सूरा-अल-हज
अल्लाह के नाम से जो बहुत मेहरबान, रहम करने वाला है।
ऐ लोगो! अपने रब से डरो, बेशक कियामत का जलजला बड़ी भारी चीज़ है। (1)
जिस दिन तुम उसे देखोगे, भूल जाएगी हर दूध पिलाने वाली जिस (बच्चे) को दूध पिलाती है, और हर हामिला अपना हम्ल गिरा देगी, और तू लोगों को देखेगा (जैसे वह) नशे में हों हालांकि वह नशे में न होंगे, लेकिन अल्लाह का अज़ाब सख्त है। (2)
और कुछ लोग हैं जो अल्लाह के बारे में बे जाने बूझे झगड़ा करते है, और वह हर सरकश शैतान की पैरवी करते हैं। (3)
उस की निसबत लिख दिया गया कि जो उस से दोस्ती करेगा तो वह बेशक उसे गुमराह कर देगा, और उसे दोज़ख के अजाब की तरफ़ राह दिखाएगा। (4)
ऐ लोगो! अगर तुम (कियामत के दिन) जी उठने से शक में हो तो (सोचो) हम ने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया, फिर नुत्फ़े से, फिर जमे हुए खून से, फिर गोश्त की बोटी से, सूरत बनी हुई और बगैर सूरत बनी (अधूरी) ताकि हम तुम्हारे लिए (अपनी कुदरत) जाहिर कर दें और हम (माओं के) रमों में से जो चाहें एक मुद्दत तक ठहराते हैं, फिर हम तुम्हें निकालते हैं बच्चे (की सूरत में) ताकि फिर तुम अपनी जवानी को पहुंची, और तुम में कोई (उसे तबई से कब्ल) फ़ौत हो जाता है, और तुम में से कोई पहुँचता है निकम्मी उस तक, ताकि वह जानने के बाद कुछ न जाने (नासमझ हो जाए)। और तू ज़मीन को देखता है खुश्क पड़ी हुई, फिर जब हम ने उस पर पानी उतारा तो वह तरोताजा हो गई, और उभर आई, और वह उगा लाई हर (किस्म) का जोड़ा रौनक़दार (नबातात का)। (5)
यह इस लिए है कि अल्लाह ही बरहा है, और यह कि वह मुर्दी को जिन्दा करता है, और यह कि वह हर शै पर कुदरत रखने वाला है। (6)
और यह कि क़ियामत आने वाली है, इस में कोई शक नहीं, और यह कि अल्लाह उठाएगा जो कबों में हैं। (7)
और लोगों में कोई (ऐसा भी है, जो अल्लाह के बारे में झगड़ता है बगैर किसी इल्म के, और बगैर किसी दलील के, और बगैर किसी किताबे रोशन के| (8)
(तकब्बुर से) अपनी गर्दन मोड़े हुए ताकि अल्लाह के रास्ते से गुमराह करे, उस के लिए दुनिया में रुस्वाई है और हम उसे रोजे कियामत जलती आग का अजाब चखाएंगे| (9)
यह उस सबब से जो तेरे हाथों ने (आगे) भेजा (तेरे आमाल) और यह कि अल्लाह अपने बन्दों पर जुल्म करने वाला नहीं। (10)
और लोगों में (कोई ऐसा भी है, जो एक किनारे पर अल्लाह की बन्दगी करता है, फिर अगर उसे भलाई पहुंच गई तो उस (इबादत) से इत्मिनान पा लिया, और उसे अगर कोई आजमाइश पहुंची तो वह अपने मुंह के बल पलट गया, दुनिया और आख़िरत के घाटे में रहा, यही है खुला घाटा। (11)
वह अल्लाह के सिवा पुकारता है (उस को) जो न उसे नुक्सान पहुंचा सके और न उसे नफा पहुंचा सके, यही है इन्तिहा दरजे की गुमराही। (12)
वह पुकारता है, उस को जिस का ज़रर उस के नफा से ज़ियादा करीब है, बेशक बुरा है (यह) दोस्त और बुरा है (यह) रफ़ीक़| (13)
जो लोग ईमान लाए और उन्हों ने दरुस्त अमल किए बेशक अल्लाह उन्हें उन बागात में दाखिल करेगा जिन के नीचे बहती हैं नहरें, बेशक अल्लाह जो चाहता है करता है। (14)
जो शख्स गुमान करता है कि अल्लाह उस (रसूल स) की हरगिज़ मदद न करेगा दुनिया और आखिरत में, तो उसे चाहिए के एक रस्सी । आस्मान की तरफ़ ताने, फिर उसे (आस्मान को) काट डाले, फिर देखे क्या उस की यह तदबीर उस चीज़ को दूर कर देती है जो उसे गुस्सा दिला रही है। (15)
और इसी तरह हम ने इस (कुरआन) को उतारा, रोशन आयतें और यह कि अल्लाह जिस को चाहता है हिदायत देता है। (16)
बेशक जो लोग ईमान लाए, और जो यहूदी हुए, और सितारा परस्त, और नसारा, और आतिश परस्त, और मुश्रिक, बेशक अल्लाह फैसला कर देगा रोजे कियामत उन के दरमियान, बेशक अल्लाह हर चीज़ पर मुत्तला है। (17)
क्या तू ने नहीं देखा? कि अल्लाह के लिए सिजदा करता है जो (भी) आस्मानों में और जो (भी) ज़मीन में है, और सूरज और चाँद और सितारे और पहाड़, और दरख्त, और चौपाए और बहुत से इन्सान (भी), और बहुत से हैं कि साबित हो गया है उन पर अजाब, और जिसे अल्लाह ज़लील करे उस के लिए कोई इज्जत देने वाला नहीं, और बेशक अल्लाह करता है जो वह चाहता है। (18)
यह दो फीक अपने रख के बारे में झगड़े, पर जिन्हों ने कुफ़ किया, उन के लिए आग के कपड़े काटे जा चुके है. उन के सरों के ऊपर खौलता हुआ पानी डाला जाएगा। (19)
उस से पिघल जाएगा जो उन के पेटी में है और (उन की) खाले (भी) (20)
और उन के लिए लोहे के गुर्ज हैं। (21)
जब भी वह गम के मारे उस से निकलने का इरादा करेंगे उसी में लौटा दिए जाएंगे और (कहा जाएगा) जलने का अजाब चखो। (22)
जो लोग ईमान लाए और उन्हों ने नेक अमल किए, बेशक अल्लाह उन्हें बागात में दाखिल करेगा जिन के नीचे बहती है नहरें, उस में उन्हें सोने के कंगन और मोती पहनाए जाएंगे, और उस में उन का लिबास रेशम (का होगा)। (23)
र उन्हें हिदायत की गई पाकीज़ा बात की तरफ़ और हिदायत की गई तारीफों के लाइक (अल्लाह) के रास्ते की तरफ़| (24)
बेशक जिन लोगों ने कुफ़ किया, और वह रोकते हैं अल्लाह के रास्ते से और बैतुल्लाह से जिसे हम ने मुकर्रर किया है सब लोगों के लिए, उस में रहने वाले और परदेसी बराबर हैं (हुकूक में) और जो उस में जुल्म से गुमराही का इरादा करेगा हम उसे दर्दनाक अजाब (का मज़ा) चखाएंगे। (25)
और (याद करो) जब हम ने इब्राहीम (अ) के लिए खाने कअबा की जगह ठीक कर दी, (हम ने हुक्म दिया) कि मेरे साथ किसी को शरीक न करना, और मेरा घर पाक रखना तवाफ़ करने वालों के लिए और क़ियाम करने वालों और रुकूअ ओ सिजदा करने वालों के लिए| (26)
और लोगों में हज का एलान कर दो कि वह तेरे पास पैदल और दुबली ऊंटनियों पर आएं, वह आती हैं हर दूर दराज रास्ते से| (27)
ताकि वह फाइदे देखें जो यहां उन के लिये रखे गए हैं, और वह अल्लाह का नाम लें मुकर्ररा दिनों में (जुबह करते वक्त) उन मवेशियों (जानवरों) पर जो हम ने उन्हें दिए हैं, पर उन में से तुम (खुद भी) खाओ और बदहाल मोहताज को (भी) खिलाओ। (28)
फिर चाहिए कि अपना मैल कुचैल दूर करें, और अपनी नज़रें (मन्नतें) पूरी करें, और क़दीम घर (बैतुल्लाह) का तवाफ़ करें। (29)
यह (है हुक्म) और जो अल्लाह की हुरमतों की ताजीम करे, पर वह (ताजीम) उस के रब के नजदीक उस के लिए बेहतर है, और तुम्हारे लिए मवेशी हलाल करार दिए गए उन के सिवा जो तुम पर पढ़ दिए (सुना दिए गए) पर तुम बचो (किनारा कश रहो) बुतों की गन्दगी से| और बचो झूटी बात से। (30)
(सब को छोड़ कर) अल्लाह के लिए यक रुख हो कर, (किसी को) न शरीक करने वाले उस के साथ, और जो कोई अल्लाह का शरीक करेगा तो गोया वह आस्मान से गिरा, फिर उसे परिन्दे उचक ले जाते हैं या फेंक देती है उस को हवा किसी दूर दराज़ की जगह में| (31)
यह (है हुक्म) और जो शआइरे अल्लाह (अल्लाह की निशानियाँ) की ताज़ीम करेगा तो बेशक यह दिलों की परहेज़गारी से है। (32)
तुम्हारे लिए उन (मवेशियों) में एक मुद्दते मुकर्रर तक फ़ाइदे (हासिल करना जाइज़) है, फिर उन के पहुंचने का मुकाम बैते क़दीम (बैतुल्लाह) के पास है। (33)
और हम ने हर उम्मत के लिए कुरबानी मुकर्रर की ताकि वह अल्लाह का नाम लें (जुबह करते वक्त) उन मवेशियों चौपायों पर जी हम ने उन्हें दिए हैं, पर तुम्हारा माबूद, माबूदे यकता है, पर उस के फ़रमांबरदार हो जाओ, और (ऐ मुहम्मद स) आजिज़ी से गर्दन झुकाने वालों को खुशखबरी दें। (34)
वह (जिन की कैफियत यह है कि) जब अल्लाह का नाम लिया जाए तो उन के दिल डर जाते हैं, और वह सब करने वाले उस पर जो उन्हें पहुंचे, और नमाज़ काइम करने वाले, और जो हम ने उन्हें दिया उस में से वह खर्च करते हैं। (35)
और कुरबानी के ऊँट हम ने तुम्हारे लिए शआइरे अल्लाह (अल्लाह की निशानियां) मुकर्रर किए, तुम्हारे लिए उन में भलाई है, पर अल्लाह का नाम लो (जुबह करते वक्त) उन पर क़तार बान्ध कर, फिर जब उन के पहलू (जमीन पर) गिर जाएं (जुबह हो जाएं) तो उन में से (खुद भी) खाओ और खिलाओ, सवाल न करने वालों को और सवाल करने वालों को, इसी तरह हम ने उन्हें तुम्हारे लिए मुसख्खर (जेरे फ़रमान) किया है ताकि तुम शुक्र करो (एहसान मानो)। (36)
अल्लाह को हरगिज़ नहीं पहुंचता उन का गोश्त और न उन का खून, बल्कि उस को पहुंचता है तकवा (तुम्हारे दिलों की परहेजगारी), उसी तरह हम ने उन्हें तुम्हारे लिए मुसख्खर (जेरे फ़रमान) किया ताकि तुम अल्लाह को बड़ाई से याद करो उस पर जो उस ने तुम्हें हिदायत दी, और नेकी करने वालों को खुशखबरी दें। (37)
बेशक अल्लाह दूर करता है मोमिनों से (दुश्मनों के ज़रर), बेशक अल्लाह किसी भी दगाबाज़ (खाइन) नाशुक्रे को पसंद नहीं करता। (38)
इजने (जिहाद) दिया गया उन लोगों को जिन से (काफ़िर) लड़ते हैं, क्यों कि उन पर जुल्म किया गया, और अल्लाह बेशक उन की मदद पर जरूर कुदतर रखता है। (39) जो लोग निकाले गए अपने शहरों से नाहक, सिर्फ (इस बिना पर) कि वह कहते हैं हमारा रब अल्लाह है, और अगर अल्लाह दफ़अ न करता लोगों को एक दूसरे से, तो सोमए (राहिबों के खिलवत खाने) और (नसारा के) गिरजे, और (यहूद के) इबादत खाने और (मुसलमानों की) मस्जिदें ढा दी जातीं जिन में अल्लाह का नाम बकस्रत लिया जाता है, और अलबत्ता अल्लाह जरूर उस की मदद करेगा जो उस की मदद करता है, बेशक अल्लाह तवाना, गालिब है। (40)
वह लोग कि अगर हम उन्हें मुल्क में दस्तरस (इखतियार) दें तो मनाज़ काइम करें और ज़कात अदा करें और नेक कामों का हुक्म दें और बुराई से रोकें, और तमाम कामों का अन्जाम अल्लाह ही के लिए है। (41)
और अगर यह तुम्हें झुटलाएं तो इन से कब्ल झुटलाया नूह (अ) की कौम ने, और आद और समूद ने, (42)
और इब्राहीम (अ) की कौम ने, और कौमे लूत (अ), (43)
और मदयन वालों ने, और मूसा (अ) को (भी) झुटलाया गया, पर मैं ने काफिरों को ढील दी, फिर मैं ने उन्हें पकड़ लिया, तो कैसा हुआ मेरे इन्कार (का अन्जाम)! (44)
सो कितनी ही बस्तियां हैं जिन्हें हम ने हलाक किया और वह जालिम थीं, तो वह (अब) अपनी छतों पर गिरी पड़ी हैं, और (कितने ही) कुएं बेकार पड़े हैं, और बहुत से गचकारी के (पुख्ता) महल (वीरान पड़े हैं।। (45)
पर क्या वह जमीन पर चलते । फिरते नहीं जो उन के दिल (ऐसे) हो जाते कि उन से समझने लगते, या उन के कान (ऐसे हो जाते कि) उन से सुनने लगते, क्यों कि आँखें दरहकीक़त अन्धी नहीं हुआ करतीं, बल्कि दिल जो सीनों में हैं अन्धे हो जाया करते हैं। (46)
और तुम से अज़ाब जल्दी मांगते हैं, और हरगिज न अल्लाह अपने वादे के खिलाफ़ करेगा, और बेशक तुम्हारे रब के हां एक दिन हजार साल के मानिंद है उस से जो तुम गिनते हो (तुम्हारे हिसाब में)1 (47)
और कितनी ही बस्तियां हैं, मैं ने उन को ढील दी और वह ज़ालिम थीं, फिर मैं ने उन्हें पकड़ा, और मेरी ही तरफ़ लौट कर आना है। (48)
फरमा दें, ऐ लोगो! इस के सिवा नहीं कि मैं तुम्हारे लिए आश्कारा डराने वाला हूँ। (49)
पर जो लोग ईमान लाए, और उन्हों ने अच्छे अमल किए, उन के लिए बखशिश और बाइज्जत रिजक है। (50)
और जिन लोगों ने कोशिश की (अपने जअम में) हमारी आयात को हराने में, वही है दोज़ख़ वाले । (51)
और हम ने तुम से पहले नहीं भेजा कोई रसूल और न नबी, मगर जब उस ने आर्जू की तो शैतान ने उस की आर्जू में (वस्वसा) डाला, पर शैतान जो डालता है अल्लाह मिटा देता है, फिर अल्लाह अपनी आयात को मजबूत कर देता है, और अल्लाह जानने वाला हिक्मत वाला है। (52)
ताकि (उस वस्वसे को) जो शैतान ने डाला उन लोगों के लिए आज़माइश बना दे जिन के दिलों में मरज है और उन के दिल सख्त हैं, और बेशक जालिम अलबत्ता सख्त ज़िद में हैं। (53)
और ताकि जान लें वह लोग जिन्हें इल्म दिया गया है कि यह तुम्हारे रब (की तरफ़ से) हक है तो उस पर ईमान ले आएं और उस के लिए झुक जाएं उन के दिल, और बेशक अल्लाह उन लोगों को सीधे रास्ते की तरफ़ हिदायत देने वाला है जो ईमान लाए। (54)
और वह हमेशा रहेंगे उस से शक में जिन लोगों ने कुफ़ किया, यहां तक कि उन पर अचानक क़ियामत आ जाए, या उन पर आ जाए मनहूस दिन का अज़ाब। (55)
उस दिन बादशाही अल्लाह के लिए है, वह उन के दरमियान फैसला करेगा, पर जो लोग ईमान लाए और उन्हों ने अच्छे अमल किए वह नेमतों के बागात में होंगे। (56)
और जिन लोगों ने कुफ़ किया और हमारी आयात को झुटलाया उन्हीं के लिए है जिल्लत का अजाव। (57)
और जिन लोगों ने अल्लाह के रास्ते में हिजत की, फिर मारे गए (शहीद हो गए) या मर गए, अल्लाह अलबत्ता उन्हें जरूर अच्छा रिजक देगा, और अल्लाह बेशक सब से बेहतर रिजक देने वाला। (58)
वह अलबत्तता उन्हें ज़रूर ऐसे मुक़ाम में दाखिल करेगा जिसे वह पसंद फरमाएंगे, और अल्लाह बेशक इल्म वाला, हिल्म वाला है। (59)
यह (तो हुआ), और जस ने दुश्मन को (उसी क़द्र) सताया जैसे उसे सताया गया था, फिर उस पर ज़ियादती की गई तो अल्लाह ज़रूर उस की मदद करेगा, बेशक अल्लाह अलबत्तता माफ़ करने वाला, बख्शने वाला है। (60)
यह इस लिए है कि अल्लाह रात को दिन में दाखिल करता है, और दिन को दाखिल करता है रात में, और यह कि अल्लाह सुनने वाला, देखने वाला है। (61)
यह इस लिए है कि अल्लाह ही हक है, और यह कि जिसे वह उस के सिवा पुकारते हैं वह बातिल है, और यह कि अल्लाह ही बुलन्द मरतबा, बड़ा है। (62)
क्या तू ने नहीं देखा? कि अल्लाह ने आस्मानों से पानी उतारा तो जमीन सरसब्ज़ हो गई, बेशक अल्लाह निहायत मेहरबान खबर रखने वाला है। (63)
उसी के लिए है जो आस्मानों में है, और जो कुछ जमीन में है.. और बेशक अल्लाह वही बेनियाज, तमाम खूबियों वाला है। (64)
क्या तू ने नहीं देखा कि अल्लाह ने तुम्हारे लिए मुसख्खर किया जो कुह जमीन में है, और कश्ती उस के हुक्म से दर्या में चलती है, और वह आस्मानों को रोके हुए है कि वह जमीन पर न गिर पड़े मगर उस के हुक्म से, बेशक अल्लाह लोगों पर बड़ा शफ़क़त करने वाला निहायत मेहरबान है। (65)
और वही है जिस ने तुम्हें जिन्दा किया, फिर तुम्हें मारेगा, फिर तुम्हें जिन्दा करेगा, बेशक इन्सान बड़ा नाशुक्रा है। (66)
हम ने हर उम्मत के लिए एक तरीके इबादत मुकर्रर किया है, वह उस पर (उसी के मुताबिक़) बन्दर्ग करते हैं, सो चाहिए कि इस मामले में न झगड़ें, और अपने रब की तरफ़ बुलाओ, बेशक तुम हो सीध राह पर (67)
और अगर वह तुम से झगड़ें तो आप (स) कह दें अल्लाह खूब जानता है जो तुम करते हो। (68)
अल्लाह रोजे कियामत तुम्हारे दरमियान उस बात का फैसला करेगा जिस में तुम इखतिलाफ़ करते थे। (69)
क्या तुझे मालूम नहीं? कि अल्लाह जानता है जो आस्मानों में और जो जमीन में है, बेशक यह किताब में है, बेशक यह अल्लाह पर आसान है। (70)
वह अल्लाह के सिवा (उस की) बन्दगी करते हैं जिस की उस ने कोई सनद नहीं उतारी, और उस का (खुद उन्हें कोई इल्म नहीं, और ज़ालिमों के लिए कोई मददगार नहीं। (71)
और जब उन पर हमारी वाजेह आयात पढ़ी जाती हैं, तो तुम काफ़िरों के चेहरों पर नाखुशी के (आसार) पहचान लोगे, करीब है कि वह उन पर हमला कर दें जो उन पर हमारी आयतें पढ़ते हैं, फरमा दें, क्या मैं तुम्हें बतलाऊँ जो इस से बदतर है, दोज़ख, जिस का अल्लाह ने काफिरों से वादा किया, और बुरा है (वह) ठिकाना। (72)
ऐ लोगो! एक मिसाल बयान की जाती है, पर उस को (कान खोल कर) सुनो, बेशक जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो वह हरगिज़ एक मक्खी (भी) न पैदा कर सकेंगे अगरचे उस के लिए वह सब जमा हो जाएं, और अगर मक्खी उन से कुछ छीन ले तो वह उस से न छुड़ा सकेंगे, (कितना) बोदा है चाहने वाला और जिस को चाहा (वह भी)। (73)
उन्हों ने अल्लाह की कद्र न जानी (जैसे) उस की कद्र करने का हक़ था, बेशक अल्लाह कुव्वत वाला गालिब है। (74)
अल्लाह फ़रिश्तों में से और आदमियों में से पैगाम पहुंचाने वाले चुन लेता है, बेशक अल्लाह सुनने वाला, देखने वाला है। (75)
वह जानता है जो उन के आगे और जो उन के पीछे है, और अल्लाह (ही) की तरफ़ सारे कामों की बाज़गश्त है। (76)
ऐ ईमान वालो! तुम रुकूअ करो, और सिज्दा करो, और इबादत करो अपने रब की, और अच्छे काम करो ताकि तुम दो जहान में कामयाबी पाओ। (77)
और (अल्लाह की राह में) कोशिश करो (जैसे) कोशिश करने का हक है। उस ने तुम्हें चुना, और उस ने तुम पर दीन में कोई तंगी नहीं डाली, तुम्हारे बाप इब्राहीम (अ) का दीन, उस ने तुम्हारा नाम मुसलमान रखा है, इस से कब्ल (भी) और इस (कुरआन) में भी, ताकि रसूल (अक्रम स) तुम्हारे निगरान ओ गवाह हों और तुम निगरान ओ गवाह हो लोगों पर, पर नमाज़ काइम करो, और ज़कात अदा करो, और अल्लाह (की रस्सी) को मजबूती से थाम लो, वह तुम्हारा कारसाज़ है, सो क्या ही अच्छा है कारसाज़, और (क्या ही) अच्छा है मददगार! (78)
***
22. THE PILGRIMAGE
(al-Hajj)
In the name of God, the
Gracious, the Merciful.
1. O people, be conscious of
your Lord. The quaking of the Hour is a tremendous thing.
2. On the Day when you will
see it, every nursing mother will discard her infant, and every pregnant woman
will abort her load, and you will see the people drunk, even though they are
not drunk—but the punishment of God is severe.
3. Among the people is he who
argues about God without knowledge, and follows every defiant devil.
4. It was decreed for him,
that whoever follows him—he will misguide him, and lead him to the torment of
the Blaze.
5. O people! If you are in
doubt about the Resurrection—We created you from dust, then from a small drop,
then from a clinging clot, then from a lump of flesh, partly developed and
partly undeveloped. In order to clarify things for you. And We settle in the
wombs whatever We will for a designated term, and then We bring you out as
infants, until you reach your full strength. And some of you will pass away, and
some of you will be returned to the vilest age, so that he may not know, after having
known. And you see the earth still, but when We send down water on it, it vibrates,
and swells, and grows all kinds of lovely pairs.
6. That is because God is the
truth, and because He gives life to the dead, and because He is Capable of
everything.
7. And because the Hour is
coming—there is no doubt about it—and because God will resurrect those in the
graves.
8. Among the people is he who
argues about God without knowledge, or guidance, or an enlightening scripture.
9. Turning aside in contempt,
to lead away from the path of God. He will have humiliation in this world, and
on the Day of Resurrection We will make him taste the agony of burning.
10. That is for what your
hands have advanced, and because God is not unjust to the servants.
11. And among the people is he
who worships God on edge. When something good comes his way, he is content with
it. But when an ordeal strikes him, he makes a turnaround. He loses this world
and the next. That is the obvious loss.
12. He invokes, instead of
God, what can neither harm him nor benefit him. That is the far straying.
13. He invokes one whose harm
is closer than his benefit. What a miserable master. What a miserable
companion.
14. God will admit those who
believe and do righteous deeds into Gardens beneath which rivers flow. God does
whatever He wills.
15. Whoever thinks that God
will not help him in this life and in the Hereafter—let him turn to heaven,
then sever, and see if his cunning eliminates what enrages him.
16. Thus We revealed it as
clarifying signs, and God guides whomever He wills.
17. Those who believe, and
those who are Jewish, and the Sabeans, and the Christians, and the
Zoroastrians, and the Polytheists— God will judge between them on the Day of
Resurrection. God is witness to all things.
18. Do you not realize that to
God prostrates everyone in the heavens and everyone on earth, and the sun, and
the moon, and the stars, and the mountains, and the trees, and the animals, and
many of the people? But many are justly deserving of punishment. Whomever God
shames, there is none to honor him. God does whatever He wills.
19. Here are two adversaries
feuding regarding their Lord. As for those who disbelieve, garments of fire
will be tailored for them, and scalding water will be poured over their heads.
20. Melting their insides and
their skins.
21. And they will have maces
of iron.
22. Whenever they try to
escape the gloom, they will be driven back to it: “Taste the suffering of
burning.”
23. But God will admit those
who believe and do good deeds into Gardens beneath which rivers flow. They will
be decorated therein with bracelets of gold and pearls, and their garments
therein will be of silk.
24. They were guided to purity
of speech. They were guided to the path of the Most Praised.
25. As for those who
disbelieve and repel from God’s path and from the Sacred Mosque—which We have
designated for all mankind equally, whether residing therein or passing
through—and seek to commit sacrilege therein—We will make him taste of a
painful punishment.
26. We showed Abraham the
location of the House, “Do not associate anything with Me; and purify My House
for those who circle around, and those who stand to pray, and those who kneel
and prostrate.”
27. And announce the
pilgrimage to humanity. They will come to you on foot, and on every transport.
They will come from every distant point.
28. That they may witness the
benefits for themselves, and celebrate the name of God during the appointed
days, for providing them with the animal livestock. So eat from it, and feed
the unfortunate poor.
29. Then let them perform
their acts of cleansing, and fulfill their vows, and circle around the Ancient
House.
30. All that. Whoever
venerates the sanctities of God—it is good for him with his Lord. All Livestock
are permitted to you, except what is recited to you. So stay away from the
abomination of idols, and stay away from perjury.
31. Being true to God, without
associating anything with Him. Whoever associates anything with God—it is as
though he has fallen from the sky, and is snatched by the birds, or is swept
away by the wind to a distant abyss.
32. So it is. Whoever
venerates the sacraments of God—it is from the piety of the hearts.
33. In them are benefits for
you until a certain time. Then their place is by the Ancient House.
34. We have appointed a rite
for every nation, that they may commemorate God’s name over the livestock He
has provided for them. Your God is One God, so to Him submit, and announce good
news to the humble.
35. Those whose hearts tremble
when God is mentioned, and those who endure what has befallen them, and those
who perform the prayer and spend from what We have provided for them.
36. We have made the animal
offerings emblems of God for you. In them is goodness for you. So pronounce
God’s name upon them as they line up. Then, when they have fallen on their
sides, eat of them and feed the contented and the beggar. Thus We have subjected
them to you, that you may be thankful.
37. Neither their flesh, nor
their blood, ever reaches God. What reaches Him is the righteousness from you.
Thus He subdued them to you, that you may glorify God for guiding you. And give
good news to the charitable.
38. God defends those who
believe. God does not love any ungrateful traitor.
39. Permission is given to
those who were wronged, and God is Able to give them victory.
40. Those who were unjustly
evicted from their homes, merely for saying, “Our Lord is God.” Were it not
that God repels people by means of others: monasteries, churches, synagogues,
and mosques— where the name of God is mentioned much—would have been
demolished. God supports whoever supports Him. God is Strong and Mighty.
41. Those who, when We empower
them in the land, observe the prayer, and give regular charity, and command
what is right, and forbid what is wrong. To God belongs the outcome of events.
42. If they deny you—before
them the people of Noah, and Aad, and Thamood also denied.
43. And the people of Abraham,
and the people of Lot.
44. And the inhabitants of
Median. And Moses was denied. Then I reprieved those who disbelieved, but then
I seized them. So how was My rejection?
45. How many a town have We
destroyed while it was doing wrong? They lie in ruins, with stilled wells, and
lofty mansions.
46. Have they not journeyed in
the land, and had minds to reason with, or ears to listen with? It is not the
eyes that go blind, but it is the hearts, within the chests, that go blind.
47. And they ask you to hasten
the punishment. But God never breaks His promise. A day with your Lord is like
a thousand years of your count.
48. How many a town have I
reprieved, although it was unjust? Then I seized it. To Me is the destination.
49. Say, “O people, I am only
a plain warner to you.”
50. Those who believe and work
righteousness— for them is forgiveness and a generous provision.
51. But those who strive
against Our revelations— these are the inmates of Hell.
52. We never sent a messenger
before you, or a prophet, but Satan interfered in his wishes. But God nullifies
what Satan interjects, and God affirms His revelations. God is Omniscient and
Wise.
53. In order to make Satan’s
suggestions a trial for those whose hearts are diseased, and those whose hearts
are hardened. The wrongdoers are in profound discord.
54. And so that those endowed
with knowledge may know that it is the truth from your Lord, and so believe in
it, and their hearts soften to it. God guides those who believe to a straight
path.
55. Those who disbelieve will
continue to be hesitant about it, until the Hour comes upon them suddenly, or
there comes to them the torment of a desolate Day.
56. Sovereignty on that Day
belongs to God; He will judge between them. Those who believe and do good deeds
will be in the Gardens of Bliss.
57. But those who disbelieve
and reject Our revelations—these will have a humiliating punishment.
58. Those who emigrate in
God’s cause, then get killed, or die, God will provide them with fine
provisions. God is the Best of Providers.
59. He will admit them an
admittance that will please them. God is Knowing and Clement.
60. That is so! Whoever
retaliates similarly to the affliction he was made to suffer, and then he is
wronged again, God will definitely assist him. God is Pardoning and Forgiving.
61. That is because God merges
the night into the day, and He merges the day into the night, and because God
is Hearing and Seeing.
62. That is because God is the
Reality, and what they invoke besides Him is vanity, and because God is the
Sublime, the Grand.
63. Do you not see that God
sends down water from the sky, and the land becomes green? God is Kind and
Aware.
64. To Him belongs everything
in the heavens and everything on earth. God is the Rich, the Praised.
65. Do you not see that God
made everything on earth subservient to you? How the ships sail at sea by His
command? That He holds up the sky lest it falls on earth—except by His
permission? God is Gracious towards the people, Most Merciful.
66. It is He who gives you
life, then makes you die, then revives you. The human being is unappreciative.
67. For every congregation We
have appointed acts of devotion, which they observe. So do not let them dispute
with you in this matter. And invite to your Lord; you are upon a straight
guidance.
68. But if they dispute with
you, say, “God is fully aware of what you do.”
69. God will judge between you
on the Day of Resurrection regarding what you disagree about.
70. Do you not know that God
knows everything in the heavens and the earth? This is in a book. That is easy
for God.
71. Yet they worship, besides
God, things for which He sent down no warrant, and what they have no knowledge
of. There is no savior for the transgressors.
72. And when Our Clear Verses
are recited to them, you will recognize disgust on the faces of those who
disbelieve. They nearly assault those who recite to them Our Verses. Say,
“Shall I inform you of something worse than that? The Fire! God has promised it
to those who disbelieve. And what a wretched outcome!”
73. O people! A parable is
presented, so listen to it: Those you invoke besides God will never create a
fly, even if they banded together for that purpose. And if the fly steals
anything from them, they cannot recover it from it. Weak are the pursuer and the
pursued.
74. They do not value God as
He should be valued. God is Strong and Powerful.
75. God chooses messengers
from among the angels, and from among the people. God is Hearing and Seeing.
76. He knows what is before
them, and what is behind them. To God all matters are referred.
77. O you who believe! Kneel,
and prostrate, and worship your Lord, and do good deeds, so that you may
succeed.
78. And strive for God, with the striving due to Him. He has chosen
you, and has not burdened you in religion—the faith of your father Abraham. It
is he who named you Muslims before, and in this. So that the Messenger may be a
witness over you, and you may be witnesses over the people. So pray regularly,
and give regular charity, and cleave to God. He is your Protector. What an
excellent Protector, and what an excellent Helper.
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