Quran-E-Pak

सूरा-अन-नम्ल | Surah 27

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सूरा-अन-नम्ल

| मक्का कालीन | आयत 93|

चीटियाँ 

सूरा-अन-नम्ल | Surah 27

अल्लाह के नाम से जो बहुत मेहरबान, रहम करने वाला है।

ताासीन - यह आयतें हैं कुरआन और रोशन वाजेह किताब की। (1) 

हिदायत और खुशखबरी मोमिनों के लिए| (2) 

जो लोग नमाज़ काइम रखते हैं, और ज़कात अदा करते हैं, और आखित पर यकीन रखते हैं। (3) 

बेशक जो लोग आखिरत पर ईमान नहीं लाते हम ने उन के अमल उन के लिए आरास्ता कर दिखाए हैं, परवह भटकते फिरते हैं। (4) 

यही हैं वह लोग जिन के लिए बुरा अजाब है, और वह आखिरत में सब से बढ़ कर खसारा उठाने वाले हैं। (5)

और बेशक तुम्हें कुरआन हिक्मत वाले इल्म वाले की तरफ से दिया जाता है। (6) 

(याद करो) जब मूसा (अ) ने अपने घर वालों से कहा बेशक मैं ने देखी है एक आग, मैं अभी तुम्हारे पास उस की कोई खबर लाता हूँ या आग का अंगारा तुम्हारे पास लाता हूँ ताकि तुम सेंको। (7) 

पर जब वह आग के पास आया (अल्लाह तआला की तरफ से) निदा दी गई कि बरकत दिया गया जो आग में (जलवा अफ़रोज़ है, जो उस के आस पास है (मूसा अ) और पाक है अल्लाह सारे जहानों का परवरदिगार| (8) 

ऐ मूसा (अ) हकीकत यह है कि मैं ही अल्लाह गालिब हिक्मत वाला हूँ। (9) 

और तू अपना असा (नीचे) डाल दे पर जब उस ने उसे लहराता हुआ देखा गोया वह सांप है तो (मूसा अ) पीठ फेर कर लौट गया और उस ने मुड़ कर न देखा, (इरशाद हुआ) ऐ मूसा (अ)! तू खौफ़ न खा, बेशक मेरे पास रसूल खौफ़ नहीं खाते। (10) 

मगर जिस ने जुल्म किया, फिर उस ने बुराई के बाद उसे भलाई से बदल डाला तो बेशक मैं बख्शने वाला, निहायत मेहरबान हूँ। (11) 

और अपना हाथ अपने गरेबान में डाल वह किसी ऐब के बगैर सफेद रोशन (हो कर) निकलेगा, नौ (9) 

निशायिॉन में से (यह दो मोजिजे ले कर) फ़िरऔन और उस की कौम की तरफ़ (जा), बेशक वह नाफ़रमान कौम है। (12) 

फिर जब उन के पास आई हमारी निशानियां आँखे खोलने वाली, वह बोले यह खुला जादू है। (13) 

हालांकि उन के दिलों को उस का यकीन था, उन्हों ने उस का इन्कार किया जुल्म और तकब्बुर से| तो देखो! फ़साद करने वालों का कैसा अन्जाम हुआ? (14) 

और तहक़ीक़ हम ने दिया दाऊद (अ) और सुलेमान (अ) को इल्म, और उन्हों ने कहा तमाम तारीफें अल्लाह के लिए हैं, वह जिस ने हमें फजीलत दी अक्सर अपने मोमिन बन्दों पर। (15) 

और सुलेमान (अ), दाऊद (अ) का वारिस हुआ, और उस ने कहा ऐ लोगो! मुझे सिखाई गई है परिन्दों की बोली, और हमें हर चीज़ (नेमत) से दी गई है, बेशक यह खुला फज्ल है। (16) 

और सुलेमान (अ) के लिए उस का लशकर जिन्नों, इन्सानों और परीन्दों का जमा किया गया, पर वह तरतीब में रखे जाते थे। (17) 

यहां तक कि वह चींटियों के मैदान में आए, एक चींटी ने कहा, ऐ चीटियों! तुम अपने बिलों में दाखिल हो जाओ, (कहीं) सुलेमान (अ) और उस का लशकर तुम्हें रौन्द न डाले और उन्हें खबर भी न हो। (18) 

तो वह हंसते हुए मुसकुराया उस की बात से, और कहा ऐ मेरे रब! मुझे तौफ़ीक़ दे कि मैं तेरी नेमत का शुक्र अदा करूँ जो तू ने मुझ पर इन्आम फ़रमाई है, और मेरे माँ बाप पर, और यह कि मैं नेक काम करूं जो तू पसंद करे और अपनी रहमत से मुझे अपने नेक बन्दों में दाखिल फ़रमा ले। (19)

और उस ने परिन्दों का जाइज़ा लिया तो कहा क्या (बात) है मैं हुद हुद को नहीं देखता, क्या वह गाइब हो जाने वालों में से है? (20) 

अलबत्ता मैं उसे ज़रूर सख्त सज़ा दूंगा या उसे जुबह कर डालूंगा, या उसे ज़रूर कोई माकूल वजह मेरे पास लानी (पेश करनी) चाहिए। (21) 

सो उस (हुद हुद) ने थोड़ी सी देर की, फिर कहा मैं ने मालूम किया है वह जो तुम को मालूम नहीं, और मैं तुम्हारे पास सबा से एक यकीनी खबर लाया हूँ। (22) 

बेशक मैं ने एक औरत को देखा है, वह उन पर बादशाहत करती है, और (उसे) हर शै दी गई है, और उस के लिए एक बड़ा तखुत है। (23) 

मैं ने उसे और उस की कौम को अल्लाह के सिवा (अल्लाह को छोड़ कर) सूरज को सिजदा करते पाया है, और शैतान ने उन्हें आरास्ता कर दिखाया है उन के अमल, पर उन्हें (सीधे) रास्ते से रोक दिया है सो वह राह नहीं पाते। (24) 

और अल्लाह को (क्यों) सिज्दा नहीं करते? वह जो आस्मानों में और जमीन में छुपी हुई (चीज़ों को) निकालता है, और जानता है जो तुम छुपाते हो और जो तुम जाहिर करते हो। (25) 

अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, वह अर्श अजीम का मालिक है। (26) 

सुलेमान (अ) ने कहा, हम अभी देख लेंगे क्या तू ने सच कहा है? या तू झूटों में से है (झूटा है)? (27) 

मेरा यह ख़त ले जा, पर यह उन की तरफ़ डाल दे, फिर उन से लौट आ, फिर देख वह क्या जवाब देते हैं। (28) 

वह औरत कहने लगी, ऐ सरदारो! बेशक मेरी तरफ़ एक बा वक्त ख़त डाला गया है। (29) 

बेशक वह सुलेमान (अ) (की तरफ़) से है और बेशक वह (यूँ है) “अल्लाह के नाम से जो रह्म करने वाला निहायत मेहरबान है"I (30) 

यह कि मुझ पर (मेरे मुकाबले में) सरकशी न करो, और मेरे पास आओ फ़रमांबरदार हो कर| (31) 

वह बोली, ऐ सरदारो! मेरे मामले में मुझे राए दो, मैं किसी मामले में फैस्ला करने वाली नहीं (फैस्ला नहीं करती) जब तक तुम मौजूद (न) हो। (32) 

वह बोले हम कुव्वत वाले, बड़े लड़ने वाले हैं, और फैसला तेरे इख्तियार में है, तू देख ले तुझे क्या हुक्म करना है। (33) 

वह बोली, बेशक जब बादशाह किसी बस्ती में दाखिल होते हैं तो उसे तबाह कर देते है, और वहां के मुअज़ज़िज़ीन को जलील कर दिया करते हैं, और वह उड़ी तरह करते हैं। (34)

और बेशक मैं उन की तरफ एक तोहफा भेजने वाली हूँ, फिर देखती हूँ क्या जवाब ले कर लौटते हैं कासिद| (35) 

पर जब सुलेमान (अ) के पास कासिद आया तो उस ने कहा कि तुम माल से मेरी मदद करते हो? पर जो अल्लाह ने मुझे दिया है वह बेहतर है उस से जो उस ने तुम्हें दिया है, बल्कि तुम अपने तोहफ़े से खुश होते हो। (36) 

तू उन की तरफ़ लौट जा, सो हम उन पर ज़रूर लाएंगे ऐसा लशकर जिस (के मुकाबले) की उन्हें ताक़त न होगी, और हम ज़रूर उन्हें वहां से जलील कर के निकाल देंगे| और वह खार होंगे| (37) 

सुलेमान (अ) ने कहा ऐ सरदारो! तुम में कौन उस का तखत मेरे पास लाएगा? इस से कब्ल कि वह मेरे पास फ़रमांबरदार हो कर आएं। (38) 

कहा जिन्नात में से एक कवी हैकल ने, बेशक मैं उस को आप के पास इस से कब्ल ले आऊंगा कि आप अपनी जगह से खड़े हों, मैं बेशक उस पर अलबत्ता कुव्वत वाला, अमानतदार हूँ। (39) 

उस शख्स ने कहा जिस के पास किताब (इलाही) का इल्म था, मैं उस को तुम्हारे पास उस से कब्ल ले आऊंगा कि तुम्हारी आँख पलक झपके, पर जब सुलेमान (अ) ने (अचानक) उसे अपने पास रखा हुआ देखा तो उस ने कहा यह मेरे रब के फज्ल से है, ताकि वह मुझे आज़माए आया मैं शुक्र करता हूँ या नाशुक्री करता हूँ? और जिस ने शुक्र किया तो पर वह अपनी ज़ात के लिए शुक्र करता है, और जिस ने नाशुक्री की तो बेशक मेरा रब बेनियाज, करम करने वाला है। (40) 

उस ने कहा उस (मलिका के इम्तिहान के लिए) उस के तख्त की शकल बदल दो, हम देखें कि आया वह समझ जाती है या उन लोगों में से होती है जो नहीं समझते। (41) 

पर जब वह आई (उस से) कहा गया क्या तेरा तख्त ऐसा ही है? वह बोली गोया कि यह वही है और हमें इस से पहले ही इल्म दिया गया (इल्म हो गया था) और हम हैं मुसलमान (फ़रमांबरदार)। (42) 

और उस को (ईमान लाने से रोक रखा था उन माबूदों ने जिन की वह अल्लाह के सिवा परस्तिश करती थी, क्योंकि वह काफिरों की कौम से थी। (43) 

उस से कहा गया कि महल में । दाखिल हो, जब उस (मलिका) ने उस (के फर्श) को देखा तो उसे गहरा पानी समझा और (पाएंचे उठा कर) अपनी पिंडलियाँ खोल दी, उस (सुलेमान अ) ने कहा बेशक यह शीशों से जुड़ा हुआ महल है, वह बोली ऐ मेरे रब! बेशक मैं ने अपनी जान पर जुल्म किया, और (अब) मैं सुलेमान (अ) के साथ (सुलेमान अ के तरीके पर) तमाम जहानों के रख अल्लाह पर ईमान लाई। (44) 

और तहकीक हम ने (कौम) समूद की तरफ़ उन के भाई सालेह (अ) को भेजा कि अल्लाह की इबादत करो, पर नागहां वह दो फ़रीक हो गए बाहम झगड़ने लगे। (45) 

उस ने कहा, ऐ मेरी कौम! तुम भलाई से पहले बुराई के लिए क्यों जल्दी करते हो? क्यों नहीं तुम । अल्लाह से बखुशिश मांगते, ताकि तुम पर रह्म किया जाए। (46) 

वह बोले हम ने तुझ से और तेरे साथियों से बुरा शगुन लिया है, उस ने कहा तुम्हारी बदशगुनी अल्लाह के पास (अल्लाह की तरफ़ से) है बल्कि तुम एक क़ौम हो (जो) आजमाए जाते हो। (47)

और शहर में थे नौ (9) शख्स वह मुल्क में फ़साद करते थे, और इस्लाह न करते थे। (48) 

वह कहने लगे तुम बाहम अल्लाह की कसम खाओ अलबत्ता हम । जरूर उस पर और उस के घर वालों पर शबखून मारेंगे और फिर उस के वारिसों को कह देंगे, हम उस के घर वालों की हलाकत के वक्त मौजूद न थे, और बेशक हम अलबत्ता सच्चे हैं। (49) 

और उन्हों ने एक मकर किया और हम ने (भी) एक खुफ़िया तदबीर की और वह न जानते थे (बेख़बर) थे। (50) 

पर देखो उन के मकर का अन्जाम कैसा हुआ! कि हम ने उन्हें और उन की कौम सब को हलाक कर डाला। (51) 

अब यह उन के घर हैं, गिरे पड़े, उन के जुल्म के सबब, बेशक उस में उन लोगों के लिए निशानी है जो जानते हैं। (52) 

और हम ने उन लोगों को नजात दी जो ईमान लाए और वह परहेजगारी करते थे। (53) और (याद करो) जब लूत (अ) ने अपनी कौम से कहा क्या तुम बेहयाई पर उतर आए हो? और तुम देखते हो। (54) 

क्या तुम औरतों को छोड़ कर मदर्दी के पास शहवत रानी के लिए आते हो? बलकि तुम लोग जहालत करते हो। (55) 

पर उस की कौम का जवाब सिर्फ यह था कि लूत (अ) के साथियों को निकाल दो अपने शहर से, वैशक यह लोग पाकीज़गी पसंद करते हैं। (56) 

सो हम ने उसे बचा लिया और उस के घर वालों को सिवाए उस की बीवी के, उसे हम ने पीछे रह जाने वालों में से ठहरा दिया था। (57) 

और हम ने उन पर एक बारिश बरसाई, सो क्या ही बुरी बारिश थी डराए गए लोगों पर। (58) 

आप (स) फ़रमा दें तमाम तारीफें अल्लाह के लिए हैं और उस के बन्दों पर सलाम हो जिन्हें उस ने चुन लिया, क्या अल्लाह बेहतर है या वह जिन्हें वह शरीक ठहराते हैं? (59) 

भला कौन है? जिस ने आस्मान को और ज़मीन को पैदा किया, और तुम्हारे लिए आस्मान से पानी उतारा, फिर हम ने उस से बा रौनक बाग उगाए, तुम्हारे लिए (मुमकिन) न था कि तुम उन के दरख्त उगा सको, क्या अल्लाह के साथ कोई (और) माबूद है? बलकि वह लोग कज रवी करते हैं। (60) 

भला कौन है? जिस ने जमीन को करारगाह बनाया, और उस के दरमियान नदी नाले (जारी किए) और उस के लिए पहाड़ बनाए, और दो दर्याओं के दरमियान हदे फ़ासिल बनाई, क्या अल्लाह के साथ कोई (और) माबूद है? बल्कि उन के अकसर नहीं जानते। (61) 

भला कौन है? जो बेकरार (की। दुआ) कुबूल करता है जब वह उसे पुकरता है, और बुराई दूर करता है, और तुम्हें ज़मीन में नाइव बनाता है, क्या अल्लाह के साथ कोई और माबूद है? थोड़े हैं जो नसीहत पकड़ते हैं। (62) 

भला कौन है जो खुश्की (जंगल) और समुन्दर के अन्धेरों में तुम्हें राह दिखाता है? और कौन है जो उस की रहमत (बारिश) से पहले खुशखबरी देने वाली हवाएं चलाता है? क्या अल्लाह के साथ कोई (और) माबूद है? अल्लाह बरतर है उस से जो यह शरीक ठहराते है? (63) 

भला कौन है जो मखलूक को पहली बार पैदा करता है? फिर वह उसे दोबारा जिन्दा करेगा, और कौन है जो तुम्हें रिजक देता है? आस्मान और ज़मीन से, क्या अल्लाह के साथ कोई (और) माबूद है? आप (स) फ़रमा दें कि ले आओ अपनी दलील अगर तुम सच्चे हो। (64) 

आप (स) फ़रमा दें, जो (भी) आस्मानों और जमीन में है, अल्लाह के सिवा गैब (की बातें) नहीं जानता, और वह नहीं जानते कि वह कब (जी) उठाए जाएंगे? बलकि आखिरत के बारे में उन का इल्म थक कर रह गया है। (65) 

(कुछ भी नहीं बल्कि वह उस से शक में हैं, बल्कि वह उस से अन्धे हैं। (66)

और काफ़िरों ने कहा क्या जब हम और हमारे बाप दादा मिट्टी हो जाएंगे क्या हम (कब्रों से) निकाले जाएंगे? (67) 

तहक़ीक़ यही वादा हम से और हमारे बाप दादा से इस से कब्ल किया गया था, यह सिर्फ अगलों की कहायिां हैं। (68) 

आप (स) फ़रमा दें ज़मीन में चलो फिरो, फिर देखो कैसा अन्जाम हुआ मुक्रिमों का! (69) 

और आप (स) गम न खाएं, और आप (स) दिल तंग न हों, उस से जो वह मकर ओ फ़रेब करते हैं। (70)

और वह कहते हैं यह वादा कब पूरा होगा? अगर तुम सच्चे हो। (71) 

आप (स) फ़रमा दें शायद उस (अज़ाब) का कुछ तुम्हारे लिए करीब आगया हो जिस की तुम जल्दी करते हो। (72)

और बेशक तुम्हारा रब अलबत्ता लोगों पर फज्ल वाला है, लेकिन उन के अक्सर शुक्र नहीं करते। (73)

और बेशक तुम्हारा रब खूब जानता है जो उन के दिलों में छुपी हुई है और जो वह जाहिर करते है। (74) 

और कुछ गाइब (पोशीदा) नहीं जमीन ओ आस्मान में मगर वह किताब रोशन में लिखी हुई) है। (75) 

बेशक यह कुरआन बनी इस्राईल पर (बनी इस्राईल के सामने) अक्सर वह बातें बयान करता है जिस में वह इखतिलाफ़ करते हैं। (76)

और बेशक यह (कुरआन) अलबत्ता ईमान लाने वालों के लिए हिदायत और रहमत है। (77)

बेशक तुम्हारा रब अपने हुक्म से उन के दरमियान फैसला करता है, और वह गालिब, इल्म वाला है। (78) पर अल्लाह पर भरोसा करो, बेशक तुम वाजेह हक पर हो। (79) 

बेशक तुम मुदी को नहीं सुना सकते, न बहरों को (अपनी) पुकार सुना सकते हो (खसूसन) जब वह पीठ फेर कर मुड़ जाएं| (80) 

और तुम अन्धों को उन की गुमराही से हिदायत देने वाले नहीं। तुम सिर्फ (उस को) सुना सकते हो जो ईमान लाता है हमारी आयतों पर, पर वह फ़रमांबरदार हैं। (81) 

और जब उन पर वादा-ए-अजाब पूरा हो जाएगा तो हम उन के लिए निकालेंगे ज़मीन से एक जानवर, वह उन से बातें करेगा क्यों कि लोग हमारी आयतों पर यकीन न करते थे। (82) 

और जिस दिन हम हर उम्मत में से एक गिरोह जमा करेंगे उन में से जो हमारी आयतों को झुटलाते थे, फिर उन की जमाअत बन्दी की जाएगी। (83) 

यहां तक कि जब वह आजाएंगे (अल्लाह तआला) फ़रमाएगा क्या तुम ने मेरी आयतों को झुटलाया था हालांकि तुम उन को (अपने) अहाता-ए-इल्म में भी नहीं लाए थे (या बतलाओ) तुम क्या करते थे? (84)

और उन पर वादा-ए-अज़ाब पूरा हो गया, इस लिए कि उन्हों ने जुल्म किया था, पर वह बोल न सकेंगे। (85) 

क्या वह नहीं देखते कि हम ने रात को इस लिए बनाया कि वह उस में आराम हासिल करें और दिन देखने को (रोशन बनाया) बेशक उस में अलबत्ता उन लगों के लिए निशानियां हैं जो ईमान रखते हैं। (86)

और जिस दिन सूर में फूंक मारी जाएगी तो घबरा जाएगा जो भी आस्मानों में है और जो ज़मीन में है, सिवाए उस के जिसे अल्लाह चाहे और वह सब उस के आगे आजिज़ हो कर आएंगे। (87) 

और तू पहाड़ों को देखता है तो उन्हें (अपनी जगह) जमा हुआ ख़याल करता है, और वह (क़ियामत के दिन) बादलों की तरह चलेंगे (उड़ते फिरेंगे), अल्लाह की कारीगरी है जिस ने हर शै को खूबी से बनाया है बेशक वह उस से बाखबर है जो तुम करते हो। (88) 

जो आया किसी नेकी के साथ तो उस के लिए (उस का अजर) उस से बेहतर है और वह उस दिन घबराहट से महफूज होंगे| (89) 

और जो बुराई के साथ आया तो वह औन्धे मुंह आग में डाले जाएंगे, तुम सिर्फ (वही) बदला दिए जाओगे (बदला पाओगे) जो तुम करते थे| (90) 

(आप स फ़रमा दें) इस के सिवा नहीं कि मुझे हुक्म दिया गया है कि इस शहर (मक्का ) के रब की इबादत करूं जिसे उस ने मोहतरम बनाया है, और उसी के लिए है हर शै, और मुझे हुक्म दिया गया कि मैं मुसलमानों (फ़रमांबरदारों) में से रहुँ। (91) 

और यह कि मैं कुरआन की तिलावत करूँ (सुना दूं, पर इस के सिवा नहीं कि जो हिदायत पाता है, वह अपनी ज़ात के लिए हिदायत पाता है और जो गुमराह हुआ तो आप (स) फ़रमा दें कि इस के सिवा नहीं कि मैं तो डराने वाला हूँ। (92) 

और आप (स) फ़रमा दें तमाम तारीफें अल्लाह के लिए हैं, वह तुम्हें जलद दिखादेगा अपनी निशानियां, पर तुम जल्द उन्हें पहचान लोगे, और तुम्हारा रब उस से बेखबर नहीं जो तुम करते हो। (93)

***

27. THE ANT

(an-Naml)

In the name of God, the Gracious, the Merciful.

1. Ta, Seen. These are the Signs of the Quran—a book that makes things clear.


2. Guidance and good news for the believers.


3. Those who observe the prayers, and give charity regularly, and are certain of the Hereafter.


4. As for those who do not believe in the Hereafter: We made their deeds appear good to them, so they wander aimlessly.


5. It is they who will receive the grievous punishment, and in the Hereafter, will be the greatest losers.


6. You are receiving the Quran from an All-Wise, All-Knowing.


7. When Moses said to his family, “I have glimpsed a fire. I will bring you some news from it; or bring you a firebrand, that you may warm yourselves.”


8. Then, when he reached it, he was called: “Blessed is He who is within the fire, and He who is around it, and glorified be God, Lord of the Worlds.


9. O Moses, it is I, God, the Almighty, the Wise.


10. Throw down your staff.” But when he saw it quivering, as though it were a demon, he turned around not looking back. “O Moses, do not fear; the messengers do not fear in My presence.


11. But whoever has done wrong, and then substituted goodness in place of evil. I am Forgiving and Merciful.


12. Put your hand inside your pocket, and it will come out white, without blemish— among nine miracles to Pharaoh and his people, for they are immoral people.”


13. Yet when Our enlightening signs came to them, they said, “This is obvious witchcraft.”


14. And they rejected them, although their souls were certain of them, out of wickedness and pride. So see how the outcome was for the mischief-makers.


15. And We gave David and Solomon knowledge. They said, “Praise God, who has favored us over many of His believing servants.”


16. And Solomon succeeded David. He said, “O people, we were taught the language of birds, and we were given from everything. This is indeed a real blessing.”


17. To the service of Solomon were mobilized his troops of sprites, and men, and birds—all held in strict order.


18. Until, when they came upon the Valley of Ants, an ant said, “O ants! Go into your nests, lest Solomon and his troops crush you, without noticing.”


19. He smiled and laughed at her words, and said, “My Lord, direct me to be thankful for the blessings you have bestowed upon me and upon my parents, and to do good works that please You. And admit me, by Your grace, into the company of Your virtuous servants.”


20. Then he inspected the birds, and said, “Why do I not see the hoopoe? Or is he among the absentees?


21. I will punish him most severely, or slay him, unless he gives me a valid excuse.” 


22. But he did not stay for long. He said, “I have learnt something you did not know. I have come to you from Sheba, with reliable information.


23. I found a woman ruling over them, and she was given of everything, and she has a magnificent throne.


24. I found her and her people worshiping the sun, instead of God. Satan made their conduct appear good to them, and diverted them from the path, so they are not guided.


25. If only they would worship God, who brings to light the mysteries of the heavens and the earth, and knows what you conceal and what you reveal.


26. God—There is no god but He, the Lord of the Sublime Throne.”


27. He said, “We will see, whether you have spoken the truth, or whether you are a liar.


28. Go with this letter of mine, and deliver it to them; then withdraw from them, and see how they respond.”


29. She said, “O Counselors, a gracious letter was delivered to me.


30. It is from Solomon, and it is, ‘In the Name of God, the Gracious, the Merciful.


31. Do not defy me, and come to me submissively.’”


32. She said, “O Counselors, advise me in this matter of mine. I never make a decision unless you are present.”


33. They said, “We are people of might and great courage, but the decision is yours, so consider what you wish to command.”


34. She said, “When kings enter a city, they devastate it, and subjugate its dignified people. Thus they always do.


35. I am sending them a gift, and will see what the envoys bring back.”


36. When he came to Solomon, he said, “Are you supplying me with money? What God has given me is better than what He has given you. It is you who delight in your gift.


37. Go back to them. We will come upon them with troops they cannot resist, and we will expel them from there, disgraced and humiliated.”


38. He said, “O notables, which one of you will bring me her throne before they come to me in submission?”


39. An imp of the sprites said, “I will bring it to you before you rise from your seat. I am strong and reliable enough to do it.”


40. He who had knowledge from the Book said, “I will bring it to you before your glance returns to you.” And when he saw it settled before him, he said, “This is from the grace of my Lord, to test me, whether I am grateful or ungrateful. He who is grateful, his gratitude is to his own credit; but he who is ungrateful—my Lord is Independent and Generous.”


41. He said, “Disguise her throne for her, and we shall see whether she will be guided, or remains one of the misguided.” 


42. When she arrived, it was said, “Is your throne like this?” She said, “As if this is it.” “We were given knowledge before her, and we were submissive.”


43. But she was prevented by what she worshiped besides God; she belonged to a disbelieving people.


44. It was said to her, “Go inside the palace.” And when she saw it, she thought it was a deep pond, and she bared her legs. He said, “It is a palace paved with glass.” She said, “My Lord, I have done wrong to myself, and I have submitted with Solomon, to God, Lord of the Worlds.”


45. And We sent to Thamood their brother Saleh: “Worship God.” But they became two disputing factions.


46. He said, “O my people, why are you quick to do evil rather than good? If only you would seek God’s forgiveness, so that you may be shown mercy.”


47. They said, “We consider you an ill omen, and those with you.” He said, “Your omen is with God. In fact, you are a people being tested.”


48. In the city was a gang of nine who made mischief in the land and did no good.


49. They said, “Swear by God to one another that we will attack him and his family by night, and then tell his guardian, 'We did not witness the murder of his family, and we are being truthful.'“


50. They planned a plan, and We planned a plan, but they did not notice.


51. So note the outcome of their planning; We destroyed them and their people, altogether.


52. Here are their homes, in ruins, on account of their iniquities. Surely in this is a sign for people who know.


53. And We saved those who believed and were pious.


54. And Lot, when he said to his people, “Do you commit lewdness with open eyes?


55. Do you lust after men instead of women? You are truly ignorant people.”


56. But the only response of his people was to say, “Expel the family of Lot from your town. They are purist people.”


57. So We saved him and his family, except for his wife, whom We destined to be among the laggards.


58. And We rained upon them a rain. Miserable was the rain of those forewarned.

 

59. Say, “Praise God, and peace be upon His servants whom He has selected. Is God better, or what they associate?”


60. Or, who created the heavens and the earth, and rains down water from the sky for you? With it We produce gardens full of beauty, whose trees you could not have produced. Is there another god with God? But they are a people who equate.


61. Or, who made the earth habitable, and made rivers flow through it, and set mountains on it, and placed a partition between the two seas? Is there another god with God? But most of them do not know. 


62. Or, who answers the one in need when he prays to Him, and relieves adversity, and makes you successors on earth? Is there another god with God? How hardly you pay attention.


63. Or, who guides you through the darkness of land and sea, and who sends the winds as heralds of His mercy? Is there another god with God? Most exalted is God, above what they associate.


64. Or, who originates the creation and then repeats it, and who gives you livelihood from the sky and the earth? Is there another god with God? Say, “Produce your evidence, if you are truthful.”


65. Say, “No one in the heavens or on earth knows the future except God; and they do not perceive when they will be resurrected.”


66. In fact, their knowledge of the Hereafter is confused. In fact, they are in doubt about it. In fact, they are blind to it.


67. Those who disbelieve say, “When we have become dust, and our ancestors, shall we be brought out?


68. We were promised that before, we and our ancestors—these are nothing but legends of the ancients.”


69. Say, travel through the earth, and observe the fate of the guilty.”


70. But do not grieve over them, and do not be troubled by what they plot.


71. And they say, “When is this promise, if you are truthful?”


72. Say, “Perhaps some of what you are impatient for has drawn near.”


73. Your Lord is gracious towards humanity, but most of them are not thankful.


74. And your Lord knows what their hearts conceal, and what they reveal.


75. There is no mystery in the heaven and the earth, but it is in a Clear Book.


76. This Quran relates to the Children of Israel most of what they differ about.


77. And it is guidance and mercy for the believers.


78. Your Lord will judge between them by His wisdom. He is the Almighty, the All- Knowing.


79. So rely on God. You are upon the clear truth.


80. You cannot make the dead hear, nor can you make the deaf hear the call if they turn their backs and flee.


81. Nor can you guide the blind out of their straying. You can make no one listen, except those who believe in Our verses; for they are Muslims.


82. And when the Word has fallen on them, We will bring out for them from the earth a creature which will say to them that the people are uncertain of Our revelations.


83. On the Day when We gather from every community a group of those who rejected Our revelations; and they will be restrained. 


84. Until, when they arrive, He will say, “Did you reject My revelations without comprehending them? Or what is it you were doing?”


85. The Word will come down upon them for their wrongdoing, and they will not speak.


86. Do they not see that We made the night for them to rest therein, and the day for visibility? Surely in that are signs for people who believe.


87. On the Day when the Trumpet is blown, everyone in the heavens and the earth will be horrified, except whomever God wills; and everyone will come before Him in humility. 88. And you see the mountains, and imagine them fixed, yet they pass, as the passing of the clouds—the making of God, who has perfected everything. He is fully Informed of what you do.


89. Whoever brings a virtue will receive better than it—and they will be safe from the horrors of that Day.


90. But whoever brings evil—their faces will be tumbled into the Fire. Will you be rewarded except for what you used to do?


91. “I was commanded to worship the Lord of this town, who has sanctified it, and to Whom everything belongs; and I was commanded to be of those who submit.


92. And to recite the Quran.” Whoever is guided—is guided to his own advantage. And whoever goes astray, then say, “I am one of the warners.”


93. And say, “Praise belongs to God; He will show you His signs, and you will recognize them. Your Lord is not heedless of what you do.”   


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