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सूरा-हा-मीम-अस-सजदा | सूरा-फुस्सिलत | Surah 41

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सूरा-हा-मीम-अस-सजदा | सूरा-फुस्सिलत

| मक्का कालीन | आयत  54| 

सूरा-हा-मीम-अस-सजदा | सूरा-फुस्सिलत | Surah 41

अल्लाह के नाम से जो बहुत मेहबान, रह्म करने वाला है हा-मीम| (1) 

(यह कलाम) नाजिल किया हुआ है निहायत मेहरबान रहम करने वाले (अल्लाह की तरफ से| (2) 

यह एक किताब है जिस की आयतें वाजेह कर दी गई हैं, कुरआन अरबी जबान में उन लोगों के लिए जो जानते हैं। (3) 

खुशखबरी देने वाला, डर सुनाने वाला, सो उन में से अक्सर ने मुँह फेर लिया, पर वह सुनते नहीं। (4) 

और उन्हों ने कहा कि हमारे दिल पदों में हैं उस (बात) से जिस की तरफ़ तुम हमें बुलाते हो, और हमारे कानों में गिरानी है, और हमारे और तुम्हारे दरमियान एक पर्दा है, सो तुम अपना काम करो, बेशक हम अपना काम करते है। (5)

आप (स) फ़रमा दें, इस के सिवा नहीं कि मैं तुम जैसा एक बशर हूँ, मेरी तरफ़ वहि की जाती है कि तुम्हारा माबूद, माबूदे यकता है, पर सीधे रहो उस के हुजूर और उस से मगफिरत मांगो, और खराबी है मुश्रिकों के लिए। (6) 

वह जो जकात नहीं देते और वह आखिरत के मुकिर हैं। (7) 

बेशक जो लोग ईमान लाए, और उन्हों ने अच्छे अमल किए, उन के लिए अजर है न ख़तम होने वाला। (8) 

आप (स) फ़रमा दें क्या तुम उस का इन्कार करते हो जिस ने ज़मीन को दो (2) दिनों में पैदा किया और तुम उस के शरीक ठहराते हो, यही है सारे जहानों का रब| (9)

और उस ने उस (जमीन) में बनाए उस के ऊपर पहाड़, और उस में बरकत रखी, और उस में चार (4) दिनों में उन की खुराकें मुकर्रर की, यकसां तमाम सवाल करने वालों के लिए। (10) 

फिर उस ने आस्मान की तरफ़ तवजजुह फरमाई, और वह एक धुआं था, तो उस ने उस से और जमीन से कहा तुम दोनों आओ खुशी से या नाखुशी से, उन दोनों ने कहा, हम दोनों खुशी से हाज़िर हैं। (11) 

फिर उस ने दो दिनों में सात आस्मान बनाए और हर आस्मान में उस के काम की वहि कर दी. और हम ने आस्माने दुनिया को सितारों से जीनत दी और खूब महफूज़ कर दिया, यह गालिब, इल्म वाले (अल्लाह का) फैसला है। (12) 

फिर अगर वह महूँ मोड़ लें तो आप (स) फरमा दें कि मैं तुम्हें डराता हूँ एक चिंघाड़ से, जैसी चिंघाड़ आद ओ समूद (पर अजाब आया था)। (13) 

जब उन के पास रसूल आए, उन के आगे से और उन के पीछे से कि तुम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करो, तो उन्हों ने जवाब दिया कि अगर हमारा रब चाहता तो ज़रूर फ़रिशते उतारता, पर तुम जिस (पैगाम) के साथ भेजे गए हो, हम बेशक उस के मुकिर हैं। (14) 

फिर जो आद थे वह मुल्क में गरूर करने लगे नाहक, और वह कहने लगे कि हम से जियादा कुव्वत में कौन है? क्या वह नहीं देखते कि अल्लाह जिस ने उन्हें पैदा किया, वह कुव्वत में उन से बहुत जियादा है, और वह हमारी आयतों का इन्कार करते थे(15) 

पर हम ने भेजी उन पर नहूसत के दिनों में तुन्द ओ तेज़ हवा, ताकि हम उन्हें रुसवाई का अजाब चखाएं दुनिया की जिन्दगी में, और अलबत्ता आखिरत का अजाब ज़ियादा रुसवा करने वाला है, और न वह मदद किए जाएंगे। (16) 

और रहे समूद, सो हम ने उन्हें रास्ता दिखाया तो उन्हों ने हिदायत (के मुकाबले) पर अन्धा रहना पसंद किया, तो उन्हें चिंघाड़ ने आ पकड़ा (यानी) जिल्लत के अज़ाब ने, उस की सज़ा में जो वह करते थे| (17) 

और हम ने उन लोगों को बचा लिया जो ईमान लाए, और वह परहेज़गारी करते थे। (18) 

और जिस दिन अल्लाह के दुश्मन जहन्नम की तरफ़ जमा किए (हांके) जाएंगे तो वह गिरोह दर गिरोह (तकसीम) कर दिए जाएंगे। (19) 

यहां तक कि जब वह उस के पास आएंगे तो उन पर उन के कान, और उन की आँखें, और उन के गोश्त पोस्त गवाही देंगे उस पर जो वह करते थे| (20) 

और वह अपने गोश्त पोस्त से कहेंगे, तुम ने हमारे ख़िलाफ़ गवाही क्यों दी? वह जवाब देंगे: हमें उस अल्लाह ने गोयाई दी जिस ने हर शै को गोया कर दिया है, और उसी ने तुम्हें पहली बार पैदा किया था और उसी की तरफ़ तुम लौटाए जाओगे| (21)

और जो तुम छुपाते थे (तुम ने समझा) कि तुम्हारे ख़िलाफ़ गवाही न देंगे तुम्हारे कान और न तुम्हारी आँखें और न तुम्हारे गोश्त पोस्त, बल्कि तुम ने गुमान कर लिया था कि अल्लाह उस से (उस के बारे में) बहुत कुछ नहीं जानता जो तुम करते हो। (22) 

तुम्हारे उस गुमान (खयाले बातिल) ने जो तुम ने अपने रब के बारे में किया था तुम्हें हलाक किया, सो तुम हो गए खसारा पाने वालों में से| (23) 

फिर अगर वह सबर करें तो (भी) जहन्नम उन के लिए ठिकाना है, और अगर वह (अब) माफ़ी चाहें तो वह माफ़ी कुबूल किए जाने वालों में से न होंगे। (24) 

और हम ने उन के कुछ हमनशीन मुकर्रर किए, तो उन्हों ने उन के लिए आरास्ता कर दिखाया जो उन के आगे और जो उन के पीछे था और उन पर (अजाब की वईद का) कौल पूरा हो गया जैसे उन उम्मतों में जो गुजर चुकी हैं उन से कबल जिन्नात और इन्सानों की, बेशक वह खसारा पाने वाले थे। (25) 

और उन लोगों ने कहा जिन्हों ने कुफ़ किया (काफ़िरों ने) कि तुम इस कुरआन को सुनो ही मत, और अगर (सुनाने लगें) तो इस में गुल मचाओ, शायद कि तुम गालिब आ जाओ। (26) 

पर हम काफिरों को ज़रूर सख्त अजाब चखाएंगे, और अलबत्ता हम उन के बदतरीन आमाल का उन्हें ज़रूर बदला देंगे। (27) 

यह है अल्लाह के दुश्मनों का बदला जहननम, और उन के लिए है उस में हमेशगी का घर, उस का बदला जो वह हमारी आयतों का इनकार करते थे| (28) 

और काफिर कहेंगे कि ऐ हमारे रब! हमें दिखा दे जिन्हों ने हमें गुमराह किया था जिन्नात में से और इन्सानों में से कि हम उन को अपने पाऊँ तले (रौन्द) डालें ताकि वह इन्तिहाई जलीलों में से हों। (29) 

बेशक जिन लोगों ने कहा कि हमारा रब अल्लाह है, फिर उस पर साबित कदम रहे, उन पर फ़रिश्ते उतरते हैं कि न तुम ख़ौफ़ खाओ और न तुम गमगीन हो, और तमु उस जन्नत पर खुश हो जाओ जिस का तुम्हें वादा दिया जाता है। (30) 

हम तुम्हारे रफ़ीक है जिन्दगी में दुनिया की और आखिरत में (भी), और तुम्हारे लिए उस में (मौजूद हैं। जो तुम्हारे दिल चाहें, और तुम्हारे लिए उस में (मौजूद हैं) जो तुम मांगोगे| (31) 

(यह) ज़ियाफ़त है बख्शने वाले, रहीम (अल्लाह) की तरफ़ से। (32) 

और उस से बेहतर किस का कौल? जो बुलाए अल्लाह की तरफ और अच्छे अमल करे और कहेः बेशक मैं मुसलमानों में से हूँ। (33)

और बराबर नहीं होती नेकी और बुराई, आप (स) (बुराई को) इस (अन्दाज़ से) दूर करें जो बेहतरीन हो तो यकायक वह शख्स कि आप के दरमियान और उस के दरमियान अदावत थी (ऐसे हो जाएगा कि) गोया वह जिगरी दोस्त है। (34)

और यह (सिफ्त) नहीं मिलती मगर उन्हें जिन्हों ने सबर किया और यह नहीं मिलती मगर बड़े नसीब वालों को। (35) 

और अगर तुम्हें शैतान की तरफ़ से आए कोई वस्वसा तो अल्लाह की पनाह चाहें, बेशक वह सुनने वाला, जानने वाला है। (36)

और उस की निशानियों में से है रात और दिन, और सूरज और चाँद, तुम न सूरज को सिजदा करो न चाँद को, और तुम अल्लाह को सिजदा करो, वह जिस ने उन (सब) को पैदा किया अगर तुम सिर्फ उस की इबादत करते हो। (37) 

पर अगर वह तकब्बुर करें (तो उस से क्या फर्क पड़ता है), सो वह (फ़रिश्ते) जो आप के रब के नजदीक हैं वह रात दिन उस की तस्वीह करते हैं, और वह उकताते नहीं। (38) 

और उस की निशानियों में से है कि तू ज़मीन को सुनसान देखता है, फिर जब हम ने उस पर पानी उतारा तो वह लहलहाने लगती है और फूलती है, बेशक वह जिस ने उस को जिन्दा किया, अलबत्ता वह मदों को जिन्दा करने वाला है, बेशक वह हर शै पर कुदरत रखने वाला है। (39) 

बेशक जो लोग हमारी आयात में कज रवी करते हैं वह हम पर (हम से) पोशीदा नहीं, तो क्या जो शख्स आग में डाला जाए बेहतर है या जो रोज़े कियामत अमान के साथ आए? तुम जो चाहो करो, बेशक तुम जो कुछ करते हो वह देखने वाला है। (40) 

बेशक जिन लोगों ने कुरआन का इन्कार किया जब वह उन के पास आया (वह अपना अन्जाम देख लेंगे), बेशक यह ज़बरदस्त किताब है। (41) 

उस के पास नहीं आता बातिल उस के सामने से और न उस के पीछे से, नाज़िल किया गया हिक्मत वाले, सजावारे हम्द (अल्लाह की तरफ़) से| (42) 

आप (स) को उस के सिवा नहीं कहा जाता जो आप (स) से पहले रसूलों को कहा जा चुका है, बेशक आप (स) का रब बड़ी मगफिरत वाला, और दर्दनाक सजा देने वाला है। (43) 

और अगर हम कुरआन को अजमी जबान का बनाते तो वह कहतेः उस की आयतें क्यों न साफ़ साफ़ बयान की गईं? क्या किताब अजमी और रसूल अरबी? आप (स) फ़रमा देंः जो ईमान लाए यह उन लोगों के लिए हिदायत और शिफ़ा है, और जो लोग ईमान नहीं लाते उन के कानों में गिरानी है और यह उन के लिए आंखों पर पट्टी, (गोया) यह लोग पुकारे जाते हैं किसी दूर जगह से। (44)

और तहकीक़ हम ने मूसा (अ) को किताब दी तो उस में इखतिलाफ़ किया गया और अगर न आप (स) के रब की तरफ से एक बात पहले ठहर चुकी होती तो उन के दरमियान फैसला हो चुका होता, और बेशक वह ज़रूर उस से तरददुद में डालने वाले शक में हैं। (45) 

जिस ने अच्छे अमल किए तो अपनी जात के लिए (किए) और जिस ने बुराई की उस का वबाल उसी पर होगा, और आप (स) का रख अपने बन्दों पर मुत्लक जुल्म करने वाला नहीं। (46) 

कियामत का इल्म उसी के हवाले किया जाता है, और कोई फल अपने गाभों से नहीं निकलता और कोई औरत (मादा) हामिला नहीं होती और वह बच्चा नहीं जनती मगर (यह सब) उस के इल्म में होता है। और जिस दिन वह उन्हें पुकारेगाः कहां है मेरे शरीक? वह कहेंगेः हम ने तुझे इत्तिलाअ दे दी कि हम में से कोई (उस का) शाहिद (गवाह) नहीं। (47) 

और खोया गया उन से जिसे वह (अल्लाह के सिवा) पुकारते थे उस से कब्ल, और उन्हों ने समझ लिया कि (अब) उन के लिए कोई खलासी नहीं। (48) 

इन्सान भलाई मांगने से नहीं थकता, और अगर उसे कोई बुराई लग जाए तो वह नाउम्मीद हो कर मायूस हो जाता है। (49) 

और अलबत्ता अगर उसे कोई तकलीफ़ पहुंचने के बाद हम अपनी तरफ से अपनी रहमत का मज़ा चखाएं तो वह ज़रूर कहेगाः यह मेरे लिए है, और मैं ख़याल नहीं करता कि कियामत काइम होने वाली है, और अगर मुझे अपने रब की तरफ़ लौटाया गया तो बेशक उस के पास मेरे लिए अलबत्ता भलाई होगी, पर हम काफ़िरों को उन के आमाल से ज़रूर आगाह करेंगे, और अलबत्ता हम उन्हें ज़रूर चखाएंगे एक अजाब सख्त। (50) 

और जब हम इन्सान पर इन्आम करते हैं तो वह मुंह मोड़ लेता है, और अपना पहलू बदल लेता है, और जब उसे (जरा) बुराई लगे तो लम्बी चौड़ी दुआओं वाला (बन जाता है।। (51) 

आप (स) फ़रमा देंः क्या तुम ने देखा (यह तो बतलाओ) अगर (यह कुरआन) अल्लाह के पास से हो, फिर तुम ने उस से कुफ़ किया तो उस से बड़ा गुमराह कौन जो मुखालिफ़त में दूर तक निकल गया हो? (52) 

हम जलद अपनी आयात उन्हें अतराफ़े आलम में और (खुद) उन की ज़ात में दिखा देंगे यहां तक कि उन पर ज़ाहिर हो जाएगा कि यह (कुरआन) हक है, क्या आप (स) के रब के लिए काफ़ी नहीं कि वह हर शै का शाहिद है। (53) 

खूब याद रखो! बेशक वह अपने रब की मुलाकात (रूबरू हाजरी) से शक में हैं, याद रखो! बेशक वह हर शै का अहाता किए हुए है। (54)

***

41. DETAILED

(Fussilat)

In the name of God, the Gracious, the Merciful.

1. Ha, Meem.


2. A revelation from the Most Gracious, the Most Merciful.


3. A Scripture whose Verses are detailed, a Quran in Arabic for people who know.


4. Bringing good news and giving warnings. But most of them turn away, so they do not listen.


5. And they say, “Our hearts are screened from what you call us to, and in our ears is deafness, and between us and you is a barrier. So do what you want, and so will we.”


6. Say, “I am only a human like you; it is inspired in me that your God is One God. So be upright towards Him, and seek forgiveness from Him.” And woe to the idolaters.


7. Those who do not pay the alms; and regarding the Hereafter, they are disbelievers.


8. As for those who believe and do righteous deeds—for them is a reward uninterrupted.


9. Say, “Do you reject the One who created the earth in two days? And you attribute equals to Him? That is the Lord of the Universe.”


10. He placed stabilizers over it; and blessed it; and planned its provisions in four days, equally to the seekers.


11. Then He turned to the sky, and it was smoke, and said to it and to the earth, “Come, willingly or unwillingly.” They said, “We come willingly.”


12. So He completed them as seven universes in two days, and He assigned to each universe its laws. And We decorated the lower universe with lamps, and for protection. That is the design of the Almighty, the All-Knowing.


13. But if they turn away, say, “I have warned you of a thunderbolt, like the thunderbolt of Aad and Thamood.”


14. Their messengers came to them, from before them and from behind them, saying, “Do not worship anyone but God.” They said, “Had our Lord willed, He would have sent down angels; Therefore, we reject what you are sent with.” 


15. As for Aad, they turned arrogant on earth, and opposed justice, and said, “Who is more powerful than us?” Have they not considered that God, who created them, is more powerful than they? And they went on denying Our revelations.


16. So We unleashed upon them a screaming wind, for a few miserable days, to make them taste the punishment of shame in this life; but the punishment of the Hereafter is more shameful; and they will not be saved.


17. And as for Thamood, We guided them, but they preferred blindness over guidance. So the thunderbolt of the humiliating punishment seized them, because of what they used to earn.


18. And We saved those who believed and were righteous.


19. The Day when God’s enemies are herded into the Fire, forcibly.


20. Until, when they have reached it, their hearing, and their sight, and their skins will testify against them regarding what they used to do.


21. And they will say to their skins, “Why did you testify against us?” They will say, “God, Who made all things speak, made us speak. It is He who created you the first time, and to Him you are returned.”


22. You were unable to hide yourselves from your hearing, and your sight, and your skins, to prevent them from testifying against you, and you imagined that God was unaware of much of what you do.


23. It is that thought of yours about your Lord that led you to ruin—so you became of the losers.


24. If they endure patiently, the Fire will be their residence; and if they make up excuses, they will not be pardoned.


25. We had assigned companions for them, who glamorized to them what was in front of them, and what was behind them. And the Word proved true against them in communities of jinn and humans that have passed away before them. They were losers.


26. Those who disbelieve say, “Do not listen to this Quran, and talk over it, so that you may prevail.”


27. We will make those who disbelieve taste an intense agony, and We will recompense them according to the worst of what they used to do.


28. Such is the recompense of God’s enemies— the Fire—where they will have their permanent home, in recompense for having disregarded Our revelations.


29. Those who disbelieved will say, “Our Lord, show us those who led us astray— among jinn and humans—and we will trample them under our feet, so they become among of the lowest.”


30. Surely, those who say: “Our Lord is God,” and then go straight, the angels will descend upon them: “Do not fear, and do  not grieve, but rejoice in the news of the Garden which you were promised.


31. We are your allies in this life and in the Hereafter, wherein you will have whatever your souls desire, and you will have therein whatever you call for.


32. As Hospitality from an All-Forgiving, Merciful One.”


33. And who is better in speech than someone who calls to God, and acts with integrity, and says, “I am of those who submit”?


34. Good and evil are not equal. Repel evil with good, and the person who was your enemy becomes like an intimate friend.


35. But none will attain it except those who persevere, and none will attain it except the very fortunate.


36. When a temptation from the Devil provokes you, seek refuge in God; He is the Hearer, the Knower.


37. And of His signs are the night and the day, and the sun and the moon. Do not bow down to the sun, nor to the moon, but bow down to God, Who created them both, if it is Him that you serve.


38. But if they are too proud—those in the presence of your Lord praise Him night and day, and without ever tiring.


39. And of His signs is that you see the land still. But when We send down water upon it, it stirs and grows. Surely, He Who revived it will revive the dead. He is Able to do all things.


40. Those who despise Our revelations are not hidden from Us. Is he who is hurled into the Fire better? Or he who arrives safely on the Day of Resurrection? Do as you please; He is Seeing of everything you do.


41. Those who reject the Reminder when it has come to them—it is an invincible Book.


42. Falsehood cannot approach it, from before it or behind it. It is a revelation from One Wise and Praiseworthy.


43. Nothing is said to you but was said to the Messengers before you: your Lord is Possessor of Forgiveness, and Possessor of Painful Repayment.


44. Had We made it a Quran in a foreign language, they would have said, “If only its verses were made clear.” Non-Arabic and an Arab? Say, “For those who believe, it is guidance and healing. But as for those who do not believe: there is heaviness in their ears, and it is blindness for them. These are being called from a distant place.”


45. We gave Moses the Book, but disputes arose concerning it. Were it not for a prior decree from your Lord, judgment would have been pronounced between them. But they are in perplexing doubt concerning it.


46. Whoever acts righteously does so for himself; and whoever works evil does so against himself. Your Lord is not unjust to the servants. 


47. To Him is referred the knowledge of the Hour. No fruit emerges from its sheath, and no female conceives or delivers, except with His knowledge. And on the Day when He calls out to them, “Where are My associates?” They will say, “We admit to you, none of us is a witness.”


48. What they used to pray to before will forsake them, and they will realize that they have no escape.


49. The human being never tires of praying for good things, but when adversity afflicts him, he despairs and loses hope.


50. And when We let him taste a mercy from Us, after the adversity that had afflicted him, he will say, “This is mine, and I do not think that the Hour is coming; and even if I am returned to my Lord, I will have the very best with Him.” But We will inform those who disbelieve of what they did, and We will make them taste an awful punishment.


51. When We provide comfort for the human being, he withdraws and distances himself; but when adversity befalls him, he starts lengthy prayers.


52. Say, “Have you considered? If it is from God and you reject it—who is further astray than he who is cutoff and alienated?”


53. We will show them Our proofs on the horizons, and in their very souls, until it becomes clear to them that it is the truth. Is it not sufficient that your Lord is witness over everything?


54. Surely they are in doubt about the encounter with their Lord. Surely He comprehends everything.    

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