अल्लाह के नाम से जो बहुत मेहरबान, रहम करने वाला है। हा-मीम (1)
इस कुरआन का उतारा जाना अल्लाह गालिब, हर चीज़ के जानने वाले (की तरफ़) से है। (2)
गुनाहों को बख्शने वाला, तौबा कुबूल करने वाला, शदीद अजाब वाला, बड़े फज्ल वाला, उस के सिवा कोई माबूद नहीं, उसी की तरफ़ लौट कर जाना है। (3)
नहीं झगड़ते अल्लाह की आयात में, मगर वह लोग जिन्हों ने कुफ़ किया, सो तुम्हें धोके में न डाल दे उन की चलत फिरत दुनिया के मुल्कों में। (4)
उन से कब्ल नूह (अ) की कौम और उन के बाद (दूसरे) गिरोहों ने झुटलाया, और हर उम्मत ने अपने रसूलों के बारे में इरादा बान्धा कि वह उसे पकड़ लें, और नाहक झगड़ा करें ताकि उस से हक को दबा दें, तो मैं ने उन्हें पकड़ लिया, सो (देखो) कैसा हुआ मेरा अजाब| (5)
और इसी तरह तुम्हारे रब की बात काफिरों पर साबित हो गई कि वह दोजख वाले हैं। (6)
जो फ़रिश्ते अर्श को उठाए हुए हैं और जो उस के इर्द गिर्द है वह तारीफ़ के साथ पाकीज़गी बयान करते हैं अपने रब की, और वह उस पर ईमान लाते हैं, और ईमान लाने वालों के लिए मगफ़िरत मांगते हैं कि ऐ हमारे रब! हर शै को समो लिया है (तेरी) रहमत और इल्म ने, सो तू उन लोगों को बख्श दे जिन्हों ने तौबा की, और तेरे रास्ते की पैरवी की, और तू उन्हें जहन्नम के अज़ाब से बचा ले| (7)
ऐ हमारे रब! और उन्हें हमेशगी के बागात में दाखिल फरमा, वह जिन का तू ने उन से वादा किया है और (उन को भी) जो सालेह हैं उन के बाप दादा में से और उन की बीवियों और उन की औलाद में से, बेशक तू ही गालिब, हिक्मत वाला है। (8)
और उन्हें बुराइयों से बचाले और जो उस दिन बुराइयों से बचा, तो यकीनन तू ने उस पर रहम किया और यही अजीम कामयाबी है। (9)
बेशक जिन लोगों ने कुफ़ किया वह पुकारे जाएंगे (उन्हें पुकार कर कहा जाएगा कि अल्लाह का बेज़ार होना तुम्हारे अपने तई बेज़ार होने से बहुत बड़ा है, जब तुम ईमान की तरफ़ बुलाए जाते थे तो तुम कुफ़ करते थे| (10)
वह कहेंगे ऐ हमारे रब! तू ने हमें मुर्दा रखा दो बार, और हमें ज़िन्दगी बख्शी दो बार, पर हम ने अपने गुनाहों का एतिराफ़ कर लिया, तो क्या (अब यहां से) निकलने की कोई सबील है? (11)
कहा जाएगा यह तुम पर इस लिए (है) कि जब अल्लाह वाहिद को पुकारा जाता तो तुम कुफ़ करते और अगर (किसी को) उस का शरीक किया जाता तो तुम मान लेते, पर हुक्म अल्लाह के लिए है जो बुलन्द, बड़ा है। (12)
वह जो तुम्हें अपनी निशानियां दिखाता है, और तुम्हारे लिए आस्मान से रिजक उतारता है, और नसीहत कुबूल नहीं करता सिवाए जो (अल्लाह की तरफ़) रुजु करता है। (13)
पर तुम अल्लाह को पुकारो, उसी के लिए इबादत खालिस करते हुए, अगरचे काफ़िर बुरा मानें| (14)
बुलन्द दरजी वाला, अर्श का मालिक, वह अपने हुक्म से रूह (वहि) डालता है (भेजता है, जिस पर अपने बन्दों में से चाहता है ताकि वह कियामत के दिन से डराए। (15)
जिस दिन वह ज़ाहिर होंगे, न । पोशीदा होंगी अल्लाह पर उन की कोई शै, (निदा होगी) आज किस के लिए है बादशाहत? (एलान होगा) “अल्लाह के लिए” जो वाहिद, जबरदस्त कहर वाला है। (16)
आज हर शख्स को उस के आमाल का बदला दिया जाएगा, आज कोई जुल्म न होगा, बेशक अल्लाह जलद हिसाब लेने वाला है। (17)
और उन्हें करीब आने वाले रोजे कियामत से डराएं, जब दिल गम से भरे गलों के नजदीक (कलेजे मुंह को) आ रहे होंगे| ज़ालिमों के लिए नहीं कोई दोस्त, न कोई सिफारिश करने वाला, जिस की बात मानी जाए। (18)
वह जानता है ऑखों की खयानत और जो वह सीनों में छुपाते हैं। (19)
और अल्लाह हक के साथ फैसला करता है, और जो लोग उस के सिवा पुकारते हैं वह कुछ भी फैसले नहीं करते, बेशक अल्लाह ही सुनने वाला, देखने वाला है। (20)
क्या वह जमीन में चले फिरे नहीं? तो वह देखते कैसा अन्जाम हुआ उन लोगों का जो उन से पहले थे, वह कुव्वत में उन से बहुत जियादा सख्त थे, और जमीन में आसार (निशानियों के एतिबार से भी), तो अल्लाह ने उन्हें गुनाहों के सबब पकड़ा, और उन के लिए नहीं है कोई अल्लाह से बचाने वाला। (21)
इस लिए कि उन के पास उन के रसूल खुली निशानियां ले कर आते थे, तो उन्हों ने कुफ़ किया, पर उन्हें अल्लाह ने पकड़ा, बेशक वह कव्वी, सख्त अजाब देने वाला है। (22)
और तहकीक़ हम ने मूसा (अ) को भेजा अपनी निशानियों और रोशन सनद के साथ| (23)
फ़िरऔन और हामान और कारून की तरफ़ तो उन्हों ने कहा (मूसा अ तो) जादूगर, बड़ा झूटा है। (24)
फिर जब वह उन के पास हमारी तरफ़ से हक के साथ आए, तो उन्हों ने कहाः उन के बेटों को क़त्ल कर डालो जो उस के साथ ईमान लाए, और उन की बेटियों को ज़िन्दा रहने दो, और काफ़िरों का दाओ गुमराही के सिवा (कुछ) नहीं। (25)
और फ़िरऔन ने कहाः मुझे छोड़ दो कि मैं मूसा (अ) को कतल कर दूं और उसे अपने रब को पुकारने दो, बेशक मैं डरता हूँ कि वह बदल देगा तुम्हारा दीन या ज़मीन में फ़साद फैलाएगा। (26)
और मूसा (अ) ने कहा, बेशक मैं ने पनाह ले ली है अपने और तुम्हारे रब की, हर मगरूर से जो रोजे हिसाब पर ईमान नहीं रखता। (27)
और कहा फ़िरऔन के लोगों में से एक मोमिन मर्द ने (जो) अपना ईमान छुपाए हुए था, क्या तुम एक आदमी को (महज़ इस बात पर) क़त्ल करते हो कि वह कहता है "मेरा रब अल्लाह है" और वह तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ़ से खुली निशानियों के साथ आया है और अगर वह झूटा है तो उस के झूट (का वबाल) उसी पर होगा, और अगर वह सच्चा है तो वह जो तुम से वादा कर रहा हे उस का कुछ (अजाब) तुम पर (ज़रूर) पहुंचेगा, बेशक अल्लाह (उसे) हिदायत नहीं देता जो हद से गुज़रने वाला, सख्त झूटा। (28)
ऐ मेरी कौम आज बादशाहत तुम्हारी है, तुम गालिब ही जमीन में, अगर अल्लाह का अजाब हम पर आ जाए तो उस से बचाने के लिए कौन हमारी मदद करेगा? फ़िरऔन ने कहा, मैं तुम्हें राए नहीं देता मगर जो मैं देखता हूँ, और मैं तुम्हें राह नहीं दिखाता मगर भलाई की राह। (29)
और उस शख्स ने कहा जो ईमान ले आया था, ऐ मेरी कौम! मैं तुम पर साबिका गिरोहों के दिन के मानिंद (अज़ाब नाज़िल होने से) डरता हूँ, (30)
जैसे हाल हुआ कौमे नूह और आद और समूद का और जो उन के बाद (हुए) और अल्लाह नहीं चाहता अपने बन्दों के लिए कोई जुल्म। (31)
और ऐ मेरी क़ौम! मैं तुम पर चीख ओ पुकार के दिन से डरता हूँ। (32)
जिस दिन तुम भागोगे पीठ फेर कर, तुम्हारे लिए अल्लाह से बचाने वाला कोई न होगा, और जिस को अल्लाह गुमराह करदे उस के लिए कोई नहीं हिदायत देने वाला। (33)
और तहकीक तुम्हारे पास इस से क़ब्ल यूसुफ़ (अ) वाजेह दलाइल के साथ आए, सो तुम हमेशा शक में रहे उस (के बारे में) जिस के साथ वह तुम्हारे पास आए, यहां तक कि जब वह फौत हो गए तो तुम ने कहाः उस के बाद अल्लाह हरगिज़ कोई रसूल न भेजेगा, इसी तरह अल्लाह (उसे) गुमराह करता है जो हद से गुजरने वाला, शक में रहने वाला हो। (34)
जो लोग अल्लाह की आयतों (के बारे) में झगड़ते हैं किसी दलील के बगैर जो उन के पास हो (उन की यह कज बसी) सख्त ना पसंद है अल्लाह के नजदीक और उन के नजदीक जो ईमान लाए, इसी तरह अल्लाह हर मगरूर, सरकश के दिल पर मुहर लगा देता है। (35)
और फ़िरऔन ने कहा ऐ हामान! मेरे लिए बुलन्द इमारत बना, शायद कि मैं पहुंच जाऊँ। (36)
आस्मानों के रास्ते, पर में मूसा (अ) के माबूद को झाँक लूँ, और बेशक मैं उसे झूटा गुमान करता हूँ, और उसी तरह फ़िरऔन को उस के बुरे अमल आरास्ता दिखाए गए और वह रोक दिया गया सीधे रास्ते से, और फिरऔन की तदबीर सिर्फ तबाही ही थी। (37)
और जो शख्स ईमान ले आया था, उस ने कहा कि ऐ मेरी कौम! तुम मेरी पैरवी करो, मैं तुम्हें भलाई का रास्ता दिखाऊँगा। (38)
ऐ मेरी कौम! इस के सिवा नहीं कि यह दुनिया की ज़िन्दगी थोड़ा सा फाइदा है, और आखिरत बेशक हमेशा रहने का घर है। (39)
जिस शख्स ने बुरा अमल किया उसे उस जैसा बदला दिया जाएगा, और जिस ने अच्छा अमल किया, वह खाह मर्द हो या औरत, बशर्त यह कि वह मोमिन हो, तो यही लोग दाखिल होंगे जन्नत में, उस में उन्हें बे हिसाब रिजक दिया जाएगा। (40)
और ऐ मेरी कौम! यह क्या बात है कि मैं तुम्हें नजात की तरफ़ बुलाता हूँ और तुम मुझे जहन्नम की तरफ़ बुलाते हो। (41)
तुम मुझे बुलाते हो कि मैं अल्लाह का इन्कार करूँ और उस के साथ उसे शरीक ठहराऊँ जिस का मुझे कोई इल्म नहीं और मैं तुम्हें गालिब बख्शने वाले (अल्लाह) की तरफ बुलाता हूँ। (42)
कोई शक नहीं कि तुम मुझे जिस की तरफ़ बुलाते हो उस का दुनिया में और आखिरत में (कुछ भी नहीं और यह कि हमें फिर जाना है अल्लाह की तरफ़, और यह कि हद से बढ़ जाने वाले ही जहन्नमी हैं। (43)
सो तुम जल्दी याद करोगे जो मैं तुम्हें कहता हूँ और मैं अपना काम (मामला) अल्लाह को सौंपता हूँ, बेशक अल्लाह बन्दों को देखने वाला है। (44)
सो अल्लाह ने उसे बचा लिया (उन) बुरे दाओ से जो वह करते थे, और फ़िरऔन वालों को बुरे अज़ाब ने घेर लिया। (45) (जहन्नम की) आग जिस पर वह सुबह ओ शाम पेश किए जाते हैं,
और जिस दिन कियामत काइम होगी (हुक्म होगा कि) तुम दाखिल करो फ़िरऔन वालों को शदीद तरीन अज़ाब में। (46)
और जब वह जहन्नम में बाहम झगड़ेंगे तो कहेंगे कमज़ोर उन लोगों को जो बड़े बनते थेः बेशक हम (दुनिया में) तुम्हारे मातहत थे तो क्या (अब) तुम दूर कर दोगे हम से आग का कुछ हिस्सा? (47)
वह लोग जो बड़े बनते थे कहेंगेः बेशक हम सब इस में हैं, बेशक अल्लाह बन्दों के दरमियान फैसला कर चुका है। (48)
और वह लोग जो आग में होंगे वह कहेंगे दारोगों (जहन्नम के निगहबान फ़रिश्तों) कोः अपने रब से दुआ करो, एक दिन का अज़ाब हम से हल्का कर दे| (49)
वह कहेंगे, क्या तुम्हारे पास तुम्हारे रसूल खुली निशानियों के साथ नहीं आए थे? वह कहेंगे हाँ! वह कहेंगे तो तुम पुकारो, और न होगी काफिरों की पुकार मगर बेसूद। (50)
बेशक हम ज़रूर मदद करते हैं अपने रसूलों की और उन लोगों की जो ईमान लाए दुनिया की जिन्दगी में और (उस दिन भी) जिस दिन गवाही देने वाले खड़े होंगे। (51)
जिस दिन जालिमों को नफा न देगी उन की उजुर खाही, और उन के लिए लानत (अल्लाह की रहमत से दूरी) है और उन के लिए बुरा घर है। (52)
और तहकीक़ हम ने मूसा (अ) को हिदायत (तौरेत) दी और हम ने । बनी इस्राईल को तौरेत का वारिस बनाया| (53)
(जो) अक्ल मन्दों के लिए हिदायत और नसीहत है। (54)
पर आप (स) सबर करें, बेशक अल्लाह का वादा सच्चा है, और अपने कुसूरों के लिए मगफिरत तलब करें, और अपने रब की तारीफ़ के साथ पाकीज़गी बयान करें शाम और सुबह। (55)
बेशक जो लोग अल्लाह की आयात में झगड़ते हैं बगैर किसी सनद के, जो उन के पास आई हो, उन के दिलों में तकब्बुर (बड़ाई की हवस) के सिवा कुछ नहीं, जिस तक वह कभी पहुंचने वाले नहीं। पर आप अल्लाह की पनाह चाहें, बेशक वही सुनने वाला देखने वाला है। (56)
यक़ीनन आस्मानों का और जमीन का पैदा करना लोगों के पैदा करने से बहुत बड़ा है, लेकिन अक्सर लोग समझते नहीं। (57)
और बराबर नहीं नाबीना और बीना, और (न) वह जो ईमान लाए और उन्हों ने अच्छे अमल किए, और न वह जो बदकार हैं। बहुत कम तुम गौर ओ फ़िक्र करते हो। (58)
बेशक कियामत ज़रूर आने वाली है, इस में कोई शक नहीं, लेकिन अक्सर लोग ईमान नहीं लाते। (59)
और तुम्हारे रब ने कहाः तुम मुझ से दुआ करो, मैं तुम्हारी (दुआ) कुबूल करूँगा, बेशक जो लोग मेरी इबादत से तकब्बुर (सरताबी) करते हैं अनक़रीब खार हो कर वह जहन्नम में दाखिल होंगे। (60)
अल्लाह वह है जिस ने बनाई तुम्हारे लिए रात ताकि तुम उस में सुकून हासिल करो और दिन दिखाने को (रोशन बनाया), बेशक अल्लाह फज्ल वाला है लोगों पर और लेकिन अक्सर लोग शुक्र नहीं करते। (61)
यह है अल्लाह तुम्हारा परवरदिगार, हर शै का पैदा करने वाला, उस के सिवा कोई माबूद नहीं, तो तुम कहां उलटे फिरे जाते हो? (62)
इसी तरह वह लोग उलटे फिर जाते हैं जो अल्लाह की आयात का इनकार करते हैं। (63)
अल्लाह, जिस ने तुम्हारे लिए जमीन को करारगाह बनाया और आस्मान को छत (बनाया) और तुम्हें सूरत दी तो बहुत ही हसीन सूरत दी, और तुम्हें पाकीज़ा चीजों से रिजक दिया, यह है अल्लाह तुम्हारा परवरदिगार, सो बरकत वाला है अल्लाह, सारे जहां का परवरदिगार। (64)
वही जिन्दा रहने वाला है, नहीं कोई माबूद उस के सिवा, पर तुम उसी को पुकारो उस के लिए दीन खालिस करके, तमाम तारीफें अल्लाह के लिए हैं, सारे जहान का परवरदिगार| (65)
आप (स) फ़रमा दें: बेशक मुझे मना कर दिया गया है कि मैं उन की परस्तिश करूँ जिन की तुम अल्लाह के सिवा पूजा करते हो, जब मेरे पास आ गई मेरे रब (की तरफ़) से खुली निशानियां, और मुझे हुक्म दिया गया है कि तमाम जहानों के परवरदिगार के लिए अपनी गर्दन झुका दूँ, (66)
वह जिस ने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया, फिर नुतफे से, फिर लोथड़े से, फिर वह तुम्हें निकालता है (माँ के पेट से) बच्चा सा, फिर (तुम्हें बाकी रखता है, ताकि तुम अपनी जवानी को पहुंची, फिर (जिन्दा रखता है, ताकि तुम बूढ़े हो जाओ और तुम में से (कोई है) जो फौत हो जाता है उस से कब्ल, और ताकि तुम सब (अपने अपने) वक्ते मुकर्ररा को पहुंची और ताकि तुम समझो। (67)
वही है जो जिन्दगी अता करता है और मारता है, फिर जब वह किसी अमर का फैसला करता है तो उस के सिवा नहीं कि वह उस को कहता है "हो जा” सो वह हो जाता है। (68)
क्या तुम ने उन लोगों को नहीं देखा जो अल्लाह की आयात में झगड़ते हैं? वह कहां फिरे जाते (भटकते) हैं? (69)
जिन लोगों ने किताब को झुटलाया और उसे जिस के साथ हम ने अपने रसूलों को भेजा, पर वह जल्द जान लेंगे। (70)
जब उन की गर्दनों में तौक़ और जनजीरें होंगी, वह घसीटे जाएंगे। (71)
खौलते हुए पानी में, फिर वह आग (जहन्नम) में झोंक दिए जाएंगे। (72)
फिर कहा जाएगा उन को, कहां हैं वह जिन को तुम अल्लाह के सिवा शरीक करते थे? (73)
वह कहेंगे वह तो हम से गुम हो गए (कहीं नज़र नहीं आते) बल्कि हम तो इस से कब्ल किसी चीज़ को पुकारते ही न थे, इसी तरह अल्लाह काफ़िरों को गुमराह करता है। (74)
यह उस का बदला है जो तुम ज़मीन में नाहक खुश होते (फिरते) थे, और बदला है उस का जिस पर तुम इतराते थे। (75)
तुम जहन्नम के दरवाजों में दाखिल हो जाओ, हमेशा उस में रहने को, सो बड़ा बनने वालों का बुरा है ठिकाना। (76)
पर आप (स) सबर करें, बेशक अल्लाह का वादा सच्चा है, पर अगर हम आप को उस (अजाब) का कुछ हिस्सा दिखा दें जो हम उन से वादा करते हैं या (उस से कब्ल) हम आप को वफ़ात दे दें (बहर सूरत) वह हमारी ही तरफ़ लौटाए जाएंगे। (77)
और तहकीक़ हम ने आप (स) से पहले बहुत से रसूल भेजे, उन में से (कुछ हैं। जिन का हाल हम ने आप से बयान किया और उन में से (कुछ हैं, जिन का हाल हम ने आप से बयान नहीं किया, और किसी रसूल के लिए (मक़दूर) न था कि वह कोई निशानी अल्लाह के हुक्म के बगैर ले आए, सो जब अल्लाह का हुक्म आ गया, हक के साथ फैसला कर दिया गया, और अहले बातिल उस वक्त घाटे में रह गए। (78)
अल्लाह (ही) है जिस ने तुम्हारे लिए चौपाए बनाए। ताकि तुम सवार हो उन में से (बाज़ पर), और उन में से (बाज) तुम खाते हो, (79)
और तुम्हारे लिए उन में बहुत से फ़ाइदे हैं और ताकि तुम उन पर (सवार हो कर अपने दिलों की मुराद (मन्ज़िले मकसूद) को पहुंची और उन पर और कशतियों पर तुम लदे फिरते हो। (80)
और वह तुम्हें अपनी निशानियां दिखाता है, तुम अल्लाह की किन किन निशानियों का इन्कार करोगे? (81)
पर क्या वह जमीन में चले फिरे नहीं? तो वह देखते कि कैसा हुआ अन्जाम उन लोगों का जो उन से कब्ल थे, वह तादाद और कुव्वत में इन से बहुत जियादा थे, और वह जमीन में (इन से बढ़ चढ़ कर) आसार (छोड़ गए) सो जो वह करते थे उन के (कुछ) काम न आया। (82)
फिर जब उन के पास उन के रसूल खुली निशानियों के साथ आए तो वह उस इल्म पर इतराने लगे जो उन के पास था और उन्हें उस । (अजाब) ने घेर लिया जिस का वह मज़ाक उड़ाते थे(83)
फिर जब उन्हों ने हमारा अजाब देखा तो वह कहने लगे हम अल्लाह वाहिद पर ईमान लाए और हम उस के मुन्किर हुए जिस को हम उस के साथ शरीक करते थे| (84)
तो (उस वक्त ऐसा) न हुआ कि उन का ईमान उन को नफ़ा देता जब उन्हों ने हमारा अज़ाब देख लिया, अल्लाह का दस्तूर है जो उस के बन्दों में गुज़र चुका (होता चला आया है) और उस वक्त काफ़िर घाटे में रह गए। (85)
***
40. FORGIVER
(Ghafir)
In the name of God, the Gracious, the Merciful.
1. Ha, Meem
2. The sending
down of the Scripture is from God the Almighty, the Omniscient.
3. Forgiver of
sins, Accepter of repentance, Severe in punishment, Bountiful in bounty. There
is no god but He. To Him is the ultimate return.
4. None argues
against God’s revelations except those who disbelieve. So do not be impressed
by their activities in the land.
5. Before them the
people of Noah rejected the truth, as did the confederates after them. Every
community plotted against their messenger, to capture him. And they argued with
falsehood, to defeat with it the truth. But I seized them. What a punishment it
was!
6. Thus the
sentence of your Lord became realized against those who disbelieve, that they
are to be inmates of the Fire.
7. Those who carry
the Throne, and those around it, glorify their Lord with praise, and believe in
Him, and ask for forgiveness for those who believe: “Our Lord, You have encompassed
everything in mercy and knowledge; so forgive those who repent and follow Your
path, and protect them from the agony of the Blaze.
8. And admit them,
Our Lord, into the Gardens of Eternity, which You have promised them, and the
righteous among their parents, and their spouses, and their offspring. You are
indeed the Almighty, the Most Wise.
9. And shield them
from the evil deeds. Whomever You shield from the evil deeds, on that Day, You
have had mercy on him. That is the supreme achievement.”
10. Those who
disbelieved will be addressed, “The loathing of God is greater than your
loathing of yourselves—for you were invited to the faith, but you refused.”
11. They will say,
“Our Lord, you made us die twice, and twice you gave us life. Now we acknowledge
our sins. Is there any way out?”
12. That is
because when God alone was called upon, you disbelieved; but when others were
associated with Him, you be lieved. Judgment rests with God the Sublime, the
Majestic.
13. It is He who
shows you His wonders, and sends down sustenance from the sky for you. But none
pays heed except the repentant.
14. So call upon
God, with sincere devotion to Him, even though the disbelievers resent it.
15. Exalted in
rank, Owner of the Throne. He conveys the Spirit, by His command, upon whomever
He wills of His servants, to warn of the Day of Encounter.
16. The Day when
they will emerge, nothing about them will be concealed from God. “To whom does
the sovereignty belong today?” “To God, the One, the Irresistible.”
17. On that Day,
every soul will be recompensed for what it had earned. There will be no
injustice on that Day. God is quick to settle accounts.
18. And warn them
of the Day of Imminence, when the hearts are at the throats, choking them. The
evildoers will have no intimate friend, and no intercessor to be obeyed.
19. He knows the
deceptions of the eyes, and what the hearts conceal.
20. God judges
with justice, while those whom they invoke besides Him cannot judge with
anything. It is God who is the Hearing, the Seeing.
21. Have they not
travelled through the earth, and seen the consequences for those before them?
They were stronger than them, and they left more impact on earth. But God
seized them for their sins, and they had no defender against God.
22. That is
because their messengers used to come to them with clear proofs, but they
disbelieved, so God seized them. He is Strong, Severe in retribution.
23. We sent Moses
with Our signs, and a clear authority.
24. To Pharaoh, Hamaan,
and Quaroon. But they said, “A lying sorcerer.”
25. Then, when he
came to them with the truth from Us, they said, “Kill the sons of those who
have believed with him, and spare their daughters.” But the scheming of the
unbelievers can only go astray.
26. Pharaoh said,
“Leave me to kill Moses, and let him appeal to his Lord. I fear he may change
your religion, or spread disorder in the land.”
27. Moses said, “I
have sought the protection of my Lord and your Lord, from every tyrant who does
not believe in the Day of Account.”
28. A believing
man from Pharaoh's family, who had concealed his faith, said, “Are you going to
kill a man for saying, `My Lord is God,’ and he has brought you clear proofs
from your Lord? If he is a liar, his lying will rebound upon him; but if he is truthful,
then some of what he promises you will
befall you. God does not guide the extravagant imposter.
29. O my people!
Yours is the dominion today, supreme in the land; but who will help us against
God’s might, should it fall upon us?” Pharaoh said, “I do not show you except
what I see, and I do not guide you except to the path of prudence.”
30. The one who
had believed said, “O my people, I fear for you the like of the day of the
confederates.
31. Like the fate
of the people of Noah, and Aad, and Thamood, and those after them. God wants no
injustice for the servants.
32. O my people, I
fear for you the Day of Calling Out.
33. The Day when you will turn and flee, having
no defender against God. Whomever God misguides has no guide.”
34. Joseph had
come to you with clear revelations, but you continued to doubt what he came to
you with. Until, when he perished, you said, “God will never send a messenger
after him.” Thus God leads astray the outrageous skeptic.
35. Those who
argue against God’s revelations, without any proof having come to them—a
heinous sin in the sight of God, and of those who believe. Thus God seals the
heart of every proud bully.
36. And Pharaoh
said, “O Hamaan, build me a tower, that I may reach the pathways.
37. The pathways
of the heavens, so that I may glance at the God of Moses; though I think he is
lying.” Thus Pharaoh’s evil deeds were made to appear good to him, and he was
averted from the path. Pharaoh's guile was only in defeat.
38. The one who
had believed said, “O my people, follow me, and I will guide you to the path of
rectitude.”
39. “O my people,
the life of this world is nothing but fleeting enjoyment, but the Hereafter is
the Home of Permanence.
40. Whoever
commits a sin will be repaid only with its like. But whoever works righteousness,
whether male or female, and is a believer—these will enter paradise, where they
will be provided for without account.
41. O my people,
how is it that I call you to salvation, and you call me to the Fire?
42. You call me to
reject God, and to associate with Him what I have no knowledge of, while I call
you to the Mighty Forgiver.
43. Without a
doubt, what you call me to has no say in this world, or in the Hereafter; and
our turning back is to God; and the transgressors are the inmates of the Fire.
44. You will
remember what I am telling you, so I commit my case to God. God is Observant of
the servants.” 45. So God protected him from the evils of their scheming, while
a terrible torment besieged Pharaoh’s clan.
46. The Fire. They
will be exposed to it morning and evening. And on the Day the Hour takes place: “Admit the clan of Pharaoh
to the most intense agony.”
47. As they
quarrel in the Fire, the weak will say to those who were arrogant, “We were
followers of yours; will you then spare us a portion of the Fire?”
48. Those who were
arrogant will say, “We are all in it; God has judged between the servants.”
49. And those in
the Fire will say to the keepers of Hell, “Call to your Lord to lessen our
suffering for one day.”
50. They will say,
“Did not your messengers come to you with clear signs?” They will say, “Yes.”
They will say, “Then pray, but the prayers of the disbelievers will always be
in vain.”
51. Most surely We
will support Our messengers and those who believe, in this life, and on the Day
the witnesses arise.
52. The Day when
their excuses will not profit the wrongdoers, and the curse will be upon them,
and they will have the Home of Misery.
53. We gave Moses
guidance, and made the Children of Israel inherit the Scripture.
54. A guide and a
reminder for those endowed with reason.
55. So be patient.
The promise of God is true. And ask forgiveness for your sin, and proclaim the
praise of your Lord evening and morning.
56. Those who
dispute regarding God’s revelations without any authority having come to
them—there is nothing in their hearts but the feeling of greatness, which they
will never attain. So seek refuge in God; for He is the All-Hearing, the All- Seeing.
57. Certainly the
creation of the heavens and the earth is greater than the creation of humanity,
but most people do not know.
58. Not equal are the blind and the seeing. Nor
are those who believe and work righteousness equal to the sinners. How little you
reflect.
59. Indeed, the
Hour is coming; there is no doubt about it; but most people do not believe.
60. Your Lord has
said, “Pray to Me, and I will respond to you. But those who are too proud to
worship Me will enter Hell forcibly.”
61. It is God Who
made the night for you, that you may rest therein; and the day allowing sight.
God is gracious towards the people, but most people do not give thanks.
62. Such is God,
your Lord, Creator of all things. There is no god except Him; so how could you
turn away?
63. Thus are
turned away those who dispute the signs of God.
64. It is God who
made the earth a habitat for you, and the sky a structure. And He designed you,
and designed you well; and He provided you with the good things. Such is God, your Lord; so Blessed is God, Lord
of the Worlds.
65. He is the
Living One. There is no god except He. So pray to Him, devoting your religion
to Him. Praise be to God, the Lord of the Worlds.
66. Say, “I was
prohibited from worshiping those you invoke besides God, now that clear
revelations have come to me from my Lord; and I was commanded to submit to the
Lord of the Worlds.”
67. It is He who
created you from dust, then from a seed, then from an embryo, then He brings
you out as an infant, then He lets you reach your maturity, then you become
elderly—although some of you die sooner—so that you may reach a predetermined age,
so that you may understand.
68. It is He who
gives life and death; and when He decides on a thing, He just says to it, “Be,”
and it comes to be.
69. Have you not
observed those who dispute regarding God's revelations, how they have deviated?
70. Those who call
the Book a lie, and what We sent Our messengers with—they will surely know.
71. When the yokes
are around their necks, and they will be dragged by the chains.
72. Into the
boiling water, then in the Fire they will be consumed.
73. Then it will
be said to them, “Where are those you used to deify?
74. Instead of
God?” They will say, “They have abandoned us. In fact, we were praying to
nothing before.” Thus God sends the disbelievers astray.
75. That is
because you used to rejoice on earth in other than the truth, and because you
used to behave with vanity.
76. Enter the
gates of Hell, to remain therein forever. What a terrible dwelling for the arrogant.
77. So be patient.
The promise of God is true. Whether We show you some of what We have promised
them, or take you to Us, to Us they will be returned.
78. We sent
messengers before you. Some of them We told you about, and some We did not tell
you about. No messenger can bring a miracle except by leave of God. Then, when
the command of God is issued, fair judgment will be passed, and there and then
the seekers of vanity will lose.
79. God is He who
created the domestic animals for you—some for you to ride, and some you eat.
80. And in them
you have other benefits as well, and through them you satisfy your needs. And
on them, and on the ships, you are transported.
81. And He shows
you His signs. So which of God’s signs will you deny?
82. Have they not
journeyed through the land, and seen the outcome for those before them? They
were more numerous than they, and had greater power and in fluence in the land.
But what they had achieved availed them nothing.
83. When their
messengers came to them with clear proofs, they rejoiced in the knowledge they
had, and the very things they used to ridicule besieged them.
84. Then, when
they witnessed Our might, they said, “We believe in God alone, and we reject
what we used to associate with Him.”
85. But their
faith could not help them once they witnessed Our might. This has been God’s
way of dealing with His servants. And there and then the disbelievers lost.
0 comments:
Post a Comment