सूरा-अन-नूर
| मदीना कालीन | आयत 64 |
रौशनी
अल्लाह के नाम से जो बहुत मेहरबान, रहम करने वाला है
यह एक सूरत है जो हम ने नाज़िल की, और इस (के अहकाम) को फ़र्ज किया, और हम ने इस में वाजेह आयतें नाज़िल की, ताकि तुम याद रखो (ध्यान दो)। (1)
बदकार औरत और बदकार मर्द दोनों में से हर एक को सो (100) कोड़े मारो, और उन पर न खाओ तरस अल्लाह का हुक्म (चलाने) में, अगर तुम अल्लाह पर और यौमे आखिरत पर ईमान रखते हो, और चाहिए कि उन की सज़ा (के वक्त) मौजूद हो मुसलमानों की एक जमाअत | (2)
बदकार मर्द बदकार औरत या मुश्रिका के सिवा निकाह नहीं करता, और बदकार औरत (भी) बदकार या शिर्क करने वाले मर्द के सिवा (किसी से) निकाह नहीं करती, और यह (ऐसा निकाह) मोमिनों पर हराम किया गया है। (3)
और जो लोग तुह्मत लगाएं पाक दामन औरतों पर, फिर वह (उस पर) चार (4)
गवाह न लाएं तो तुम उन्हें अस्सी (80) कोड़े मारो और तुम कुबूल न करो कभी उन की गवाही, यही नाफरमान लोग हैं। (4)
मगर जिन लोगों न उस के बाद तौबा कर ली और उन्हों ने इसलाह कर ली, तो बेशक अल्लाह बख्शने वाला निहायत मेहबान है। (5)
और जो लोग अपनी बीवियों पर तुह्मत लगाएं, और खुद उन के सिवा उन के गवाह न हों, तो उन में से हर एक की गवाही यह है कि अल्लाह की कसम के साथ चार बार गवाही दें कि वह सच बोलने वालों में से हैं (सच्चा है।। (6)
और पांचवी बार यह कि उस पर अल्लाह की लानत हो अगर वह झूट बोलने वालों में से है (झूटा है)। (7)
और उस औरत से टल जाएगी सज़ा अगर वह चार बार अल्लाह की कसम के साथ गवाही दे कि वह (मर्द) अलबत्ता झूटों में से है (झूटा है।। (8)
और पाँचवी बार यह कि उस औरत (मुझ) पर अल्लाह का गज़ब हो अगर वह सच्चों में से है (सच्चा है)। (9)
और अगर तुम पर न होता अल्लाह का फज्ल और उसकी रहमत (तो यह मुश्किल हल न होती) और यह कि अल्लाह तौबा कुबूल करने वाला, हक्मत वाला है। (10)
बेशक जो लोग बड़ा बुहतान लाए, तुम (ही) में से एक जमाअत हैं, तुम उसे अपने लिए बुरा गुमान न करो बल्कि वह तुम्हारे लिए बेहतर है, उन में से हर आदमी के लिए जितना उस ने किया (उतना) गुनाह है, और जिस ने उस का बड़ा (तूफ़ान) उठाया उस के लिए बड़ा अज़ाब है। (11)
जब तुम ने वह (बुहतान) सुना तो क्यों न गुमान किया मोमिन मदों और मोमिन औरतों ने अपनों के बारे में (गुमान) नेक, और उन्हों ने (क्यों न) कहा? यह सरीह बुहतान है। (12)
वह क्यों न लाए उस पर चार गवाह, पर जब वह गवाह न लाए तो अल्लाह के नजदीक वही झूटे हैं। (13)
और अगर तुम पर दुनिया और आखिरत में अल्लाह का फज्ल और उस की रहमत न होती तो जिस (शुग्ल में) तुम पड़े थे तुम पर ज़रूर पड़ता बड़ा अजाब (14)
जब तुम (एक दूसरे से सुन कर) उसे अपनी ज़बान पर लाते थे, और तुम अपने मुँह से कहते थे जिस का तुम्हें कोई इल्म न था, और तुम उसे हलकी बात गुमान करते थे, हालांकि वह अल्लाह के नजदीक बहुत बड़ी बात थी। (15)
जब तुम ने वह सुना क्यों न कहा? कि हमारे लिए (जेबा) नहीं है कि हम ऐसी बात कहें, (ऐ अल्लाह) तू पाक है, यह बड़ा बुहतान है। (16)
अल्लाह तुम्हें नसीहत करता है, (मुबादा) तुम ऐसा काम फिर कभी करो, अगर तुम ईमान वाले हो। (17)
और अल्लाह तुम्हारे लिए अहकाम (साफ़ साफ़) बयान करता है, और अल्लाह बड़ा जानने वाला, हिक्मत वाला है। (18)
बेशक जो लोग पसंद करते हैं कि मोमिनी में बेहयाई फैले उन के लिए दुनिया और आख़िरत में दर्दनाक अजाब है, और अल्लाह जानता है जो तुम नहीं जानते। (19)
और अगर तुम पर अल्लाह का फज्ल और रहमत न होती (तो किया कुछ न हो जाता) और यह कि अल्लाह शफ़क़त करने वाला, निहायत मेहबान है। (20)
ऐ मोमिनो! तुम शैतान के कदमों की पैरवी न करो, और जो शैतान के क़दमों की पैरवी करता है तो वह (शैतान) हुक्म देता है बेहयाई का और बुरी बात का, और अगर तुम पर अल्लाह का फज्ल और उस की रहमत न होती तो तुम में से कोई आदमी कभी भी न पाक होता, और लेकिन अल्लाह जिसे चाहता है पाक करता है, और अल्लाह सुनने वाला, जानने वाला है। (21)
और कसम न खाएं तुम में से फजीलत वाले और (माल में) वस्अत वाले कि वह क़राबतदारों को, मिस्कीनों को, और अल्लाह की राह में हिज्जत करने वालों को न देंगे| और चाहिए कि वह माफ़ कर दें, और दरगुजर करें, क्या तुम नहीं चाहते कि अल्लाह तुम्हें बख्शदे? और अल्लाह बख्शने वाला, निहायत मेहबान है। (22)
बेशक जो लोग पाक दामन, अन्जान मोमिन औरतों पर तुह्मत लगाते हैं उन पर दुनिया और आख़िरत में लानत है, और उन के लिए बड़ा अज़ाब है। (23)
जिस दिन उन की ज़बाने और उन के हाथ और उन के पाऊँ उन के खिलाफ गवाही देंगे उस की जो वह करते थे। (24)
उस दिन अल्लाह उन्हें उन का बदला ठीक ठीक पूरा देगा, और वह जान लेंगे कि अल्लाह ही बरहक़ है (हक को) जाहिर करने वाला। (25)
गन्दी औरतें गन्दे मदों के लिए हैं, और गन्दे मर्द गन्दी औरतों के लिए हैं, और पाक औरतें पाक मदर्दी के लिए हैं, और पाक मर्द पाक औरतों के लिए हैं. यह लोग उस से बरी हैं जो वह कहते हैं, उन के लिए मगफिरत और इज्जत की रोज़ी है। (26)
ऐ मोमिनों! तुम अपने घरों के सिवा (दूसरे) घरों में दाखिल न हो, यहां तक कि तुम इजाज़त ले लो, और उन के रहने वालों को सलाम कर लो, यह तुम्हारे लिए बेहतर है, ताकि तुम नसीहत पकड़ो। (27)
फिर अगर उस (घर) में तुम किसी को न पाओ तो उस में दाखिल न हो यहां तक कि तुम्हें इजाज़त दी जाए, और अगर तुम्हें कहा जाए कि लौट जाओ तो तुम लौट जाया करो, यही तुम्हारे लिए ज़ियादा पाकीज़ा है, और जो तुम करते हो अल्लाह जानने वाला है। (28)
तुम पर (इस में) कोई गुनाह नहीं अगर तुम उन घरों में दाखिल हो जिन में किसी की सुकूनत (रिहाइश) नहीं, जिस में तुम्हारी कोई चीज़ हो और अल्लाह (खूब) जानता है जो तुम जाहिर करते हो और जो तुम छुपाते हो। (29)
आप (स) फ़रमां दें मोमिन मी को कि वह अपनी निगाहें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें, यह उन के लिए जियादा सुथरा है, बेशक अल्लाह उस से बाखबर है जो वह करते हैं। (30)
और आप (स) फ़रमां दें मोमिन औरतों को कि वह नीची रखें अपनी निगाहें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें और अपनी जीनत (के मुकामात) को ज़ाहिर न करें मगर जो उस में से ज़ाहिर हुआ (जिस का ज़ाहिर होना नागुज़ीर है। और वह अपनी ओढ़नियां अपने गिरेबानों पर डाले रहें और अपनी जीनत (के मुकाम) जाहिर न करें सिवाए अपने ख़ावन्दों पर, या अपने बाप, या अपने खुसर, या अपने बेटों, या अपने शौहर के बेटों, या अपने भाइयों या अपने भतीजों पर, अपने भानजों, या अपनी मुसलमान औरतों, या अपनी कनीजों, या वह खिद्मतगार मर्द जो (औरतों से) गरज न रखने वाले हों, या वह लड़के जो अभी वाकिफ़ नहीं औरतों के पर्दे (मामलात से), और वह अपने पाऊं (जमीन पर) न मारें कि वह जो अपनी ज़ीनत छुपाए हुए है पहचान ली जाए, अल्लाह के आगे तौबा करो तुम सब ऐ ईमान वालो! ताकि तुम दो जहान की कामयाबी पाओ। (31)
और तुम निकाह करो अपनी बेवा औरतों का और अपने नेक गुलामों और अपनी कनीजों का, अगर वह तंग दस्त हों तो अल्लाह उन्हें गनी कर देगा अपने फज्ल से, और अल्लाह वस्अत वाला, इल्म वाला है। (32)
और चाहिए कि बचे रहें (पाक दामन रहें) वह जो कि निकाह (मक़दूर) नहीं पाते यहां तक कि अल्लाह उन्हें अपने फज्ल से गनी कर दे, और तुम्हारे गुलाम जो मकातिबत (कुछ ले दे कर आजादी की तहरीर) चाहते हों तो उन से मकातिबत कर लो अगर तुम उन में बेहतरी पाओ, और उस माल में से उन को दो जो अल्लाह ने तुम्हें दिया है, और अपनी कनीजों को बदकारी पर मजबूर न करो अगर वह पाक दामन रहना चाहें (महज़ इस लिए कि) तुम दुनिया की जिन्दगी का सामान हासिल कर लो, और जो उन्हें मजबूर करेगा तो अल्लाह उन (बेचारियों) के मजबूर किए जाने के बाद बख्शने वाला, निहायत मेहबान है। (33)
और तहकीक हम ने तुम्हारी तरफ़ नाज़िल किए वाजे अहकाम, और उन लोगों की मिसालें जो तुम से पहले गुज़रे हैं और नसीहत परहेज़गारों के लिए। (34)
अल्लाह नूर है ज़मीन और आस्मान का, उस के नूर की मिसाल (ऐसी है। जैसे एक ताक़ हो, उस में एक चिराग हो, चिराग एक शीशे की (क़न्दील में) हो, वह शीशा गोया एक चमकदार सितारा है, वह रोशन किया जाता है जैतून के एक मुबारक दरख्त से जो न शर्ती है न गरबी, क़रीब है कि उस का तेल रोशन हो जाए चाहे उसे आग न छुए, नूर पर नूर (सरासर रोशनी), अल्लाह जिस को चाहता है अपने नूर की तरफ रहनुमाई करता है, और अल्लाह लोगों के लिए मिसालें बयान करता है, और अल्लाह हर शै का जानने वाला। (35)
(यह रोशनी है। उन घरों में (जिन की निस्बत) अल्लाह ने हुक्म दिया है कि उन्हें बुलन्द किया जाए और उन में उस का नाम लिया जाए, वह उन में सुबह शाम उस की तसबीह करते हैं। (36)
वह लोग (जिन्हें) गाफ़िल नहीं करती कोई तिजारत, न ख़रीद ओ फरोख्त अल्लाह की याद से, नमाज़ काइम रखने और ज़कात अदा करने से, वह उस दिन से डरते हैं जिस में उलट जाएंगे दिल और आँखें। (37)
ताकि अल्लाह उन के आमाल की बेहतर से बेहतर जज़ा दे, और उन्हें अपने फज्ल से ज़ियादा दे, और अल्लाह जिसे चाहता है बेहिसाब रिजक देता है। (38)
और जिन लोगों ने कुफ़ किया उन के आमाल सुराब (चमकते रेत के धोके) की तरह है चटियल मैदान में, प्यासा उसे पानी गुमान करता है, यहां तक कि जब वह वहां आता है तो उसे कुछ भी नहीं पाता, और उस ने अल्लाह को अपने पास पाया तो अल्लाह ने उस का हिसाब पूरा कर दिया, और अल्लाह तेज़ हिसाब करने वाला है। (39)
(या उन के आमाल ऐसे हैं, जैसे गहरे दर्या में अन्धेरे, जिन्हें ढांप लेती है मौज, उस के ऊपर दूसरी मौज, उस के ऊपर बादल, अन्धेरे हैं एक पर दूसरा, जब वह अपना हाथ निकाले तो तवको नहीं कि उसे देख सके, और जिस के लिए अल्लाह नूर न बनाए उस के लिए कोई नूर नहीं। (40)
क्या तू ने नहीं देखा? कि अल्लाह की पाकीज़गी बयान करता है जो (भी) आस्मानों और जमीन में है, और पर फैलाए हुए परिन्दे (भी) हर एक ने जान ली है अपनी दुआ और अपनी तस्बीह, और अल्लाह जानता है जो वह करते हैं। (41)
और अल्लाह (ही) की बादशाहत है आस्मानों की और जमीन की, और अल्लाह (ही) की तरफ लौट कर जाना है। (42)
क्या तू ने नहीं देखा कि अल्लाह बादल चलाता है, फिर उन्हें आपस में मिलाता है, फिर वह उन्हें तह ब तह कर देता है, फिर तू देखे उन के दरमियान से बारिश निकलती है, और वह आस्मानी (में जो ओलों के) पहाड़ है उन से उतारता है ओले | फिर वह जिस पर चाहे डाल देता है, और जिस से चाहे वह उसे फेर देता है, करीब है कि उस की बिजली की चमक आँखों (की बीनाई) ले जाए। (43)
अल्लाह रात और दिन को बदलता है, बेशक उस में इब्रत है अक्ल मन्दों के लिए। (44)
और अल्लाह ने हर जानदार पानी से पैदा किया, पर उन में से कोई अपने पेट पर चलता है, और उन में से कोई दो पाऊँ पर चलता है, और उन में से कोई चार (पाऊं) पर चलता है। अल्लाह पैदा करता है जो वह चाहता है, बेशक अल्लाह हर शै पर कुदरत रखने वाला है। (45)
तहकीक हम ने वाजेह आयतें नाजिल की, और अल्लाह जिसे चहता है सीधे रास्ते की तरफ़ हिदायत देता है। (46)
और वह कहते हैं कि हम अल्लाह और रसूल पर ईमान लाए और हम ने हुक्म माना, फिर उस के बाद उस में से एक फरीक फिर गया, और वह ईमान वाले नहीं। (47)
और जब वह बुलाए जाते हैं अल्लाह और उस के रसूल की तरफ़ ताकि वह उन के दरमियान फैसला कर दे तो नागहां उन में से एक फ़रीक मुंह फेर लेता है। (48)
और अगर उन के लिए हक़ (पहुंचता) हो तो वह उस की तरफ़ गर्दन झुकाए (खुशी से) चले आते हैं। (49)
क्या उन के दिलों में कोई रोग है, या वह शक में पड़े हैं, या वह डरते हैं कि अल्लाह और उस का रसूल उन पर जुल्म करेंगे, (नहीं) बल्कि वही ज़ालिम हैं। (50)
मोमिनों की बात इस के सिवा नहीं कि जब वह अल्लाह और उस के रसूल की तरफ़ बुलाए जाते हैं ताकि वह उन के दरमियान फैसला कर दें, तो वह कहते है हम ने सुना और हम ने इताअत की और वही हैं फलाह (दो जहान की कामयाबी) पाने वाले| (51)
और जो कोई अल्लाह और उस के रसूल की इताअत करे और अल्लाह से डरे, और परहेज़गारी कर, पर वही लोग कामयाब होने वाले हैं। (52)
और उन्हों ने अल्लाह की जोरदार कसमें खाईं कि अगर आप (स) उन्हें हुक्म दें तो वह ज़रूर (जिहाद) के लिए निकल खड़े होंगे, आप (स) फ़रमां दें तुम कसमें न खाओ, पसंदीदा इताअत (मतलूब है), बेशक अल्लाह उस की खबर रखता है वह जो तुम करते हो। (53)
आप (स) फ़रमां दें तुम अल्लाह की और रसूल की इताअत करो, फिर आगर तुम फिर गए तो इस के सिवा नहीं कि रसूल पर उसी कदर है जो उस के ज़िम्मे किया गया है और तुम पर (लाज़िम है) जो तुम्हारे जिम्मे डाला गया है, अगर तुम उस की इताअत करोगे तो हिदायत पा लोगे, और रसूल पर सिर्फ साफ़ साफ़ पहुंचा देना है। (54)
अल्लाह ने उन लोगों से वादा किया है जो तुम में से ईमान लाए और उन्हीं ने नेक काम किए कि उन्हें ज़रूर खिलाफ़त (सलतनत) देगा ज़मीन में, जैसे उन के पहलों को खिलाफ़त दी, और उन के लिए उन के दीन को ज़रूर कुव्वत (इस्तेहकाम) देगा, जो उस ने उन के लिए पसंद किया, और उन के लिए खौफ के बाद ज़रूर अमन से बदल देगा, वह मैरी इबादत करेंगे, मेरा शरीक न करेंगे किसी शै को, और जिस ने उस के बाद नाशुक्री की, पर वही लोग नाफ़रमान हैं। (55)
और तुम नमाज़ काइम करो और जकात अदा करो, और रसूल की इताअत करो ताकि तुम पर रह्म किया जाए। (56)
हरगिज़ गुमान न करना कि काफ़िर जमीन में आजिज़ करने वाले हैं, और उन का ठिकाना दोज़ख़ है, और (वह) अलबत्ता बुरा ठिकाना है। (57)
ऐ ईमान वालो! चाहिए कि तुम्हारे गुलाम (तुम्हारे पास आने की) तुम से इजाजत लें, और वह जो नहीं पहुँचे तुम में से (हदे) शऊर को, तीन वक़्त (यानी) नमाजे फजर से पहले और जब तुम अपने कपड़े उतार कर रख देते हो दोपहर को, और नमाजे इशा के बाद, तुम्हारे लिए (यह) तीन पर्दे (के औकात) हैं, नहीं तुम पर और न उन पर कोई गुनाह उन के अलावा (औकात में), तुम में से बाज़, बाज़ के पास फिरा करते हैं, इसी तरह अल्लाह तुम्हारे लिए अहकाम वाजेह करता है, और अल्लाह जानने वाला हिक्मत वाला है। (58)
और जब तुम में से बच्चे पहुंचें हदे शऊर को, पर चाहिए कि वह इजाज़त लें जैसे उन से पहले इजाजत लेते थे, इसी तरह अल्लाह वाज़ेह करता है तुम्हारे लिए अपने अहकाम, और अल्लाह जानने वाला, हिक्मत वाला है। (59)
और जो खाना नशीन बूढ़ी औरतें निकाह की आरजू नहीं रखतीं, तो उन पर कोई गुनाह नहीं कि वह अपने (जाइद) कपड़े उतार रखें, जीनत (सिंघार) जाहिर न करते हुए, और अगर वह (उस से भी) बचें तो उन के लिए बेहतर है, और अल्लाह सुनने वाला जानने वाला है। (60)
कोई गुनाह नहीं नाबीना पर, और न लंगड़े पर कोई गुनाह है, और न बीमार पर कोई गुनाह है, न खुद तुम पर कि तुम खाओ अपने घरों से, या अपने बापों के घरो से, या अपनी मांओ के घरों से, या अपने भाइयों के घरो से, या अपनी बहनों के घरों से, या अपने ताए चचाओं के घरों से, या अपनी फुफियों के घरों से, या अपने खालू, मामूओं के घरों से. या अपनी खलाओं के घरों से, या जिस घर की कुन्जियां तुम्हारे क़बजे में हों, या अपने दोस्त के घर से, तुम पर कोई गुनाह नहीं कि तुम इकटठे मिल कर खाओ, या जुदा जुदा, फिर जब तुम घरों में दाखिल हो तो अपने लोगों को सलाम करो, दुआए खैर अल्लाह के हां से, बाबरकत, पाकीज़ा, इसी तरह अल्लाह तुम्हारे लिए अहकाम वाजेह करता है ताकि तुम समझो। (61)
इस के सिवा नहीं कि मोमिन वह है जिन्हों ने अल्लाह और उस के रसूल (स) पर यकीन किया और जब वह किसी इतिमाई काम में उस (रसूल) के साथ होते हैं तो चले नहीं जाते जब तक वह उस से इजाजत न ले लें, बेशक जो लोग आप (स) से इजाजत मांगते हैं यही लोग हैं जो अल्लाह और उस के रसूल पर ईमान लाए है, पर जब वह आप (स) से अपने किसी काम के लिए इजाजत मांगें तो इजाजत दे दें जिस को उन में से आप चाहें, और उन के लिए अल्लाह से बशिश मांगें, बेशक अल्लाह बख्शने वाला निहायत मेहबान है। (62)
तुम न बना लो अपने दरमियान रसूल को बुलाना जैसे तुम एक दूसरे को बुलाते हो, तहकीक़ अल्लाह जानता है उन लोगो को जो तुम में से नज़र बचा कर चुपके से खिसक जाते हैं, पर चाहिए कि वह डरें जो उस के हुक्म के खिलाफ़ करते हैं कि उन पर कोई आफ़त पहुंचे या उन को दर्दनाक अज़ाब पहुंचे। (63)
याद रखो! बेशक अल्लाह के लिए है जो कुछ आस्मानों में और जमीन में है, तहक़ीक वह जानता है जिस (हाल) पर तुम हो, और उस दिन को जब उस की तरफ़ वह लौटाए जाएंगे, फिर वह उन्हें बताएगा जो कुछ उन्हों ने किया, और अल्लाह हर शै को जानने वाला है। (64)
***
24. THE LIGHT
(an-Nur)
In the name of God, the Gracious, the Merciful.
1.
A chapter that We have revealed, and made obligatory, and revealed in it clear Verses,
that you may take heed.
2.
The adulteress and the adulterer—whip each one of them a hundred lashes, and
let no pity towards them overcome you regarding God’s Law, if you believe in
God and the Last Day. And let a group of believers witness their punishment.
3.
The adulterer shall marry none but an adulteress or an idolatress; and the
adulteress shall marry none but an adulterer or an idolater. That has been
prohibited for the believers.
4.
Those who accuse chaste women, then cannot bring four witnesses, whip them eighty
lashes, and do not ever accept their testimony. For these are the immoral.
5.
Except for those who repent afterwards, and reform; for God is Forgiving and Merciful.
6.
As for those who accuse their own spouses, but have no witnesses except themselves,
the testimony of one of them is equivalent to four testimonies, if he swears by
God that he is truthful.
7.
And the fifth time, that God’s curse be upon him, if he is a liar.
8.
But punishment shall be averted from her, if she swears four times by God, that
he is a liar.
9.
And the fifth time, that God’s wrath be upon her, if he is truthful.
10.
Were it not for God’s grace upon you, and His mercy, and that God is
Conciliatory and Wise.
11.
Those who perpetrated the slander are a band of you. Do not consider it bad for
you, but it is good for you. Each person among them bears his share in the sin.
As for him who played the major role—for him is a terrible punishment.
12.
Why, when you heard about it, the believing men and women did not think well of
one another, and say, “This is an obvious lie”?
13.
Why did they not bring four witnesses to testify to it? If they fail to bring
the witnesses, then in God’s sight, they are liars.
14.
Were it not for God’s favor upon you, and His mercy, in this world and the Hereafter,
you would have suffered a great punishment for what you have ventured into.
15.
When you rumored it with your tongues, and spoke with your mouths what you had
no knowledge of, and you considered it trivial; but according to God, it is
serious.
16.
When you heard it, you should have said, “It is not for us to repeat this. By Your
glory, this is a serious slander.”
17.
God cautions you never to return to the like of it, if you are believers.
18.
God explains the Verses to you. God is Knowing and Wise.
19.
Those who love to see immorality spread among the believers—for them is a painful
punishment, in this life and in the Hereafter. God knows, and you do not know.
20.
Were it not for God’s grace upon you, and His mercy, and that God is Clement and
Merciful.
21.
O you who believe! Do not follow Satan’s footsteps. Whoever follows Satan’s footsteps—he
advocates obscenity and immorality. Were it not for God’s grace towards you,
and His mercy, not one of you would have been pure, ever. But God purifies
whomever He wills. God is All- Hearing, All-Knowing.
22.
Those of you who have affluence and means should not refuse to give to the relatives,
and the needy, and the emigrants for the sake of God. And let them pardon, and
let them overlook. Do you not love for God to pardon you? God is All-Forgiving,
Most Merciful.
23.
Those who slander honorable, innocent, believing women are cursed in this life
and in the Hereafter. They will have a terrible punishment.
24.
On the Day when their tongues, and their hands, and their feet will testify against
them regarding what they used to do.
25.
On that Day, God will pay them their account in full, and they will know that God
is the Evident Reality.
26.
Bad women are for bad men, and bad men are for bad women, and good women are
for good men, and good men are for good women. Those are acquitted of what they
say. There is forgiveness for them, and a generous provision.
27.
O you who believe! Do not enter homes other than your own, until you have asked
permission and greeted their occupants. That is better for you, that you may be
aware.
28.
And if you find no one in them, do not enter them until you are given
permission. And if it is said to you, “Turn back,” then turn back. That is more
proper for you. God is aware of what you do.
29.
There is no blame on you for entering uninhabited houses, in which are
belongings of yours. God knows what you reveal, and what you conceal.
30.
Tell the believing men to restrain their looks, and to guard their privates.
That is purer for them. God is cognizant of what they do.
31.
And tell the believing women to restrain their looks, and to guard their
privates, and not display their beauty except what is apparent thereof, and to
draw their coverings over their breasts, and not expose their beauty except to
their husbands, their fathers, their husbands' fathers, their sons, their
husbands' sons, their brothers, their brothers' sons, their sisters' sons, their
women, what their right hands possess, their male attendants who have no sexual
desires, or children who are not yet aware of the nakedness of women. And they
should not strike their feet to draw attention to their hidden beauty. And
repent to God, all of you believers, so that you may succeed.
32.
And wed the singles among you, and those who are fit among your servants and maids.
If they are poor, God will enrich them from His bounty. God is All- Encompassing,
All-Knowing.
33.
And let those who do not find the means to marry abstain, until God enriches them
from His bounty. If any of your servants wish to be freed, grant them their wish,
if you recognize some good in them. And give them of God’s wealth which he has
given you. And do not compel your girls to prostitution, seeking the materials of
this life, if they desire to remain chaste. Should anyone compel them—after
their compulsion, God is Forgiving and Merciful.
34.
We have sent down to you clarifying revelations, and examples of those who passed
on before you, and advice for the righteous.
35.
God is the Light of the heavens and the earth. The allegory of His light is
that of a pillar on which is a lamp. The lamp is within a glass. The glass is
like a brilliant planet, fueled by a blessed tree, an olive tree, neither
eastern nor western. Its oil would almost illuminate, even if no fire has
touched it. Light upon Light. God guides to His light whomever He wills. God
thus cites the parables for the people. God is cognizant of everything.
36.
In houses which God has permitted to be raised, and His name is celebrated therein.
He is glorified therein, morning and evening.
37.
By men who neither trading nor commerce distracts them from God’s remembrance, and
from performing the prayers, and from giving alms. They fear a Day when hearts
and sights are overturned.
38.
God will reward them according to the best of what they did, and He will
increase them from His bounty. God provides for whomever He wills without
reckoning.
39.
As for those who disbelieve, their works are like a mirage in a desert. The
thirsty assumes it is to be water. Until, when he has reached it, he finds it
to be nothing, but there he finds God, Who settles his account in full. God is
swift in reckoning.
40.
Or like utter darkness in a vast ocean, covered by waves, above which are
waves, above which is fog. Darkness upon darkness. If he brings out his hand,
he will hardly see it. He to whom God has not granted a light has no light.
41.
Do you not realize that God is glorified by whatever is in the heavens and the earth,
and even by the birds in formation? Each knows its prayer and its manner of praise.
God knows well what they do.
42.
To God belongs the dominion of the heavens and the earth, and to God is the ultimate
return.
43.
Have you not seen how God propels the clouds, then brings them together, then
piles them into a heap, and you see the rain drops emerging from its midst? How
He brings down loads of hail from the sky, striking with it whomever He wills,
and diverting it from whomever He wills? The flash of its lightening almost snatches
the sight away.
44.
God alternates the night and the day. In that is a lesson for those who have
insight.
45.
God created every living creature from water. Some of them crawl on their
bellies, and some walk on two feet, and others walk on four. God creates
whatever He wills. God is Capable of everything.
46.
We sent down enlightening revelations, and God guides whomever He wills to a straight
path.
47.
And they say, “We have believed in God and the Messenger, and we obey,” but some
of them turn away afterwards. These are not believers.
48.
And when they are called to God and His Messenger, in order to judge between them,
some of them refuse.
49.
But if justice is on their side, they accept it willingly.
50.
Is there sickness in their hearts? Or are they suspicious? Or do they fear that
God may do them injustice? Or His Messenger? In fact, they themselves are the
unjust.
51.
The response of the believers, when they are called to God and His Messenger in
order to judge between them, is to say, “We hear and we obey.” These are the successful.
52.
Whoever obeys God and His Messenger, and fears God, and is conscious of Him—these
are the winners.
53.
And they swear by God with their solemn oaths, that if you commanded them, they
would mobilize. Say, “Do not swear. Obedience will be recognized. God is
experienced with what you do.”
54.
Say, “Obey God and obey the Messenger.” But if they turn away, then he is
responsible for his obligations, and you are responsible for your obligations.
And if you obey him, you will be guided. It is only incumbent on the Messenger
to deliver the clarifying message.
55.
God has promised those of you who believe and do righteous deeds, that He will
make them successors on earth, as He made those before them successors, and He
will establish for them their religion— which He has approved for them—and will
substitute security in place of their fear. They worship Me, never associating anything
with Me. But whoever disbelieves after that—these are the sinners.
56.
Pray regularly, and give regular charity, and obey the Messenger, so that you
may receive mercy.
57.
Never think that those who disbelieve can escape on earth. Their place is the Fire,
a miserable destination.
58.
O you who believe! Permission must be requested by your servants and those of you
who have not reached puberty. On three occasions: before the Dawn Prayer, and
at noon when you change your clothes, and after the Evening Prayer. These are
three occasions of privacy for you. At other times, it is not wrong for you or
them to intermingle with one another. God thus clarifies the revelations for
you. God is Knowledgeable and Wise.
59.
When the children among you reach puberty, they must ask permission, as those
before them asked permission. God thus clarifies His revelations for you. God is
Knowledgeable and Wise.
60.
Women past the age of childbearing, who have no desire for marriage, commit no
wrong by taking off their outer clothing, provided they do not flaunt their
finery. But to maintain modesty is better for them. God is Hearing and Knowing.
61.
There is no blame on the blind, nor any blame on the lame, nor any blame on the
sick, nor on yourselves for eating at your homes, or your fathers’ homes, or
your mothers’ homes, or your brothers’ homes, or your sisters’ homes, or the
homes of your paternal uncles, or the homes of your paternal aunts, or the
homes of your maternal uncles, or the homes of your maternal aunts, or those
whose keys you own, or the homes of your friends. You commit no wrong by eating
together or separately. But when you enter any home, greet one another with a
greeting from God, blessed and good. God thus explains the revelations for you,
so that you may understand.
62.
The believers are those who believe in God and His Messenger, and when they are
with him for a matter of common interest, they do not leave until they have asked
him for permission. Those who ask your permission are those who believe in God
and His Messenger. So when they ask your permission to attend to some affair of
theirs, give permission to any of them you wish, and ask God’s forgiveness for
them. God is Forgiving and Merciful.
63.
Do not address the Messenger in the same manner you address one another. God
knows those of you who slip away using flimsy excuses. So let those who oppose his
orders beware, lest an ordeal strikes them, or a painful punishment befalls them.
64.
Surely, to God belongs everything in the heavens and the earth. He knows what you
are about. And on the Day they are returned to Him, He will inform them of what
they did. God has full knowledge of all things.
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