल्म के सब्ब तो वह जमीन पर कोई चलने वाला न छोड़े, लेकिन वह उन्हें ढील देता है एक मुद्दते मुकर्ररा तक, फिर जब उन का वक्त आगया, न वह एक घड़ी पीछे हटेंगें, और न आगे बढ़ेंगे। (61) 

और वह अल्लाह के लिए ठहराते हैं जो अपने लिए न पसन्द करते है, और उन की ज़बाने झूट बयान करती हैं कि उन के लिए भलाई है, लाज़िमी बात है कि उन के लिए जहन्नम है, बेशक वह (जहन्नम में) आगे भेजे जाएंगे। (62) 

अल्लाह की कसम! तहकीक हम ने भेजे तुम से पहले उम्मतों की तरफ़ (रसूल), फिर शैतान ने उन के अमल उन्हें अच्छे कर दिखाए, पस आज वह उन का रफ़ीक़ है, और उन के लिए दर्दनाक अजाब है। (63)

और हम ने तुम पर किताब नहीं उतारी मगर (सिर्फ) इस लिए कि तुम वाजेह कर दो जिस में उन्हों ने इखतिलाफ़ किया, और हिदायत ओ रहमत उन के लिए जो ईमान लाए। (64)

और अल्लाह ने आस्मान से पानी उतारा, फिर उस से जमीन को उस की मौत (बन्जर होने के बाद जिन्दा किया, बेशक उस में उन लोगों के लिए निशानी है जो सुनते हैं। (65)

और बेशक तुम्हारे लिए चौपाए में (मुकामे) इब्रत है, हम तुम्हें पिलाते हैं दूध खालिस उस से जो गोबर और खून के दरमियान उन के पेट में है, पीने वालों के लिए खुशगवार। (66) 

और खजूर और अंगूर के फलों से (रस) तुम उस से शराब बनाते हो, और अच्छा रिजक (हासिल करते हो) बेशक उस में निशानी है उन लोगों के लिए जो अक्ल रखते हैं। (67) 

और तुम्हारे रब ने शहद की मक्खी को इलहाम किया कि तू पहाड़ों में घर बना ले, और दरख्तों में, और उस जगह जहां वह छतरियां बनाते है। (68) 

फिर खा हर किस्म के फलों से, फिर अपने रब के नर्म ओ हमवार रसतों पर चल, उन के पेटों से पीने की एक चीज़ निकलती है (शद) उस के रंग मुखतलिफ हैं, उस में लोगों के लिए शिफ़ा है, बेशक उस में उन लोगों के लिए निशानियां हैं जो सोचते हैं। (69)

और अल्लाह ने तुम्हें पैदा किया, फिर वह तुम्हें मौत देता है, और तुम में से बाज़ को नाकारा उस की तरफ पहुंचाया जाता है ताकि वह कुछ इल्म के बाद बेइल्म हो जाए, बेशक अल्लाह जानने वाला, कुदरत वाला है। (70) 

और अल्लाह ने फजीलत दी तुम में से बाज़ को बाज़ पर रिजक में, पस जिन लोगों को फजीलत दी गई वह अपना रिजक लौटाने (देने वाले) नहीं उन्हें जिन के मालिक उन के हाथ है (ममलूकों को) कि वह उस में बराबर हो जाएं, पस क्या वह अल्लाह की नेमत का इन्कार करते हैं? (71)

और अल्लाह ने तुम में से तुम्हारे लिए तुम्हारी बीवियां बनाई, और तुम्हारी बीवियों से तुम्हारे लिए पैदा किए बेटे और पोते, और तुम्हें पाक चीजें अता की, तो क्या वह बातिल को मानते हैं? और अल्लाह की नेमत का वह इन्कार करते हैं। (72) 

और अल्लाह के सिवा उस की परस्तिश करते हैं, जिन्हें इखतियार नहीं उन के लिए रिजक का आस्मानों और ज़मीन से कुछ भी, और न वह कुदरत रखते हैं। (73) 

पस तुम चस्पां न करो अल्लाह पर मिसालें, बेशक अल्लाह जानता है, और तुम नहीं जानते। (74) 

अल्लाह ने एक मिसाल बयान की (किसी की) मिल्क में आए हुए गुलाम की जो किसी शै पर इख्तियार नहीं रखता, और (दूसरा) वह जिसे हम ने अच्छा रिजक दिया सो वह उस से पोशीदा और जाहिर खर्च करता है, क्या वह (दोनों) बराबर है? तमाम तारीफें अल्लाह के लिए हैं.बलकि उन में से अक्सर नहीं जानते। (75)

और अल्लाह ने दो आदमियों की एक मिसाल बयान की उन में से एक गूंगा है, वह इख्तियार नहीं रखता किसी शै पर, और वह अपने आका पर बोझ है, वह जहां कहीं उसे भेजे वह कोई भलाई न लाए, क्या बराबर है यह और वह? जो अद्ल का हुक्म देता है, और वह सीधी राह पर है। (76) 

और अल्लाह के लिए हैं आस्मानों और जमीन की पोशीदा बातें, और कियामत का आना सिर्फ ऐसे हैं जैसे आँख का झपकना, या वह उस से भी ज़ियादा करीब है, बेशक अल्लाह हर शै पर कुदरत वाला है। (77) 

और अल्लाह ने तुम्हें तुम्हारी माओं के पेटों से निकाला तुम कुछ भी न जानते थे, और अल्लाह ने तुम्हारे बनाए कान, और आँखें, और दिल, ताकि तुम शुक्र अदा करो। (78) 

क्या उन्हों ने परिन्दों को नहीं देखा आस्मान की फ़िज़ा में हुक्म के पाबन्द, उन्हें (कोई नहीं थामता सिवाए अल्लाह के, बेशक उस में ईमान लाने वाले लोगों के लिए निशानियां है। (79)

और अल्लाह ने तुम्हारे लिए बनाया तुम्हारे घरों को रहने की जगह, और तुम्हारे लिए चौपाए की खालों से डेरे बनाए, जिन्हें तुम हल्का फुलका पाते हो अपने कूच के दिन और अपने क़याम के दिन, और उन की ऊन, और पशम, और उन के बालों से (बनाए) सामान और बरतने की चीजें एक मुद्दते मुकर्ररा तक| (80) 

और अल्लाह ने जो पैदा किया उस से तुम्हारे लिए साये बनाए, और तुम्हारे लिए बनाई पहाड़ो से पनाह गाहें, और उस ने तुम्हारे लिए कुर्ते बनाए जो तुम्हारे लिए गर्मी का बचाओ हैं और कुर्ते (जिरहें है) जो तुम्हारे लिए बचाओ हैं तुम्हारी लड़ाई में, उसी तरह वह तुम पर अपनी नेमत मुकम्मिल करता है ताकि तुम फ़रमांबरदार बनो। (81) 

फिर अगर वह फिर जाएं तो उस के सिवा नहीं कि तुम पर (तुम्हारा ज़िम्मा) सिर्फ खोल कर पहुंचा देना है। (82)

वह अल्लाह की नेमत पहचानते हैं, फिर उस के मुकिर हो जाते हैं, और उन में से अक्सर नाशुक्र है। (83)

और जिस दिन हर उम्मत से हम एक गवाह उठाएंगे फिर न इजाजत दी जाएगी काफ़िरों को और न उन से उजर कुबूल किए जाएंगे| (84) 

और (याद करो) जब जालिम अजाब देखेंगे फिर न उन से (अजाब) हल्का किया जाएगा और न उन्हें मोहलत दी जाएगी। (85)

और (याद करो) जब मुश्रिक अपने शरीकों को देखेंगे तो वह कहेंगे ऐ हमारे रब! यह हैं हमारे शरीक जिन्हें हम तेरे सिवा पुकारते थे, फिर वह (उन के शरीक) उन की तरफ़ डालेंगे क़ौल (जवाब देगें कि) बेशक तुम झूटे हो। (86)

और वह उस दिन अल्लाह के सामने आजिज़ी (का पैगाम) डालेंगे और उन से गुम हो जाएगा (भूल जाएंगे) जो वह झूट घड़ते थे। (87) 

और जिन लोगों ने कुफ़ किया और अल्लाह की राह से रोका हम उन के लिए अज़ाब पर अजाब बढ़ादेंगे, क्यों कि वह फसाद करते थे। (88) 

और जिस दिन हम उठाएंगे हर उम्मत में उन पर उन ही में से एक गवाह, और हम आप (स) को इन सब पर गवाह लाएंगे, और हम ने आप (स) पर कुरआन नाज़िल किया, हर शै का मुफस्सिल बयान, और हिदायत ओ रहमत, और खुशखबरी मुसलमानों के लिए| (89) 

बेशक अल्लाह अदल ओ एहसान का हुक्म देता है और रिशते दारों को (उन के हुकूक) देने का और मना करता है बेहयाई से और नाशाइस्ता कामों से और सरकशी से, तुम्हें नसीहत करता है ताकि तुम ध्यान करो। (90) 

और जब तुम (पुख्ता) अहद करलो तो अल्लाह का अहद पूरा करो, और कस्में पुख्ता करने के बाद उन को न तोड़ो, और तहकीक तुम ने अपने ऊपर अल्लाह को जामिन बनाया है, बेशक अल्लाह जानता है जो तुम करते हो। (91) 

और तुम उस औरत की तरह न होजाना जिस ने अपना सूत मजबूत करने (कातने) के बाद तुकड़े तुकड़े तोड़ डाला, तुम बनाते हो अपनी कसमों को अपने दरमियान दखल देने का बहाना कि एक गिरोह दूसरे गिरोह पर गालिब आजाए, उस के सिवा नहीं कि अल्लाह तुम्हें आज़माता है, और वह रोजे कियामत तुम पर ज़रूर जाहिर करदेगा जिस में तुम इखतिलाफ़ करते थे। (92) 

और अगर अल्लाह चाहता तो अलबत्ता तुम्हें एक उम्मत बनादेता, लेकिन वह गुमराह करता है जिस को वह चाहता है, और हिदायत देता है जिस को वह चाहता है, और तुम से उस की बाबत ज़रूर पूछा जाएगा जो तुम करते थे। (93) 

और अपनी कसमों को न बनाओ अपने दरमियान दखल का बहाना कि कोई कदम अपने जम जाने के बाद फिसल जाए और तुम उस के नतीजे में वबाल चखो कि तुम ने रोका अल्लाह के रास्ते से, और तुम्हारे लिए बड़ा अज़ाब है। (94) 

और तुम अल्लाह के अहद के बदले न लो थोड़ा मोल (माले दुनिया) बेशक जो अल्लाह के पास है वह (हमेशा) बाकी रहने वाला है। अगर तुम जानो तो वही तुम्हारे लिए बेहतर है। (95) 

जो तुम्हारे पास है वह ख़तम होजाता है और जो अल्लाह के पास है वह (हमेशा) बाकी रहने वाला है। और जिन लोगों ने सबूर किया हम ज़रूर उन्हें उन का अजर देंगे उस से बहुत बेहतर जो वह (आमाल) करते थे। (96) 

जिस ने कोई नेक अमल किया वह मर्द हो या औरत, जब कि हो वह मोमिन, तो हम ज़रूर उसे (दुनिया में) पाकीज़ा जिन्दगी देंगे और (आख़िरत) में उन का अगर ज़रूर उस से बेहतर देंगे, जो (आमाल) वह करते थे| (97) 

पस जब तुम कुरआन पढ़ी तो अल्लाह की पनाह ली शैतान मर्दूद से। (98) 

बेशक उस का कोई ज़ोर नहीं उन लोगों पर जो ईमान लाए और वह अपने रब पर भरोसा करते हैं। (99) इस के सिवा नहीं कि उस का जोर उन लोगों पर है जो उस को दोस्त बनाते हैं और जो लोग अल्लाह के साथ शरीक ठहराते हैं। (100) 

और जब हम कोई हुक्म किसी दूसरे हुक्म की जगह बदलते हैं, और अल्लाह खूब जानता है जो वह नाज़िल करता है, वह (काफ़िर) कहते हैं इस के सिवा नहीं कि तुम (खुद) घड़ लेते हो, (नहीं) बल्कि उन में अकसर इल्म नहीं रखते। (101) 

आप (स) कह दें कि उसे जिबाइल (अ) अमीन ने तुम्हारे रब की तरफ़ से उतारा है हक़ के साथ ताकि मोमिनों को साबित कदम रखे, और मुसलमानों के लिए हिदायत ओ खुशखबरी है। (102) 

और हम खूब जानते हैं कि वह कहते है कि इस के सिवा नहीं कि उसे एक आदमी सिखाता है, जिस की तरफ वह निसबत करते हैं उस की जबान अजमी (गैर अरबी) है, और यह वाजेह अरबी जवान है। (103) 

बेशक जो लोग ईमान नहीं लाते अल्लाह की आयतों पर, अल्लाह उन्हें हिदायत नहीं देता, और उन के लिए दर्दनाक अज़ाब है। (104) 

इस के सिवा नहीं कि वही लोग झूट बुहतान बान्धते हैं जो अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं रखते, और वही लोग झूटे हैं। (105) 

जो अल्लाह का मुन्किर हुआ उस (अल्लाह) पर ईमान के बाद, सिवाए उस के जो मजबूर किया गया हो, जब कि उस का दिल ईमान पर मुत्मइन हो, बल्कि जो कुफ़ के लिए सीना कुशादा करे (मन मरज़ी से कुफ़ करे) तो उन पर अल्लाह का गजब है, और उन के लिए बड़ा अज़ाब है। (106) 

यह इस लिए है कि उन्हों ने दुनिया की जिन्दगी को आखिरत पर पसन्द किया, और यह कि अल्लाह हिदायत नहीं देता काफ़िर लोगों को| (107) 

यही लोग हैं अल्लाह ने मुहर लगादी है जिन के दिलों पर, और उन के कानों पर, और उन की आँखों पर, और यही लोग गाफिल है। (108) 

कुछ शक नहीं कि यही लोग आखिरत में खसरा (नुक्सान) उठाने वाले हैं। (109) 

फिर बेशक तुम्हारा रब उन लोगों के लिए जिन्हों ने हिजत की, उस के बाद कि वह सताए गए और फिर उन्हों ने जिहाद किया, और सब किया, बेशक तुम्हारा रब उस के बाद बख्शने वाला निहायत मेहरबान है। (110) जिस दिन हर शख्स अपनी (ही) तरफ़ से झगड़ा करता आएगा, और हर शख्स को पूरा दिया जाएगा जो उस ने किया और उन पर जुल्म न किया जाएगा। (111)

और अल्लाह ने एक बस्ती की मिसाल बयान की, वह मुत्मइन बेखौफ थी, हर जगह से उस के पास रिजक बाफ़राग़त आ जाता था, फिर उस ने नाशुक्री की, अल्लाह की नेमतों की, तो अल्लाह ने उस के बदले जो वह करते थे उसको भूक और खौफ़ के लिबास का मज़ा चखाया (भूक और खौफ उनका लिबादा बन गया)। (112) 

और बेशक उन के पास उन ही में से एक रसूल आया, सो उन्हों ने उसे झुटलाया, तो अज़ाब ने उन्हें आ पकड़ा और वह जालिम थे। (113) 

पस जो अल्लाह ने तुम्हें दिया है उस में से हलाल और पाक खाओ, और अल्लाह की नेमत का शुक्र करो, अगर तुम उस की इबादत करते हो। (114) 

उस के सिवा नहीं कि अल्लाह ने तुम पर हराम किया है मुर्दार और खून, और खिनजीर का गोश्त और जिस पर अल्लाह के अलावा (किसी और) का नाम पुकारा जाए, पस जो लाचार हो जाए न सरकशी करने वाला हो, और न हद से बढ़ने वाला तो बेशक अल्लाह बख्शने वाला निहायत मेहरबान है। (115)

और न कहो तुम वह जो तुम्हारी जबाने झूट बयान करती हैं कि यह हलाल है और यह हराम, कि तुम अल्लाह पर झूट बुहतान बान्धी, बेशक जो लोग अल्लाह पर झूट बुहतान बान्धते हैं वह फलाह (दो जहान में कामयाबी) न पाएंगे। (116) 

(उन के लिए) फाइदा थोड़ा है, और उन के लिए अज़ाब दर्दनाक है। (117) 

और यहूदियों पर हम ने हराम किया था जो उस से कब्ल हम ने तुम से बयान किया है, और हम ने उन पर जुल्म नहीं किया, बल्कि वह अपने ऊपर जुल्म करते थे। (118) 

फिर बेशक तुम्हारा रब उन लोगों के लिए जिन्हों ने नादानी से बुरे अमल किए, फिर उस के बाद उन्हों ने तौबा की और इस्लाह कर ली, बेशक तुम्हारा रब उस के बाद बख्शने वाला, निहायत मेहबान है। (119) 

बेशक इब्राहीम (अ) इमाम थे, अल्लाह के फ़रमांबरदार, यक रुख (सब को छोड़ कर एक अल्लाह के हो रहने वाले) और वह मुश्रिकों में से न थे, (120) 

उस की नेमतों के शुक्रगुजार, उस (अल्लाह ने) उन्हें चुन लिया, और उन की रहनुमाई की सीधी राह की तरफ़| (121) 

और हम ने उन्हें दुनिया में भलाई दी, और बेशक वह आखिरत में नेकोकारों में से हैं, (122) 

फिर हम ने तुम्हारी तरफ़ वहि भेजी कि हर एक से जुदा हो रहने वाले (यक रुख) इब्राहीम (अ) की पैरवी करो और वह मुशरिकों में से न थे। (123) 

इस के सिवा नहीं कि हफ्ता उन लोगों पर (अज़मत का दिन) मुकर्रर किया गया जिन्हों ने उस में इखतिलाफ़ किया था, और बेशक तुम्हारा रब अलबत्ता कियामत के दिन उन के दरमियान उस (बात) में फैसला कर देगा जिस में वह इखतिलाफ़ करते थे। (124) 

तुम अपने रब के रास्ते की तरफ़ बुलाओ दानाई से, और अच्छी नसीहत से, और उन से ऐसे बहस करो जो सब से बेहतर हो, बेशक तुम्हारा रब उस को खूब जानने वाला है जो अल्लाह के रास्ते से गुमराह हुआ, और वह राह पाने वालों को खूब जानने वाला है। (125) 

और अगर तुम तकलीफ़ दो तो ऐसी ही तकलीफ़ दो, जैसी तुम्हें तकलीफ़ दी गई थी, और अगर तुम सब करो तो यह सब करने वालों के लिए बेहतर है। (126) 

और सब्र करो और तुम्हारा सब्र अल्लाह ही की मदद से है। और गम न खाओ उन पर, और वह जो फरेब करते हैं उस से तंगी में (दिल तंग) न हो। (127) 

बेशक अल्लाह उन लोगो के साथ है जिन्हों ने परहेजगारी की, और वह लोग जो नेकोकार हैं। (128)

***

16. THE BEE

(an-Nahl)

In the name of God, the Gracious, the Merciful.

1. The command of God has come, so do not rush it. Glory be to Him, exalted above what they associate.


2. He sends down the angels with the Spirit by His command, upon whom He wills of His servants: “Give warning that there is no god but Me, and fear Me.”


3. He created the heavens and the earth with justice. He is exalted above the associations they attribute.


4. He created the human being from a drop of fluid, yet he becomes an open adversary.


5. And the livestock—He created them for you. In them are warmth and benefits for you, and of them you eat.


6. And there is beauty in them for you, when you bring them home, and when you drive them to pasture.


7. And they carry your loads to territory you could not have reached without great hardship. Your Lord is Clement and Merciful.


8. And the horses, and the mules, and the donkeys—for you to ride, and for luxury. And He creates what you do not know.


9. It is for God to point out the paths, but some of them are flawed. Had He willed, He could have guided you all.


10. It is He Who sends down for you from the sky water. From it is drink, and with it grows vegetation for grazing.


11. And He produces for you grains with it, and olives, and date-palms, and grapes, and all kinds of fruits. Surely in that is a sign for people who think.


12. And He regulated for you the night and the day; and the sun, and the moon, and the stars are disposed by His command. Surely in that are signs for people who ponder.


13. And whatsoever He created for you on earth is of diverse colors. Surely in that is a sign for people who are mindful.


14. And it is He who made the sea to serve you, that you may eat from it tender meat, and extract from it ornaments that you wear. And you see the ships plowing through it, as you seek His bounties, so that you may give thanks.


15. And he cast mountains on the earth, lest it shifts with you; and rivers, and roads, so that you may be guided.


16. And landmarks. And by the stars they guide themselves.


17. Is He who creates like him who does not create? Will you not take a lesson?


18. And if you tried to enumerate the favors of God, you will not be able to count them. God is Forgiving and Merciful.


19. And God knows what you hide and what you disclose. 


20. Those they invoke besides God create nothing, but are themselves created.


21. They are dead, not alive; and they do not know when they will be resurrected.


22. Your God is one God. As for those who do not believe in the Hereafter, their hearts are in denial, and they are arrogant.


23. Without a doubt, God knows what they conceal and what they reveal. He does not like the arrogant.


24. And when it is said to them, “What has your Lord sent down?” They say, “Legends of the ancients.”


25. So let them carry their loads complete on the Day of Resurrection, and some of the loads of those they misguided without knowledge. Evil is what they carry.


26. Those before them also schemed, but God took their structures from the foundations, and the roof caved in on them. The punishment came at them from where they did not perceive.


27. Then, on the Day of Resurrection, He will disgrace them, and say, “Where are My associates for whose sake you used to dispute?” Those who were given knowledge will say, “Today shame and misery are upon the disbelievers.”


28. Those wronging their souls while the angels are taking them away—they will propose peace: “We did no wrong.” Yes you did. God is aware of what you used to do.”


29. Enter the gates of Hell, to dwell therein forever. Miserable is the residence of the arrogant.


30. And it will be said to those who maintained piety, “What has your Lord revealed?” They will say, “Goodness.” To those who do good in this world is goodness, and the Home of the Hereafter is even better. How wonderful is the residence of the pious.


31. The Gardens of Perpetuity, which they will enter, beneath which rivers flow, where they will have whatever they desire. Thus God rewards the pious.


32. Those who are in a wholesome state when the angels take them—will say, “Peace be upon you; enter Paradise, for what you used to do.”


33. Are they waiting for anything but the angels to come to them, or the decree of your Lord to come? Those before them did likewise. God did not wrong them, but they used to wrong their own souls.


34. So the evils of their deeds assailed them, and what they used to ridicule engulfed them.


35. The idolaters say, “Had God willed, we would not have worshiped anything besides Him, neither us, nor our ancestors; nor would we have prohibited anything besides His prohibitions.” Those before them did likewise. Are the messengers responsible for anything but clear communication?


36. To every community We sent a messenger: “Worship God, and avoid idolatry.” Some of them God guided, while others deserved misguidance. So travel through the earth, and see what the fate of the deniers was.


37. Even though you may be concerned about their guidance, God does not guide those who misguide. And they will have no saviors.


38. And they swear by God with their most solemn oaths, “God will not resurrect anyone who dies.” Yes indeed, it is a promise binding on Him, but most people do not know.


39. To clarify for them what they differed about, and for the faithless to know that they were liars.


40. When We intend for something to happen, We say to it, “Be,” and it becomes.


41. Those who emigrate for God’s sake after being persecuted, We will settle them in a good place in this world; but the reward of the Hereafter is greater, if they only knew.


42. Those who endure patiently, and in their Lord they put their trust.


43. We did not send before you except men whom We inspired. So ask the people of knowledge, if you do not know.


44. With the clarifications and the Scriptures. And We revealed to you the Reminder, that you may clarify to the people what was revealed to them, and that they may reflect.


45. Do those who scheme evils feel secure that God will not cause the earth to cave in with them, or that the punishment will not come upon them from where they do not perceive?


46. Or that He will not seize them during their activities? And they will not be able to prevent it.


47. Or that He will not seize them while in dread? Your Lord is Gentle and Merciful.


48. Have they not observed what God has created? Their shadows revolve from the right and the left, bowing to God as they shrink away.


49. To God bows down everything in the heavens and everything on earth—every living creature, and the angels, and without being proud.


50. They fear their Lord above them, and they do what they are commanded.


51. God has said: “Do not take two gods; He is only One God; so fear only Me.”


52. To Him belongs everything in the heavens and the earth; and to Him obedience is due always. Do you, then, fear anyone other than God?


53. Whatever blessing you have is from God. And when harm touches you, it is to Him that you groan.


54. But when He lifts the harm from you, some of you associate others with their Lord.


55. To show ingratitude for what We have given them. Enjoy yourselves. You will soon know.


56. And they allocate, to something they do not know, a share of what We have provided for them. By God, you will be questioned about what you have been inventing.


57. And they attribute to God daughters— exalted is He—and for themselves what they desire.


58. And when one of them is given news of a female infant, his face darkens, and he chokes with grief.


59. He hides from the people because of the bad news given to him. Shall he keep it in humiliation, or bury it in the dust? Evil is the decision they make.


60. Those who do not believe in the Hereafter set a bad example, while God sets the Highest Example. He is the Mighty, the Wise.


61. If God were to hold mankind for their injustices, He would not leave upon it a single creature, but He postpones them until an appointed time. Then, when their time arrives, they will not delay it by one hour, nor will they advance it.


62. And they attribute to God what they themselves dislike, while their tongues utter the lie that theirs is the goodness. Without a doubt, for them is the Fire, and they will be neglected.


63. By God, We sent messengers to communities before you, but Satan made their deeds appear alluring to them. He is their master today, and they will have a painful punishment.


64. We revealed to you the Scripture only to clarify for them what they differ about, and guidance and mercy for people who believe.


65. God sends down water from the sky, with which He revives the earth after its death. In this is a sign for people who listen.


66. And there is a lesson for you in cattle: We give you a drink from their bellies, from between waste and blood, pure milk, refreshing to the drinkers.


67. And from the fruits of date-palms and grapevines, you derive sugar and wholesome food. In this is a sign for people who understand.


68. And your Lord inspired the bee: “Set up hives in the mountains, and in the trees, and in what they construct.”


69. Then eat of all the fruits, and go along the pathways of your Lord, with precision. From their bellies emerges a fluid of diverse colors, containing healing for the people. Surely in this is a sign for people who reflect.


70. God created you; then He takes you away. Some of you will be brought back to the worst age, so that he will no longer know anything, after having acquired knowledge. God is Omniscient and Omnipotent.


71. God has favored some of you over others in livelihood. Those who are favored would not give their properties to their servants, to the extent of making them partners in it. Will they then renounce God’s blessings?


72. God has given you mates from among yourselves; and has produced for you, from your mates, children and grandchildren; and has provided you with good things. Will they then believe in falsehood, and refuse God’s favors?


73. And yet they serve besides God what possesses no provisions for them in the heavens, nor on earth, nor are they capable.


74. So do not cite the examples for God. God knows, and you do not know.


75. God cites the example of a bonded slave, who has no power over anything; and someone to whom We have given plentiful provision, from which he gives secretly and openly. Are they equal in comparison? All praise belongs to God, but most of them do not know.


76. And God cites the example of two men: one of them dumb, unable to do anything, and is a burden on his master; whichever way he directs him, he achieves nothing good. Is he equal to him who commands justice, and is on a straight path?


77. To God belongs the unseen of the heavens and the earth. The coming of the Hour is only as the twinkling of the eye, or even nearer. God has power over everything.


78. God brought you out of your mothers’ wombs, not knowing anything; and He gave you the hearing, and the eyesight, and the brains; that you may give thanks.


79. Have they not seen the birds, flying in the midst of the sky? None sustains them except God. In this are signs for people who believe.


80. And God has given you in your homes habitats for you, and has provided for you out of the hides of livestock portable homes for you, so you can use them when you travel, and when you camp; and from their wool, and fur, and hair, furnishings and comfort for a while.


81. And God has made for you shade out of what He has created, and has given you resorts in the mountains, and has given you garments to protect you from the heat, and garments to protect you from your violence. Thus He completes His blessings upon you, so that you may submit.


82. But if they turn away, your only duty is clear communication.


83. They recognize God’s blessing, but then deny it, as most of them are ungrateful.


84. On the Day when We raise up a witness from every community—those who disbelieved will not be permitted, nor will they be excused.


85. When those who did wrong see the punishment, it will not be lightened for them, nor will they be reprieved.


86. And when the idolaters see their associates, they will say, “Our Lord, these are our associates whom we used to invoke besides You.” They will strike back at them with the saying, “Surely you are liars.”


87. On that Day they will offer their submission to God, and what they had invented will abandon them.


88. Those who disbelieve and obstruct from God’s path—We will add punishment to their punishment, on account of the mischief they used to make.


89. On the Day when We raise in every community a witness against them, from among them, and bring you as a witness against these. We have revealed to you the Book, as an explanation of all things, and guidance, and mercy and good news for those who submit.


90. God commands justice, and goodness, and generosity towards relatives. And He forbids immorality, and injustice, and oppression. He advises you, so that you may take heed.


91. Fulfill God’s covenant when you make a covenant, and do not break your oaths after ratifying them. You have made God your guarantor, and God knows what you do.


92. And do not be like her who unravels her yarn, breaking it into pieces, after she has spun it strongly. Nor use your oaths as means of deception among you, because one community is more prosperous than another. God is testing you thereby. On the Day of Resurrection, He will make clear to you everything you had disputed about.


93. Had God willed, He would have made you one congregation, but He leaves astray whom He wills, and He guides whom He wills. And you will surely be questioned about what you used to do.


94. And do not use your oaths to deceive one another, so that a foot may not slip after being firm, and you taste misery because you hindered from God’s path, and incur a terrible torment.


95. And do not exchange God’s covenant for a small price. What is with God is better for you, if you only knew.


96. What you have runs out, but what is with God remains. We will reward those who are patient according to the best of their deeds.


97. Whoever works righteousness, whether male or female, while being a believer, We will grant him a good life—and We will reward them according to the best of what they used to do.


98. When you read the Quran, seek refuge with God from Satan the outcast.


99. He has no authority over those who believe and trust in their Lord.


100. His authority is only over those who follow him, and those who associate others with Him.


101. When We substitute a verse in place of another verse—and God knows best what He reveals—they say, “You are an impostor.” But most of them do not know.


102. Say, “The Holy Spirit has brought it down from your Lord, truthfully, in order to stabilize those who believe, and as guidance and good news for those who submit.”


103. We are well aware that they say, “It is a human being who is teaching him.” But the tongue of him they allude to is foreign, while this is a clear Arabic tongue.


104. Those who do not believe in God’s revelations—God will not guide them, and for them is a painful punishment.


105. It is those who do not believe in God’s revelations who fabricate falsehood. These are the liars.


106. Whoever renounces faith in God after having believed—except for someone who is compelled, while his heart rests securely in faith—but whoever willingly opens up his heart to disbelief—upon them falls wrath from God, and for them is a tremendous torment.


107. That is because they have preferred the worldly life to the Hereafter, and because God does not guide the people who refuse.


108. It is they whom God has sealed their hearts, and their hearing, and their sight. It is they who are the heedless.


109. There is no doubt that in the Hereafter they will be the losers.


110. But then your Lord—for those who emigrated after being persecuted, then struggled and persevered—your Lord thereafter is Forgiving and Merciful.


111. On the Day when every soul will come pleading for itself, and every soul will be paid in full for what it has done, and they will not be wronged.


112. And God cites the example of a town that was secure and peaceful, with its livelihood coming to it abundantly from every direction. But then it turned unappreciative of God’s blessings, so God made it taste the robe of hunger and fear, because of what they used to craft.


113. A messenger from among them had come to them, but they denounced him, so the punishment seized them in the midst of their wrongdoing.


114. Eat of the lawful and good things God has provided for you, and be thankful for God’s blessings, if it is Him that you serve.


115. He has forbidden you carrion, and blood, and the flesh of swine, and anything consecrated to other than God. But if anyone is compelled by necessity, without being deliberate or malicious, then God is Forgiving and Merciful.


116. And do not say of falsehood asserted by your tongues, “This is lawful, and this is unlawful,” in order to invent lies and attribute them to God. Those who invent lies and attribute them to God will not succeed.


117. A brief enjoyment—then they will have a painful punishment.


118. For those who are Jews, We have prohibited what We related to you before. We did not wrong them, but they used to wrong their own selves.


119. But towards those who do wrongs in ignorance, and then repent afterwards and reform, your Lord thereafter is Forgiving and Merciful.


120. Abraham was an exemplary leader, devoted to God, a monotheist, and was not of the polytheists.


121. Thankful for His blessings. He chose him, and guided him to a straight path.


122. And We gave him goodness in this world, and in the Hereafter he will be among the righteous.


123. Then We inspired you: “Follow the religion of Abraham, the Monotheist. He was not an idol-worshiper.”


124. The Sabbath was decreed only for those who differed about it. Your Lord will judge between them on the Day of Resurrection regarding their differences.


125. Invite to the way of your Lord with wisdom and good advice, and debate with them in the most dignified manner. Your Lord is aware of those who stray from His path, and He is aware of those who are guided.


126. If you were to retaliate, retaliate to the same degree as the injury done to you. But if you resort to patience—it is better for the patient.


127. So be patient. Your patience is solely from God. And do not grieve over them, and do not be stressed by their schemes.


128. God is with those who are righteous and those who are virtuous.      

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