सूरा-अल-मुजादलह
| मदीना कालीन | आयत 22|
इख्तिलाफ करने वाली
अल्लाह के नाम से जो बहुत मेहरबान, रहम करने वाला है।
यक़ीनन अल्लाह ने उस औरत (खौलह ) की बात सुन ली जो आप (स) से अपने शौहर के बारे में बहस करती थी और अल्लाह के पास शिकायत करती थी, और अल्लाह तुम दोनों की गुफ्तगू सुनता था। बेशक अल्लाह सुनने वाला, देखने वाला है। (1)
तुम में से जो लोग अपनी बीवियों से जिहार करते हैं (उन्हें माँ कह देते हैं। तो वह उन की माएं नहीं (हो जाती), उन की मॉएं वही हैं जिन्हों ने उन्हें जना है, और बेशक वह एक नामाकूल बात और झूट कहते हैं, और बेशक अल्लाह माफ़ करने वाला, बख्शने वाला है। (2)
और जो लोग अपनी बीवियों से जिहार करते हैं (उन्हें मॉएं कह देते हैं) फिर वह अपने कौल से रुजूअ कर लें तो (उन पर) लाज़िम है आज़ाद करना एक गुलाम, इस से कव्ल कि वह एक दूसरे को हाथ लगाएं (बाहम इखतिलात करें), यह है जिस की तुम्हें नसीहत की जाती है, और अल्लाह उस से बाखबर है जो तुम करते हो। (3)
जो कोई (गुलाम) न पाए तो वह लगातार दो महीने रोजे (रखे) इस से कल कि वह एक दूसरे को हाथ लगाएं (इखतिलात करें, फिर जिस को (उस का भी) मक़दूर न हो तो साठ (60) मिस्कीनों को खाना खिलाए, यह इस लिए है कि तुम अल्लाह और उस के रसूल (स) पर ईमान रखो, और यह अल्लाह की (मुकर्रर कर्दा) हदें है, और न मानने वालों के लिए दर्दनाक अज़ाब है। (4)
बेशक जो लोग अल्लाह और उस के रसूल (स) की मुखालिफ़त करते हैं वह ज़लील किए जाएंगे जैसे जलील किए गए वह लोग जो उन से पहले थे, और यकीनन हम ने वाजेह आयतें नाजिल की है, और काफिरों के लिए जिल्लत का अज़ाब है। (5)
जिस दिन (जिला) उठाएगा अल्लाह उन सब को, तो जो कुछ उन्हों ने किया वह उन्हें आगाह करेगा, उसे अल्लाह ने गिन (महफूज) रखा था और वह उसे भूल गए थे, और अल्लाह हर शै पर निगरान है। (6)
क्या आप (स) ने नहीं देखा कि । अल्लाह जानता है जो आस्मानों में है और जो जमीन में है। तीन लोगों में कोई सरगोशी नहीं होती मगर वह उन में चौथा होता है और न पाँच (की सरगोशी) मगर वह उन में छटा होता है, और खाह उस से कम हों या जियादा मगर जहां कहीं वह हों वह (अल्लाह) उन के साथ होता है, फिर वह उन्हें बतला देगा कियामत के दिन जो कुछ उन्हों ने किया, बेशक अल्लाह हर शै का जानने वाला है। (7)
क्या तुम ने उन लोगों को नहीं देखा जिन्हें सरगोशी से मना किया गया (मगर) वह फिर वही करते हैं जिस से उन्हें मना किया गया और वह गुनाह और सरकशी की और रसूल (स) की नाफरमानी (के बारे में) बाहम सरगोशी करते हैं, और जब वह आप (स) के पास आते हैं तो आप (स) को सलाम दुआ देते हैं उस लफ्ज़ से जिस से अल्लाह ने आप को दुआ नहीं दी, और वह अपने दिलों में कहते हैं कि अल्लाह हमें उस की क्यों सज़ा नहीं देता जो हम कहते हैं। उन के लिए काफी है जहन्नम, वह उस में डाले जाएंगे, सो (यह कैसा) बुरा ठिकाना है! (8)
ऐ ईमान वालो! जब तुम बाहम सरगोशी करो तो गुनाह और सरकशी की और रसूल (स) की नाफरमानी (के बारे में) सरगोशी न करो, और (बल्कि) नेकी और परहेज़गारी की सरगोशी करो, और अल्लाह से डरो जिस के पास तुम जमा किए जाओगे| (9)
इस के सिवा नहीं कि सरगोशी शैतान (की तरफ) से है, ताकि वह उन लोगों को गमगीन कर दे जो ईमान लाए, और वह अल्लाह के हुक्म के बगैर उन का कुछ नहीं बिगाड़ सकता, और मोमिनों को अल्लाह पर (ही) भरोसा करना चाहिए। (10)
ऐ मोमिनों! जब तुम्हें कहा जाए कि तुम मल्लिसों में खुल कर बैठो तो तुम खुल कर बैठ जाया करो, अल्लाह तुम्हें कुशादगी बख्शेगा, और जब कहा जाए कि तुम उठ खड़े हो तो उठ जाया करो, तुम में से जो लोग ईमान लाए और जिन लोगों को इल्म अता किया गया अल्लाह बुलन्द कर देगा उन के दरजे, और तुम जो करते हो अल्लाह उस से बाखबर है। (11)
ऐ मोमिनो! जब तुम रसूल (स) से कान में (निजी बात करो तो तुम अपनी सरगोशी से पहले कुछ सदका दो, यह तुम्हारे लिए बेहतर और ज़ियादा पाकीज़ा है, फिर अगर तुम (मक़दूर) न पाओ तो बेशक अल्लाह बख्शने वाला, रम करने वाला है। (12)
क्या तुम उस से डर गए कि अपनी सरगोशी से पहले सदका दो, सो जब तुम न कर सके और अल्लाह ने तुम पर दरगुज़र फ़रमाया तो तुम नमाज़ काइम करो और ज़कात अदा करो और अल्लाह और उस के रसूल (स) की इताअत करो, और अल्लाह उस से बाखबर है जो तुम करते हो। (13)
क्या तुम ने उन लोगों को नहीं देखा? जो उन लोगों से दोस्ती करते हैं जिन पर अल्लाह ने गज़ब किया, वह न तुम में से हैं और न उन में से हैं, और वह जान बूझ कर झूट पर कसम खा जाते हैं। (14)
अल्लाह ने उन के लिए सख्त अजाब तैयार किया है, बेशक वह बुरे काम करते थे। (15)
उन्हों ने अपनी कसमों को ढाल बना लिया, पर उन्हों ने (लोगों को) अल्लाह के रास्ते से रोका तो उन के लिए जिल्लत का अजाब है। (16)
उन्हें उन के माल और न उन की औलाद अल्लाह से हरगिज़ ज़रा भी न बचा सकेंगे| यही लोग जहननमी हैं, वह उस में हमेशा रहेंगे। (17)
जिस दिन अल्लाह उन सब को । (दोबारा) उठाएगा तो उस के लिए (उस के हुजूर) कसमें खाएंगे जैसे वह तुम्हारे सामने कसमें खाते हैं, और वह गुमान करते हैं कि वह किसी शै (भली राह) पर हैं, याद रखो! वेशक वही झूटे हैं। (18)
गालिब आगया है उन पर शैतान, तो उस ने उन्हें अल्लाह की याद भुला दी, यही लोग शैतान की गिरोह हैं, खूब याद रखो, बेशक शैतान के गिरोह ही घाटा पाने वाले हैं। (19)
बेशक जो लोग अल्लाह और उस के रसूल (स) की मुखालिफ़त करते हैं, यही लोग ज़लील तरीन लोगों में से हैं। (20)
फैसला कर दिया अल्लाह ने कि मैं और मेरे रसूल (स) ज़रूर गालिब आएंगे, बेशक अल्लाह कवी (तवाना) गालिब है। (21)
तुम न पाओगे उन लोगों को जो ईमान रखते हैं अल्लाह पर और आखिरत के दिन पर कि वह उन से दोस्ती रखते हों जिन्हों ने अल्लाह और उस के रसूल (स) की मुखालिफ़त की, खाह वह उन के बाप दादा हों या उन के बेटे हों, या उन के भाई हों या उन के कुंबे वाले हों, यही लोग हैं जिन के दिलों में अल्लाह ने ईमान सबत कर दिया और उन की मदद की अपने गैबी फैज से, और वह उन्हें (उन) । बागात में दाखिल करेगा जिन के नीचे नहरें बहती है, वह उन में हमेशा रहेंगे, राजी हुआ अल्लाह उन से, और वह उस से राजी, यही लोग हैं अल्लाह का गिरोह, खूब याद रखो! अल्लाह के गिरोह वाले ही (दो जहान में) कामयाब होने वाले हैं। (22)
***
58. THE ARGUMENT
(al-Mujadilah)
In the name of God, the Gracious, the Merciful.
1. God has heard
the statement of she who argued with you concerning her husband, as she
complained to God. God heard your conversation. God is Hearing and Seeing.
2. Those of you
who estrange their wives by equating them with their mothers— they are not
their mothers. Their mothers are none else but those who gave birth to them.
What they say is evil, and a blatant lie. But God is Pardoning and Forgiving.
3. Those who
estrange their wives by equating them with their mothers, then go back on what
they said, must set free a slave before they may touch one another. To this you
are exhorted, and God is well aware of what you do.
4. But whoever
cannot find the means must fast for two consecutive months before they may
touch one another. And if he is unable, then the feeding of sixty needy people.
This, in order that you affirm your faith in God and His Messenger. 58. THE
ARGUMENT (al-Mujadilah) 289 These are the ordinances of God. The unbelievers will
have a painful punishment.
5. Those who
oppose God and His Messenger will be subdued, as those before them were
subdued. We have revealed clear messages. The unbelievers will have a demeaning
punishment.
6. On the Day when
God resurrects them all, and informs them of what they did. God has kept count
of it, but they have forgotten it. God is Witness over everything.
7. Do you not
realize that God knows everything in the heavens and everything on earth? There
is no secret counsel between three, but He is their fourth; nor between five,
but He is their sixth; nor less than that, nor more, but He is with them
wherever they may be. Then, on the Day of Resurrection, He will inform them of
what they did. God has knowledge of everything.
8. Have you noted
those who were prohibited from conspiring secretly, but then reverted to what
they were prohibited from? They conspire to commit sin, and aggression, and
defiance of the Messenger. And when they come to you, they greet you with a
greeting that God never greeted you with. And they say within themselves, “Why
does God not punish us for what we say?” Hell is enough for them. They will roast
in it. What a miserable destiny!
9. O you who
believe! When you converse secretly, do not converse in sin, and aggression, and
disobedience of the Messenger; but converse in virtue and piety; And fear God,
to Whom you will be gathered.
10. Conspiracies
are from Satan, that he may dishearten those who believe; but he will not harm
them in the least, except by leave of God. So let the believers put their trust
in God.
11. O you who
believe! When you are told to make room in your gatherings, make room; God will
make room for you. And when you are told to disperse, disperse. God elevates
those among you who believe, and those given knowledge, many steps. God is
Aware of what you do.
12. O you who
believe! When you converse privately with the Messenger, offer something in
charity before your conversation. That is better for you, and purer. But if you
do not find the means—God is Forgiving and Merciful.
13. Are you
reluctant to offer charity before your conversation? If you do not do so, and
God pardons you, then perform the prayer, and give alms, and obey God and His
Messenger. God is Aware of what you do.
14. Have you
considered those who befriended a people with whom God has become angry? They
are not of you, nor of them. And they swear to a lie while they know.
15. God has
prepared for them a terrible punishment. Evil is what they used to do.
16. They took
their oaths as a screen, and prevented others from God’s path. They will have a
shameful punishment.
17. Neither their
possessions nor their children will avail them anything against God. These are
the inhabitants of the Fire, dwelling therein forever.
18. On the Day
when God will resurrect them altogether—they will swear to Him, as they swear
to you, thinking that they are upon something. Indeed, they themselves are the
liars.
19. Satan has
taken hold of them, and so caused them to forget the remembrance of God. These
are the partisans of Satan. Indeed, it is Satan’s partisans who are the losers.
20. Those who
oppose God and His Messenger are among the lowliest.
21. God has
written: “I will certainly prevail, I and My messengers.” God is Strong and
Mighty.
22. You will not
find a people who believe in God and the Last Day, loving those who oppose God
and His Messenger, even if they were their parents, or their children, or their
siblings, or their close relatives. These—He has inscribed faith in their hearts,
and has supported them with a spirit from Him. And He will admit them into
Gardens beneath which rivers flow, wherein they will dwell forever. God is pleased
with them, and they are pleased with Him. These are the partisans of God. Indeed,
it is God’s partisans who are the successful.
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