सूरा-अन-अनक़बूत
| मक्का कालीन | आयत 69|
मकड़ी
अल्लाह के नाम से जो बहुत मेहरबान, रहम करने वाला है अलिफ़-लााम -मीम| (1)
क्या लोगों ने गुमान कर लिया है कि वह (इतने पर छोड़ दिए जाएंगे कि उन्हों ने कह दिया कि हम ईमान ले आए हैं, और वह न आज़माए जाएंगे। (2)
और अलबत्ता हम ने उन से पहले लोगों को आज़माया, तो अल्लाह ज़रूर मालूम कर लेगा उन लोगों को जो सच्चे हैं, और जरूर मालूम कर लेगा झूटों को| (3)
जो लोग बुरे काम करते हैं क्या उन्हों ने गुमान किया है कि वह हम से बाहर बच निकलेंगे? बुरा है जो वह फैसला (खयाल) कर रहे हैं। (4)
जो कोई अल्लाह से मुलाकात (मिलने) की उम्मीद रखता है तो बेशक अल्लाह का वादा ज़रूर आने वाला है और वह सुनने वाला, जानने वाला। (5)
और जो कोई कोशिश करता है तो सिर्फ अपनी ज़ात के लिए कोशिश करता है। बेशक अल्लाह अलबत्ता जहान वालों से बेनियाज़ है। (6)
और जो लोग ईमान लाए और उन्हों ने अच्छे अमल किए अलबत्ता हम ज़रूर उन से उन की बुराइयां दूर कर देंगे, और हम ज़रूर उन्हें (उन के आमाल की) जियादा बेहतर जज़ा देंगे जो वह करते थे। (7)
और हम ने इन्सान को माँ बाप से हुस्ने सुलूक का हुक्म दिया है, और अगर वह तुझ से कोशिश करें (जोर डालें) कि तू (किसी को) मेरा शरीक ठहराए जिस का तुझे कोई इल्म नहीं, तो उन का कहा न मान, तुम्हें मेरी तरफ लौट कर आना है, तो मैं तुम्हें ज़रूर बतलाऊंगा वह जो तुम करते थे। (8)
और जो लोग ईमान लाए, और उन्हों ने अच्छे अमल किए, हम उन्हें ज़रूर नेक बन्दों में दाखिल करेंगे। (9)
और कुछ लोग कहते हैं, हम अल्लाह पर ईमान लाए, फिर जब अल्लाह की राह में सताए गए तो उन्हों ने लोगों के सताने को बना लिया (समझ लिया) जैसे अल्लाह का अजाब हो, और अगर तुम्हारे रब की तरफ से कोई मदद आए तो (उस वक्त) वह ज़रूर कहते हैं बेशक हम तुम्हारे साथ हैं, क्या अल्लाह खूब जानने वाला नहीं जो दुनिया जहान वालों के दिल में है। (10)
और अल्लाह ज़रूर मालूम करेगा उन लोगों को जो ईमान लाए और ज़रूर मालूम करेगा मुनाफ़िकों को। (11)
और काफ़िरों ने ईमान लाने वालों को कहाः तुम हमारी राह चलो, और हम तुम्हारे गुनाह उठा लेंगे, हालांकि वह उन के गुनाह उठाने वाले नहीं कुछ भी, बेशक वह झूटे हैं। (12)
और वह अलबत्ता ज़रूर अपने बोझ उठायेंगे और बहुत से बोझ अपने बोझ के साथ, और कियामत के दिन अलबत्ता उन से ज़रूर उस (के बारे में) बाज़ पुर्स होगी जो वह झूट घड़ते थे। (13)
बेशक हम ने नूह (अ) को उस की कौम की तरफ़ भेजा, तो वह उन में पचास साल कम हज़ार बरस रहे, फिर उन्हें (कौमे नूह अ को) तूफ़ान ने आ पकड़ा, और वह जालिम थे| (14)
फिर हम ने उसे और कश्ती वालों को बचा लिया और उस (कश्ती) को जहान वालों के लिए एक निशानी बनाया। (15)
और याद करो जब इब्राहीम (अ) ने अपनी कौम को कहा तुम अल्लाह की इबादत करो और उस से डरो, यह तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम जानते हो। (16)
इस के सिवा नहीं कि तुम परस्तिश करते हो अल्लाह के सिवा बुतों की, और तुम झूट घड़ते हो, बेशक अल्लाह के सिवा तुम जिन की परस्तिश करते हो वह तुम्हारे लिए रिजक के मालिक नहीं, पर तुम अल्लाह के पास (से) रिजकु तलाश करो, और तुम उस की इबादत करो और उस का शुक्र करो, और उसी की तरफ़ तुम को लौट कर जाना है। (17)
और अगर तुम झुटलाओगे तो झुटला चुकी हैं बहुत सी उम्मतें तुम से पहली (भी), और रसूल (स) के जिम्मे नहीं मगर साफ़ तौर पर पहुंचा देना। (18)
क्या उन्हों ने नहीं देखा कैसे अल्लाह पैदाइश की इब्तिदा करता है! फिर दोबारा उस को पैदा करेगा, बेशक अल्लाह पर यह आसान है। (19)
आप (स) फ़रमा दें (दुनिया में) चलो फिरो, फिर देखो उस ने कैसी पैदाइश की इब्तिदा की फिर अल्लाह उठाएगा दूसरी उठान (दूसरी बार), बेशक अल्लाह हर शै पर कुदरत रखने वाला है। (20) वह जिस को चाहे अजाब देता है
और जिस पर चाहे रहम फ़रमाता है और उसी की तरफ़ तुम लौटाए जाओगे| (21) और तुम जमीन में आजिज करने वाले नहीं और न आस्मान में,
और तुम्हारे लिए अल्लाह के सिवा न कोई हिमायती है और न कोई मददगार| (22)
और जिन लोगों ने अल्लाह की निशानियों का और उस की मुलाकात का इन्कार किया यही लोग मेरी रहमत से नाउम्मीद हुए, और यही है जिन के लिए अज़ाब है दर्दनाक (23)
सो उस की कौम का जवाब इस के सिवा न था कि उसे कत्ल कर डालो या उस को जला दो, सो अल्लाह ने उस को आग से बचा लिया| बेशक उस में उन लोगों के लिए निशानियां हैं जो ईमान रखते हैं। (24)
और इब्राहीम (अ) ने कहाः बेशक तुम ने अल्लाह के सिवा बुतों को दुनिया की जिन्दगी में आपस की दोस्ती (की वजह) बना लिए हो, फिर कियामत के दिन तुम में से एक दूसरे का मुक़ालिफ़ हो जाएगा और तुम में से एक दूसरे पर लानत (मलामत) करेगा, और तुम्हारा ठिकाना जहन्नम है, और तुम्हारे लिए कोई मददगार नहीं। (25)
पर उस पर लूत (अ) ईमान लाया और उस ने कहा बेशक मैं अपने रब की तरफ़ हिजत करने वाला (वतन छोड़ने वाला हूँ), बेशक वही गालिब हिक्मत वाला है। (26)
और हम ने उस (इब्राहीम अ) को अता फरमाए इसहाक (अ) और याकूब (अ) और हम ने उस की औलाद में नुबुव्वत और किताब रखी, और हम ने उस को उस का अजर दिया दुनिया में और बेशक वह आखिरत में अलबत्ता नेकोकारों में से है। (27)
और (हम ने भेजा) लूत (अ) को, याद करो जब उस ने कहा अपनी कौम को, बेशक तुम बेहयाई का (ऐसा काम) करते हो जो तुम से पहले जहान वालों में से किसी ने नहीं किया। (28)
क्या तुम वाकई मदों से (फ़ले बद) करते हो, और राह मारते (डाके डालते) हो, और तुम अपनी महफ़िलों में करते हो नाशायस्ता हरकात, सो उस की कौम का जवाब इस के सिवा न था कि उन्हों ने कहा हम पर अल्लाह का अजाब ले आ, अगर तू है सच्चे लोगों में से| (29)
लूत (अ) ने कहा ऐ मेरे रब! मुफसिद लोगों पर मेरी मदद फरमा। (30)
और जब आए हमारे फ़रिश्ते इब्राहीम (अ) के पास खुशखबरी ले कर, उन्हों ने कहा बेशक हम उस बस्ती के लोगों को हलाक करने वाले हैं, बेशक उस (बस्ती) के लोग बड़े शरीर है। (31)
इब्राहीम (अ) ने कहा बेशक उस (बस्ती) में लूत (अ) (भी है), वह (फ़रिशते) बोले हम खूब जानते हैं उस को जो उस (बस्ती) में है, अलबत्ता हम उस को और उस के घर वालों को ज़रूर बचा लेंगे सिवाए उस की बीवी, वह पीछे रह जाने वालों में से है। (32)
और जब हमारे फरिश्ते लूत (अ) के पास आए वह उन (के आने) से परेशान हुआ, उन की वजह से दिल तंग हुआ, और वह बोले डरो नहीं और गम न खाओ, बेशक हम तुझे और तेरे घर वालों को बचाने वाले है सिवाए तेरी बीवी के, वह पीछे रह जाने वालों में से है। (33)
बेशक हम इस बस्ती के लोगों पर आस्मान से अज़ाब नाज़िल करने वाले हैं, इस वजह से कि वह बदकारी करते थे। (34)
और अलबत्ता हम ने उस (बस्ती) से कुछ वाजेह निशान उन लोगों के लिए छोड़े (बाकी रखे) जो अक्ल रखते हैं। (35)
और मदयन (वालों) की तरफ उन के भाई शुऐब (अ) को भेजा पर उस ने कहा ऐ मेरी क़ौम! तुम अल्लाह की इबादत करो और आखिरत के दिन के उम्मीद वार रहो, और जमीन में फसाद मचाते न फिरो। (36)
फिर उन्हों ने उस को झुटलाया तो उन को आ पकड़ा ज़लज़ले ने, पर वह सुबह को अपने घरों में औन्धे पड़े रह गए। (37)
और (हम ने हलाक किया) आद । और समूद को, और तहक़ीक़ तुम पर उन के रहने के मुक़ामात वाजेह हो गए हैं, और शैतान ने उन के आमाल उन के लिए (उन्हें) भले कर दिखाए फिर उस ने उन्हें राहे (हक) से रोक दिया, हालांकि वह समझ बूझ वाले थे। (38)
और (हम ने हलाक किया) कारून और फ़िरऔन, और हामान को, और उन के पास मूसा (अ) खुली निशानियों के साथ आए तो उन्हों ने तकब्बुर किया मुल्क में और। वह बच कर भाग निकलने वाले न थे। (39)
पर हम ने हर एक को उस के गुनाह पर पकड़ा तो उन में से (बाज़ वह हैं। जिन पर हम ने पत्थरों की बारिश भेजी, और उन में से बाज़ को चिंघाड़ ने आ पकड़ा, और उन में से बाज़ को हम ने जमीन में धंसा दिया, और उन में से बाज़ को हम ने गर्क कर दिया, और अल्लाह (ऐसा) नहीं कि उन पर जुल्म करता बल्कि वह खुद अपनी जानों पर जुल्म करते थे। (40)
उन लोगों की मिसाल जिन्हों ने बनाए अल्लाह के सिवा मददगार, मकड़ी की मानिंद है, उस ने एक घर बनाया, और घरों में सब से कमज़ोर (बोदा) घर मकड़ी का है, काश वह जानते होते। (41)
बेशक अल्लाह जानता है जो वह पुकारते हैं उस के सिवा जिस चीज़ को भी, और वह गालिब, हिक्मत वाला। (42)
और यह मिसालें हम बयान करते हैं, लोगों के लिए, और उन्हें नहीं समझते जानने वालों के सिवा| (43)
और अल्लाह ने आस्मान और जमीन को पैदा किया हक़ के साथ, बेशक उस में ईमान वालों के लिए निशानी है। (44)
आप (स) पढ़ें जो आप (स) की तरफ़ किताब वहि की गई है, और नमाज़ काइम करें, बेशक नमाज़ रोकती है बेहयाई और बुराई से, और अलबत्ता अल्लाह की याद सब से बड़ी बात है, और अल्लाह जानता है जो तम करते हो। (45)
और तुम अहले किताब से न झगड़ो मगर उस तरीके से जो बेहतर हो, सिवाए उन में से जिन लोगों ने जुल्म किया, और तुम कहो हम उस पर ईमान लाए जो हमारी । तरफ नाज़िल किया गया और जो तुम्हारी तरफ़ नाजिल किया गया, और हमारा माबूद और तुम्हारा माबूद एक है, और हम उस के फ़रमांबरदार हैं। (46)
और उसी तरह हम ने तुम्हारी तरफ़ किताब नाज़िल की, पर जिन लोगों को हम ने किताब दी है वह ईमान लाते हैं उस पर, और अहले मक्का में से बाज़ उस पर ईमान लाते हैं, और हमारी आयतों से इनकार सिर्फ काफिर करते हैं। (47)
और आप (स) इस (नुजूले कुरआन) से कब्ल कोई किताब न पढ़ते थे और न अपने दाएं हाथ से उसे लिखते थे| उस सूरत में अलबत्ता हक़ नाशनास शक करते। (48)
बल्कि यह वाजेह आयतें उन के सीनों में महफूज हैं जिन्हें इल्म दिया गया, और हमारी आयतों का इन्कार सिर्फ ज़ालिम करते हैं। (49)
और वह बोले उस पर उस के रब की तरफ़ से निशानियां (मोजिजात) क्यों न नाजिल की गई, आप (स) फ़रमा दें इस के सिवा नहीं कि निशानियां (मोजिजात) अल्लाह के पास है और इस के सिवा नहीं कि मैं साफ़ साफ़ डराने वाला हूँ। (50)
क्या उन लोगों के लिए काफ़ी नहीं कि हम ने आप (स) पर किताब नाज़िल की जो उन पर पढ़ी जाती है, बेशक उस में उन लोगों के लिए रहमत और नसीहत है जो ईमान लाते हैं। (51)
आप (स) फ़रमा दें अल्लाह काफ़ी है मेरे और तुम्हारे दरमियान गवाह, वह जानता है जो कुछ आस्मानों और जमीन में है, और जो लोग बातिल पर ईमान लाए
और वह अल्लाह के मुन्किर हुए वही लोग हैं घाटा पाने वाले! (52)
और वह आप (स) से अजाब की जल्दी करते हैं, और अगर मीआद न होती मुकर्रर, तो उन पर अजाब आ चुका होता, और वह उन पर जरूर अचानक आएगा और उन्हें खबर (भी) न होगी। (53)
और वह आप (स) से अजाब की जल्दी करते हैं, और बेशक जहन्नम काफिरों को घेरे हुए है। (54)
जिस दिन उन्हें ढांप लेगा अजाब, उन के ऊपर से और उन के पाऊँ के नीचे से, और (अल्लाह तआला) कहेगा (उस का मज़ा) चखो जो तुम करते थे। (55)
ऐ मेरे बन्दो जो ईमान लाए हो! बेशक मेरी जमीन वसीअ है. पर तुम मेरी ही इबादत करो। (56)
हर शख्स को मौत (का मज़ा) चखना है, फिर तुम हमारी तरफ़ लौटाए जाओगे। (57)
और जो लोग ईमान लाए और उन्हों ने नेक अमल किए, हम ज़रूर उन्हें जगह देंगे जन्नत के बाला खानों में, उस के नीचे नहरें जारी हैं, वह उस में हमेशा रहेंगे, क्या ही अच्छा अजर है काम करने वालों का| (58)
जिन लोगों ने सबर किया, और वह अपने रब पर भरोसा करते हैं। (59)
और बहुत से जानवर हैं (जो) नहीं उठाए (फिरते) अपनी रोजी, अल्लाह उन्हें रोजी देता है और तुम्हें भी, और वह सुनने वाला, जानने वाला है। (60)
और अलबत्ता अगर तुम उन से पूछो किस ने जमीन और आस्मानों को बनाया? और सूरज और चाँद को काम में लगाया? तो वह ज़रूर कहेंगे “अल्लाह”, फिर वह कहां उलटे फिरे जाते हैं? (61) अल्लाह अपने बन्दों में से जिस के लिए चाहे रोजी फराख करता है
और (जिस के लिए चाहे) उस के लिए तंग कर देता है, बेशक अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है। (62)
और अलबत्ता अगर तुम उन से पूछोः किस ने आस्मान से पानी उतारा? फिर उस से जमीन को उस के मरने के बाद जिन्दा कर दिया, वह ज़रूर कहेंगे “अल्लाह”, आप (स) फ़रमा दें तमाम तारीफें अल्लाह के लिए हैं, लेकिन उन में अक्सर लोग अक्ल से काम नहीं लेते। (63)
और यह दुनिया की जिन्दगी खेल कूद के सिवा कुछ नहीं, और बेशक आख़िरत का घर ही (असल) ज़िन्दगी है, काश वह जानते होते। (64)
फिर जब वह कश्ती में सवार होते हैं तो वह अल्लाह को पुकारते हैं खालिस उसी पर एतिकाद रखते हुए, फिर जब वह उन्हें खुश्की की तरफ़ नजात देता (बचा लाता) है तो वह फ़ौरन शिर्क करने लगते हैं। (65)
ताकि उस की नाशुक्री करें जो हम ने उन्हें दिया है, और ताकि वह फाइदा उठाएं, पर अनकरीब वह जान लेंगे। (66)
क्या उन्हों ने नहीं देखा कि हम ने सरज़मीने मक्का को अमन की जगह बनाया, जब कि उस के इर्द गिर्द से लोग उचक लिए जाते हैं, पर क्या वह बातिल पर ईमान लाते हैं और अल्लाह की नेमत की नाशुक्री करते हैं। (67)
और उस से बड़ा ज़ालिम कौन है? जिस ने अल्लाह पर झूट बान्धा, या जब हक उस के पास आया उस ने उसे झुटलाया, क्या जहन्नम में काफिरों के लिए ठिकाना नहीं? (68)
और जिन लोगों ने हमारी राह में कोशिश की, हम ज़रूर उन्हें हिदायत देंगे अपने रास्तों की, और बेशक अल्लाह नेकोकारों के साथ है। (69)
***
29. THE SPIDER
(al-'Ankabut)
In the name of God, the Gracious, the Merciful.
1. Alif, Lam, Meem.
2. Have the people supposed that they
will be left alone to say, “We believe,” without being put to the test?
3. We have tested those before them.
God will surely know the truthful, and He will surely know the liars.
4. Or do those who commit sins think
they can fool Us? Terrible is their opinion!
5. Whoever looks forward to the
meeting with God—the appointed time of God is coming. He is the All-Hearing,
the All- Knowing.
6. Whoever strives, strives only for
himself. God is Independent of the beings.
7. Those who believe and do righteous
deeds—We will remit their sins, and We will reward them according to the best of
what they used to do.
8. We have advised the human being to
be good to his parents. But if they urge you to associate with Me something you
have no knowledge of, do not obey them. To Me is your return; and I will inform
you of what you used to do.
9. Those who believe and do good
works— We will admit them into the company of the righteous.
10. Among the people is he who says,
“We have believed in God.” Yet when he is harmed on God’s account, he equates
the people's persecution with God’s retribution. And if help comes from your
Lord, he says, “We were actually with you.” Is not God aware of what is inside
the hearts of the people?
11. God certainly knows those who
believe, and He certainly knows the hypocrites.
12. Those who disbelieve say to those
who believe, “Follow our way, and we will carry your sins.” In no way can they
carry any of their sins. They are liars.
13. They will carry their own loads,
and other loads with their own. And they will be questioned on the Day of
Resurrection concerning what they used to fabricate.
14. We sent Noah to his people, and He
stayed among them for a thousand years minus fifty years. Then the Deluge swept
them; for they were wrongdoers.
15. But We saved him, together with
the company of the Ark, and We made it a sign for all peoples.
16. And Abraham, when he said to his
people, “Worship God, and fear Him. That is better for you, if you only knew.
17. You worship idols besides God, and
you fabricate falsehoods. Those you worship, instead of God, cannot provide you
with livelihood. So seek your livelihood from God, and worship Him, and thank
Him. To Him you will be returned.”
18. If you disbelieve, communities
before you have also disbelieved. The Messenger is only responsible for clear
transmission.
19. Have they not seen how God originates the creation, and then
reproduces it? This is easy for God.
20. Say, “Roam the earth, and observe
how He originated the creation.” Then God will bring about the next existence.
God has power over all things.”
21. He punishes whom He wills, and He
grants mercy to whom He wills, and to Him you will be restored.
22. You cannot escape, on earth or in
the heaven; and you have no protector and no savior besides God.
23. Those who disbelieved in God’s
signs and His encounter—these have despaired of My mercy. For them is a painful
torment.
24. But the only response from his
people was their saying, “Kill him, or burn him.” But God saved him from the
fire. Surely in that are signs for people who believe.
25. And he said, “You have chosen
idols instead of God, out of affection for one another in the worldly life. But
then, on the Day of Resurrection, you will disown one another, and curse one
another. Your destiny is Hell, and you will have no saviors.”
26. Then Lot believed in him, and
said, “I am emigrating to my Lord. He is the Noble, the Wise.”
27. And We granted him Isaac and
Jacob, and conferred on his progeny the Prophethood and the Book, and gave him
his reward in this life; and in the Hereafter he will be among the upright.
28. And Lot, when he said to his
people, “You are committing an obscenity not perpetrated before you by anyone
in the whole world.
29. You approach men, and cut off the
way, and commit lewdness in your gatherings.” But the only response from his
people was to say, “Bring upon us God’s punishment, if you are truthful.”
30. He said, “My Lord, help me against
the people of corruption.”
31. And when Our envoys brought
Abraham the good news, they said, “We are going to destroy the people of this
town; its people are wrongdoers.”
32. He said, “Yet Lot is in it.” They
said, “We are well aware of who is in it. We will save him, and his family,
except for his wife, who will remain behind.”
33. Then, when Our envoys came to Lot,
they were mistreated, and he was troubled and distressed on their account. They
said, “Do not fear, nor grieve. We will save you and your family, except for
your wife, who will remain behind.
34. “We will bring down upon the
people of this town a scourge from heaven, because of their wickedness.”
35. And We left behind a clear trace
of it, for people who understand.
36. And to Median, their brother
Shuaib. He said, “O my people, worship God and anticipate the Last Day, and do
not spread corruption in the land.”
37. But they rejected him, so the
tremor overtook them, and they were left motionless in their homes.
38. And Aad and Thamood. It has become
clear to you from their dwellings. Satan embellished for them their deeds,
barring them from the path, even though they could see.
39. And Quaroon, and Pharaoh, and Hamaan—
Moses went to them with clear arguments, but they acted arrogantly in the land.
And they could not get ahead.
40. Each We seized by his sin. Against
some We sent a sandstorm. Some were struck by the Blast. Some We caused the
ground to cave in beneath them. And some We drowned. It was not God who wronged
them, but it was they who wronged their own selves.
41. The likeness of those who take to
themselves protectors other than God is that of the spider. It builds a house.
But the most fragile of houses is the spider’s house. If they only knew.
42. God knows what they invoke besides
Him. He is the Almighty, the Wise.
43. These examples—We put them forward
to the people; but none grasps them except the learned.
44. God created the heavens and the
earth with truth. Surely in that is a sign for the believers.
45. Recite what is revealed to you of
the Scripture, and perform the prayer. The prayer prevents indecencies and
evils. And the remembrance of God is greater. And God knows what you do.
46. And do not argue with the People
of the Scripture except in the best manner possible, except those who do wrong
among them. And say, “We believe in what was revealed to us, and in what was
revealed to you; and our God and your God is One; and to Him we are submissive.”
47. Likewise, We revealed to you the
Scripture. Those to whom We gave the Scripture believe in it, and some of these
believe in it. But none renounce Our communications except the disbelievers.
48. You did not read any scripture
before this, nor did you write it down with your right hand; otherwise the
falsifiers would have doubted.
49. In fact, it is clear signs in the
hearts of those given knowledge. No one renounce Our signs except the unjust.
50. And they said, “If only a miracle
from his Lord was sent down to him.” Say, “Miracles are only with God, and I am
only a clear warner.”
51. Does it not suffice them that We
revealed to you the Scripture, which is recited to them? In that is mercy and a
reminder for people who believe.
52. Say, “God suffices as witness
between you and me. He knows everything in the heavens and the Earth. Those who
believe in vanity and reject God—it is they who are the losers.”
53. And they urge you to hasten the
punishment. Were it not for a specified time, the punishment would have come to
them. But it will come upon them suddenly, while they are unaware.
54. They urge you to hasten the
punishment. But Hell will engulf the disbelievers.
55. On the Day when the punishment
will envelop them, from above them, and from beneath their feet, He will say,
“Taste what you used to do!”
56. O My servants who have believed,
My earth is vast, so worship Me alone.
57. Every soul will taste death. Then
to Us you will be returned.
58. Those who believe and work
righteousness— We will settle them in Paradise, in mansions under which rivers
flow, dwelling therein forever. Excellent is the compensation for the workers.
59. Those who endure patiently, and in
their Lord they trust.
60. How many a creature there is that does not carry its
provision? God provides for them, and for you. He is the Hearer, the
Knowledgeable.
61. And if you asked them, “Who
created the heavens and the earth and regulated the sun and the moon?” They
would say, “God.” Why then do they deviate?
62. God expands the provision for
whomever He wills of His servants, and restricts it. God is Cognizant of all
things.
63. And if you asked them, “Who sends
water down from the sky, with which He revives the earth after it had died?”
They would say, “God.” Say, “Praise be to God.” But most of them do not
understand.
64. The life of this world is nothing
but diversion and play, and the Home of the Hereafter is the Life, if they only
knew.
65. When they embark on a vessel, they
pray to God, devoting their faith to Him; but once He has delivered them safely
to land, they attribute partners to Him.
66. To be ungrateful for what We have
given them, and to enjoy themselves. They will surely come to know.
67. Do they not see that We
established a Secure Sanctuary, while all around them the people are being
carried away? Do they believe in falsehood, and reject the blessings of God?
68. And who does greater wrong than he
who fabricates lies and attributes them to God, or calls the truth a lie when
it has come to him? Is there not in Hell a dwelling for the blasphemers?
69. As for those who strive for Us—We will guide
them in Our ways. God is with the doers of good.
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