सूरा-मरयम
अल्लाह के नाम से जो बहुत मेहरबान, रहम करने वाला है।
काफ़-हा-या-ऐन-साद] (1)
यह तजकिरा है तेरे रख की रहमत का, उस के बन्दे जकरिया (अ) पर| (2)
(याद करो) जब उस ने अपने रब को आहिस्ता से पुकारा। (3)
उस ने कहा ऐ मेरे रब! बेशक (बुढ़ापे से) मेरी हड्डियां कमज़ोर हो गई हैं, और मेरा सर सफ़ेद बालों से शोले मारने लगा है। (बिलकुल सफेद हो गया) और मैं (कभी) तुझ से मांग कर ऐ मेरे रब महरूम नहीं रहा हूँ। (4)
और अलबत्ता मैं अपने बाद अपने रिश्तेदारों से डरता हूँ, और मेरी बीवी बांझ है, तू मुझे अता फरमा अपने पास से एक वारिस। (5)
वह वारिस हो मेरा और औलादे याकूब (अ) का, और ऐ मेरे रब! उसे पसंदीदा बना दे| (6)
(इरशाद हुआ) ऐ जकरिया (अ)! बेशक हम तुझे एक लड़के की बशारत देते हैं, उस का नाम यहया (अ) है। हम ने इस से कल किसी को उस का हम नाम नहीं बनाया। (7)
उस ने कहा, ऐ मेरे रब! मेरे लड़का कैसे होगा? जब कि मेरी बीवी बांझ है, और मैं पहुंच गया हूँ बुढ़ापे की इन्तिहाई हद को। (8)
उस ने कहा उसी तरह, तेरा रब फ़रमाता है, यह (अमर) मुझ पर आसान है, और इस से कब्ल मैं ने तुझे पैदा किया, जब कि तू कुछ भी न था। (9)
उस ने कहा ऐ मेरे रब! मेरे लिए कोई निशानी (मकर्रर कर दे, फ़रमाया तेरी निशानी (यह है कि तु लोगों से बात न करेगा तीन रात (दिन) ठीक (होने के बावजूद)। (10)
फिर वह मेहराबे (इबादत) से अपनी कौम के पास निकल कर (आया) तो उस ने उन की तरफ़ इशारा किया कि उसकी पाकीज़गी बयान करो सुबह ओ शाम| (11)
(इरशाद इलाही हुआ) ऐ यहया (अ)! किताब को मजबूती से थाम लो, और हम ने उसे बचपन (ही) से नबूवत ओ दानाई देदी। (12)
और अपने पास से शफ़क़त और पाकीज़गी (अता की) और वह परहेज़गार था, (13)
और वह अपने माँ बाप से अच्छा सुलूक करने वाला था, और न था गर्दन कश नाफरमान। (14)
और सलाम (सलामती) हो उस पर जिस दिन वह पैदा हुआ, और जिस दिन वह फौत होगा, और जिस दिन ज़िन्दा करके उठाया जाएगा। (15)
और किताब (कुरआन) में मरयम (अ) का जिक्र (याद) करो, जब वह अपने घर वालों से अलग हो गई एक मश्रिकी मकान में| (16)
फिर उस ने डाल लिया उन की तरफ़ से पर्दा, फिर हम ने उस की तरफ़ अपने फ़रिश्ते को भेजा, वह उस के लिए ठीक एक आदमी की शक्ल बन कर आया। (17)
वह बोली बेशक मैं तुझ से अल्लाह की पनाह में आती हूँ, अगर तू परहेज़गार है (यहां से हट जा)। (18)
उस ने कहा इस के सिवा नहीं कि मैं तेरे रब का भेजा हुआ हूँ ताकि तुझे एक पाकीज़ा लड़का अता करूं| (19)
वह बोली मेरे लड़का कैसे होगा? जब कि न मुझे किसी बशर ने । छुआ, और न मैं बदकार हूँ। (20)
उस ने कहा उसी तरह (अल्लाह का फैसला है), तेरे रब ने फ़रमाया कि यह मुझ पर आसान है, और ताकि हम उसे लोगों के लिए एक निशानी बनाएं, और अपनी तरफ़ से रहमत, और यह है एक तै शुदा अम। (21)
फिर उसे हम्ल रह गया, पर वह उसे ले कर एक दूर जगह चली गई। (22)
फिर दर्द जह उसे खजूर के दरख्त की जड़ की तरफ़ ले आया, वह बोली, ए काश! मैं इस से क़ब्ल मर चुकी होती, और मैं हो जाती भूली बिसरी| (23)
पर उसे उस के नीचे (वादी) से (फ़रिश्ते ने) आवाज़ दीः तू घबरा नहीं, तेरे रब ने तेरे नीचे एक चश्मा (जारी कर दिया है। (24)
और खजूर का तना अपनी तरफ़ हिला, तुझ पर ताज़ा खजूर झड़ पड़ेंगी। (25)
तू खा और पी और आंखें ठंडी कर, फिर अगर तू किसी आदमी को देखे तो कह दे कि मैं ने रहमान के लिए रोजे की नजर मानी है, पर आज हरगिज़ किसी आदमी से कलाम न करूंगी। (26)
फिर वह उसे उठा कर अपनी कौम के पास लाई, वह बोले ऐ मरयम (आ! तू लाई है गजब की शै| (27)
ऐ हारून (अ) की बहन! तेरा बाप बुरा आदमी न था और न तेरी माँ ही थी बदकार| (28)
तो मरयम ने उस (बच्चे) की तरफ़ इशारा किया, वह बोलेः हम गहवारे (गोद) के बच्चे से कैसे बात करें? (29)
बच्चे ने कहाः बेशक मैं अल्लाह का बन्दा हूँ, उस ने मुझे किताब दी, (30)
और मुझे नबी बनाया, और जहां कहीं मैं हूँ मुझे बाबरकत बनाया है, और जब तक मैं जिन्दा रहूँ मुझे हुक्म दिया है नमाज़ का और जकात का, (31)
और अपनी माँ से अच्छा सुलूक करने का, और उस ने मुझे नहीं बनाया सरकश, बदनसीब। (32)
और सलामती हो मुझ पर जिस दिन में पैदा हुआ, और जिस दिन मैं मरूँगा, और जिस दिन मैं जिन्दा करके उठाया जाऊँगा। (33)
यह है ईसा (अ) इब्ने मरयम (अ), सच्ची बात जिस में वह (लोग) शक करते हैं। (34)
अल्लाह के लिए (सज़ावार) नहीं है कि वह कोई बेटा बनाए, वह पाक है, जब वह किसी काम का फैसला करता है तो उस के सिवा नहीं कि वह कहता है “हो जा” पर वह हो जाता है। (35)
और बेशक अल्लाह मेरा और तुम्हारा रब है, पर उस की इबादत करो, यह सीधा रास्ता है। (36)
(फिर अहले किताब के) फ़िरकों ने इखतिलाफ किया बाहम, पर खराबी है काफ़िरों के लिए कियामत के) बड़े दिन की हाज़िरी से, (37)
क्या कुछ सुनेंगे! और क्या कुछ देखेंगे! जिस दिन वह हमारे सामने आएंगे, लेकिन आज के दिन ज़ालिम खुली गुमराही में हैं। (38)
और आप (स) उन्हें हसरत के दिन से डरावें जब मामले का फैसला कर दिया जाएगा, लेकिन वह गफलत में हैं, और वह ईमान नहीं लाते। (39)
बेशक हम वारिस होंगे जमीन के और जो कुछ उस पर है, और वह हमारी तरफ़ लौटाए जाएंगे। (40)
और किताब में इब्राहीम (अ) को याद करो, बेशक वह सच्चे नबी थे| (41)
जब उस ने अपने बाप से कहा, ऐ मेरे अब्बाः तुम क्यों उस की परस्तिश करते हो? जो न कुछ सुने और न देखे, और न काम आए तुम्हारे कुछ भी। (42)
ऐ मेरे अबबा! बेशक मेरे पास वह इल्मे (वहि) आया है जो तुम्हारे पास नहीं आया, पर मेरी बात मानो, मैं तुम्हें ठीक सीधा रास्ता दिखाऊँगा। (43)
ऐ मेरे अबबा! शैतान की परस्तिश न कर, बेशक शैतान रहमान का नाफरमान है। (44)
ऐ मेरे अबबा! बेशक मैं डरता हूँ कि (कहीं) रहमान का अजाब तुझे (न) आ पकड़े| फिर तू ही जाए शैतान का साथी। (45)
उस ने कहा ऐ इब्राहीम (अ)! क्या तू मेरे माबूदों से रूगर्दा है? अगर तू बाज़ न आया तो मैं तुझे ज़रूर संगसार कर दूंगा, और मुझे एक मुद्दत के लिए छोड़ दे| (46)
इब्राहीम (अ) ने कहा तुझ पर सलाम हो, मैं अभी तेरे लिए अपने रब से बखुशिश मांगूंगा, बेशक वह मुझ पर मेहरबान है, (47)
और मैं किनारा कशी करता हूँ तुम से और अल्लाह के सिवा जिन की तुम परस्तिश करते हो, और मैं अपने रख की इबादत करूँगा, उम्मीद है कि मैं अपने रब की इबादत करके महरूम न रहूँगा। (48)
फिर जब वह (इब्राहीम अ) उन से और अल्लाह के सिवा वह जिन की परस्तिश करते थे किनारा कश हो गए, हम ने उस को इसहाक (अ) और याकूब (अ) अता किए और (उन) सब को हम ने नबी बनाया। (49)
और हम ने अपनी रहमत से उन्हें (बहुत कुछ) अता किया और हम ने उन का ज़िक्रे जमील निहायत बुलन्द किया। (50)
और किताब में मूसा (अ) को याद करो, बेशक वह बरगुजीदा थे, और रसूल नबी थे। (51)
और हम ने उसे कोहे तूर की दाहिनी जानिब से पुकारा, और हम ने उसे राज़ बतलाने को नजदीक बुलाया। (52)
और हम ने उसे अपनी रहमत से उस का भाई हारून (अ) अता किया। (53)
और किताब में इस्माईल (अ) को याद करो, बेशक वह वादे के सच्चे थे, और रसूल नबी थे। (54)
और वह अपने घर वालों को नमाज़ और जकात का हुक्म देते थे, और वह अपने रब के हां पसंदीदा थे। (55)
और किताब में इदरीस (अ) को याद करो, बेशक वह सच्चे नबी थे। (56)
और हम ने उसे एक बुलन्द मुकाम पर उठा लिया। (57)
यह हैं नबियों में से वह जिन पर अल्लाह ने इन्आम किया औलादे आदम में से, और उन में से जिन्हें हम ने नूह (अ) के साथ (कश्ती में) सवार किया, और इब्राहीम (अ) और याकूब (अ) की औलाद में से, और उन में से जिन्हें हम ने हिदायत दी, और चुना, जब उन पर रहमान की आयतें पढ़ी जाती वह ज़मीन पर गिर पड़ते सिज्दा करते और रोते हुए। (58)
फिर उन के बाद चन्द नाखलफ़ जांनशीन हुए, उन्हों ने नमाज़ गंवादी, और ख़ाहिशाते (नफ़सानी) की पैरवी की, पर अनकरीब उन्हें गुमराही (की सज़ा) मिलेगी। (59)
मगर जिस ने तौबा की और ईमान लाया और नेक अमल किए, पर यही लोग हैं जो जन्नत में दाखिल होंगे, और जरी भर भी उन का नुक्सान न किया जाएगा, (60)
हमेशागी के बागात में जिन का वादा रहमान ने गाइबाना अपने बन्दों से किया, बेशक उस का वादा आने वाला है। (61)
और उस में सलाम के सिवा कोई बेहूदा बात न सुनेंगे, और उन के लिए उस में सुबह ओ शाम उन का रिजक है। (62)
यह वह जन्नत है जिस का हम अपने (उन) बन्दों को वारिस बनाएंगे जो परहेज़गार होंगे। (63)
और (फ़रिश्तों ने कहा, हम तुम्हारे रब के हुक्म के बगैर नहीं उतरते, उसी के लिए है जो हमारे आगे, और जो हमारे पीछे है और जो उस के दरमियान है, और तुम्हारा रब भूलने वाला नहीं। (64)
वह रब है आस्मानों का और ज़मीन का, और जो उन के दरमियान है, पर तुम उसी की इबादत करो, और उस की इबादत पर साबित क़दम रहो, क्या तू कोई उस का हम नाम जानता है? (65)
और (काफ़िर) इन्सान कहता है क्या जब मैं मर गया तो फिर मैं जिन्दा कर के (जमीन से) निकाला जाऊँगा! (66)
क्या इनसान याद नहीं करता (क्या उसे याद नहीं) कि हम ने उसे इस से पहले पैदा किया जब कि वह कुछ भी न था। (67)
सो तुम्हारे रब की क़सम हम उन्हें और शैतानों को ज़रूर जमा करेंगे, फिर हम उन्हें ज़रूर हाज़िर कर लेंगे जहन्नम के गिर्द घुटनों के बल गिरे हुए। (68)
फिर हर गिरोह में से हम उसे ज़रूर खींच निकालेंगे जो उन में अल्लाह रहमान से बहुत ज़ियादा सरकशी करने वाला था। (69)
फिर अलबत्ता हम उन से खूब वाकिफ हैं जो उस (जहन्नम) में दाखिल होने के ज़ियादा मुस्तहिक है। (70)
और तुम में से कोई नहीं मगर उसे (हर एक को) यहां से गुज़रना होगा। तुम्हारे रब का अपने ऊपर लाज़िम मुकर्रर किया हुआ। (71)
फिर हम उन लोगों को नजात देंगे जिन्हों ने परहेज़गारी की, और हम ज़ालिमों को उस में छोड़ देंगे घुटनों के बल गिरे हुए| (72)
और जब उन पर हमारी वाजेह आयतें पढ़ी जाती हैं तो जिन्हों ने कुफ़ किया वह ईमान लाने वालों से कहते हैं, दोनों फरीक में से किस का मुकाम (मरतबा) बेहतर और मज्लिस अच्छी है? (73)
और इन से पहले हम कितने ही गिरोह हलाक कर चुके हैं, वह सामान और नमूद में (इन से) बहुत अच्छे थे। (74)
कह दीजिए जो गुमराही में है तो उस को अर-रहमान गुमराही में और खूब ढील दे रहा है यहां तक कि वह देख लेंगे, या अजाब या कियामत जिस का उन से वादा किया जाता है, पर वह तब जान लेंगे कौन है बदतर मुकाम (मरतबा) में? और कमजोर तर लशकर में| (75)
और जिन लोगों ने हिदायत हासिल की अल्लाह उन्हें और जियादा हिदायत देता है, और तुम्हारे रब के नजदीक बाकी रहने वाली नेकियां बेहतर हैं ब-एतिबारे सवाब और बेहतर है ब-एतिबारे अनजाम। (76)
पर क्या तू ने उस शख्स को देखा जिस ने हमारे हुक्मों का इनकार किया? और कहा मैं ज़रूर माल और औलाद दिया जाऊँगा। (77)
क्या वह गैब पर मत्तला हो गया है? या उस ने अल्लाह रहमान से ले लिया है कोई अहद| (78)
हरगिज नहीं! जो वह कहता है अब हम लिख लेंगे और उस को अजाब लंबा बढ़ादेंगे| (79)
और हम वारिस होंगे (ले लेंगे) जो वह कहता है और वह हमारे पास अकेला आएगा। (80)
और उन्हों ने अल्लाह के सिवा (औरों को) माबूद बना लिया है ताकि उन के लिए मोजिबे इज्जत हों। (81)
हरगिज़ नहीं, जल्द ही वह उन की बन्दगी से इन्कार करेंगे और उन के मुखालिफ़ हो जाएंगे। (82)
क्या तुम ने नहीं देखा? बेशक हम ने शैतान भेजे हैं काफिरों पर, वह उन्हें खूब उकसाते रहते हैं। (83)
सो तुम उन पर (नुजूले अजाब की) जल्दी न करो, हम तो सिर्फ उनकी गिनती पूरी कर रहे हैं (उन के दिन गिन रहे हैं।। (84)
(याद करी) जिस दिन हम परहेज़गारों को अल्लाह रहमान की तरफ़ मेहमान बना कर जमा कर लाएंगे। (85)
और हम गुनाहगारों को हांक कर ले जाएंगे जहन्नम की तरफ़ प्यासे। (86)
वह शफाअत का इतियार नहीं रखते सिवाए उस के जिस ने अल्लाह रहमान से लिया हो इकरार| (87)
और वह कहते हैं अल्लाह रहमान ने बेटा बना लिया है. (88)
तहकीक़ तुम (जबान पर) बुरी बात लाए हो। (89)
करीब है (बईद नहीं) कि आस्मान उस से फट पड़ें और ज़मीन टुकड़े टुकड़े हो जाए, और पहाड़ पारा पारा हो कर गिर पड़ें। (90)
कि उन्हों ने अल्लाह के लिए मन्सूब किया बेटा। (91)
जब कि रहमान के शायान नहीं कि वह बेटा बनाए| (92)
नहीं कोई जो आस्मानों में है और जमीन में है, मगर रहमान के (हुजूर) बन्दा हो कर आता है। (93)
उस ने उन को घेर लिया है, और गिन कर उन का शुमार कर लिया है। (94)
और उन में से हर एक कियामत के दिन उस के सामने अकेला आएगा| (95)
बेशक जो लोग ईमान लाए और उन्हों ने किए अमल नेक उन के लिए पैदा कर देगा रहमान (दिलों में) मुहब्बत। (96)
पर उस के सिवा नहीं कि हम ने (कुरआन) को आप (स) की जबान में आसान कर दिया ताकि उस से आप (स) परहेज़गारों को खुशखबरी दें और झगड़ालू लोगों को उस से डराएं। (97)
और इन से कब्ल हम ने हलाक कर दिए कितने ही गिरोह, क्या तम उन में से किसी को देखते हो? या उन की आहट सुनते हो? (98)
***
19. MARY
(Maryam)
In the name of God, the Gracious, the Merciful.
1.
Kaf, Ha, Ya, Ayn, Saad.
2.
A mention of the mercy of your Lord towards His servant Zechariah.
3.
When he called on his Lord, a call in seclusion.
4.
He said, “My Lord, my bones have become feeble, and my hair is aflame with gray,
and never, Lord, have I been disappointed in my prayer to you.
5.
“And I fear for my dependents after me, and my wife is barren. So grant me,
from Yourself, an heir.
6.
To inherit me, and inherit from the House of Jacob, and make him, my Lord, pleasing.”
7.
“O Zechariah, We give you good news of a son, whose name is John, a name We have
never given before.
8.
He said, “My Lord, how can I have a son, when my wife is barren, and I have become
decrepit with old age?”
9.
He said, “It will be so, your Lord says, ‘it is easy for me, and I created you
before, when you were nothing.’”
10.
He said, “My Lord, give me a sign.” He said, “Your sign is that you will not
speak to the people for three nights straight.”
11.
And he came out to his people, from the sanctuary, and signaled to them to praise
Him morning and evening.
12.
“O John, hold on to the Scripture firmly,” and We gave him wisdom in his youth.
13.
And tenderness from Us, and innocence. He was devout.
14.
And kind to his parents; and he was not a disobedient tyrant.
15.
And peace be upon him the day he was born, and the day he dies, and the Day he is
raised alive.
16.
And mention in the Scripture Mary, when she withdrew from her people to an eastern
location.
17.
She screened herself away from them, and We sent to her Our spirit, and He
appeared to her as an immaculate human.
18.
She said, “I take refuge from you in the Most Merciful, should you be righteous.”
19.
He said, “I am only the messenger of your Lord, to give you the gift of a pure son.”
20.
She said, “How can I have a son, when no man has touched me, and I was never unchaste?”
21.
He said, “Thus said your Lord, `It is easy for Me, and We will make him a sign for
humanity, and a mercy from Us. It is a matter already decided.'“
22.
So she carried him, and secluded herself with him in a remote place.
23.
The labor-pains came upon her, by the trunk of a palm-tree. She said, “I wish I
had died before this, and been completely forgotten.”
24.
Whereupon he called her from beneath her: “Do not worry; your Lord has placed a
stream beneath you.
25. And shake the trunk of the palm-tree towards you, and
it will drop ripe dates by you.”
26.
“So eat, and drink, and be consoled. And if you see any human, say, ‘I have vowed
a fast to the Most Gracious, so I will not speak to any human today.'“
27.
Then she came to her people, carrying him. They said, “O Mary, you have done something
terrible.
28.
O sister of Aaron, your father was not an evil man, and your mother was not a whore.”
29.
So she pointed to him. They said, “How can we speak to an infant in the crib?”
30.
He said, “I am the servant of God. He has given me the Scripture, and made me a
prophet.
31.
And has made me blessed wherever I may be; and has enjoined on me prayer and
charity, so long as I live.
32.
And kind to my mother, and He did not make me a disobedient rebel.
33.
So Peace is upon me the day I was born, and the day I die, and the Day I get
resurrected alive.”
34.
That is Jesus son of Mary—the Word of truth about which they doubt.
35.
It is not for God to have a child—glory be to Him. To have anything done, He says
to it, “Be,” and it becomes.
36.
“God is my Lord and your Lord, so worship Him. That is a straight path.”
37.
But the various factions differed among themselves. So woe to those who
disbelieve from the scene of a tremendous Day.
38.
Listen to them and watch for them the Day they come to Us. But the wrongdoers today
are completely lost.
39.
And warn them of the Day of Regret, when the matter will be concluded. Yet they
are heedless, and they do not believe.
40.
It is We who will inherit the earth and everyone on it, and to Us they will be
returned.
41.
And mention in the Scripture Abraham. He was a man of truth, a prophet.
42.
He said to his father, “O my father, why do you worship what can neither hear,
nor see, nor benefit you in any way?
43.
O my father, there has come to me knowledge that never came to you. So follow me,
and I will guide you along a straight way.
44.
O my father, do not worship the devil. The devil is disobedient to the Most
Gracious.
45.
O my father, I fear that a punishment from the Most Gracious will afflict you, and
you become an ally of the devil.”
46.
He said, “Are you renouncing my gods, O Abraham? If you do not desist, I will stone
you. So leave me alone for a while.”
47.
He said, “Peace be upon you. I will ask my Lord to forgive you; He has been
Kind to me.
48.
And I will withdraw from you, and from what you pray to instead of God. And I
will pray to my Lord, and I hope I will not be disappointed in my prayer to my
Lord.”
49.
When he withdrew from them, and from what they worship besides God, We granted
him Isaac and Jacob. And each We made a prophet.
50.
And We gave them freely of Our mercy, and gave them a noble reputation of truth.
51.
And mention in the Scripture Moses. He was dedicated. He was a messenger and a
prophet.
52.
And We called him from the right side of the Mount, and brought him near in communion.
53.
And We granted him, out of Our mercy, his brother Aaron, a prophet.
54.
And mention in the Scripture Ishmael. He was true to his promise, and was a messenger,
a prophet.
55.
And he used to enjoin on his people prayer and charity, and he was pleasing to his
Lord.
56.
And mention in the Scripture Enoch. He was a man of truth, a prophet.
57.
And We raised him to a high position.
58.
These are some of the prophets God has blessed, from the descendants of Adam, and
from those We carried with Noah, and from the descendants of Abraham and
Israel, and from those We guided and selected. Whenever the revelations of the Most
Gracious are recited to them, they would fall down, prostrating and weeping.
59.
But they were succeeded by generations who lost the prayers and followed their appetites.
They will meet perdition.
60.
Except for those who repent, and believe, and act righteously. These will enter
Paradise, and will not be wronged in the least.
61.
The Gardens of Eden, promised by the Most Merciful to His servants in the
Unseen. His promise will certainly come true.
62.
They will hear no nonsense therein, but only peace. And they will have their
provision therein, morning and evening.
63.
Such is Paradise which We will give as inheritance to those of Our servants who
are devout.
64.
“We do not descend except by the command of your Lord. His is what is before us,
and what is behind us, and what is between them. Your Lord is never forgetful.”
65.
Lord of the heavens and the earth and what is between them. So worship Him, and
persevere in His service. Do you know of anyone equal to Him?
66.
And the human being says, “When I am dead, will I be brought back alive?”
67.
Does the human being not remember that We created him before, when he was nothing?
68.
By your Lord, We will round them up, and the devils, then We will bring them around
Hell, on their knees.
69.
Then, out of every sect, We will snatch those most defiant to the Most
Merciful.
70.
We are fully aware of those most deserving to scorch in it.
71.
There is not one of you but will go down to it. This has been an unavoidable decree
of your Lord.
72.
Then We will rescue those who were devout, and leave the wrongdoers in it, on their
knees.
73.
When Our clear revelations are recited to them, those who disbelieve say to
those who believe, “Which of the two parties is better in position, and
superior in influence?”
74.
How many a generation have We destroyed before them, who surpassed them in
riches and splendor?
75.
Say, “Whoever is in error, the Most Merciful will lead him on.” Until, when they
see what they were promised—either the punishment, or the Hour. Then they will
know who was in worse position and weaker in forces.
76.
God increases in guidance those who accept guidance. And the things that
endure— the righteous deeds—have the best reward with your Lord, and the best
outcome.
77.
Have you seen him who denied Our revelations, and said, “I will be given wealth
and children”?
78.
Did he look into the future, or did he receive a promise from the Most
Merciful?
79.
No indeed! We will write what he says, and will keep extending the agony for
him.
80.
Then We will inherit from him what he speaks of, and he will come to Us alone.
81.
And they took, besides God, other gods, to be for them a source of strength.
82.
By no means! They will reject their worship of them, and become opponents to
them.
83.
Have you not considered how We dispatch the devils against the disbelievers, exciting
them with incitement?
84.
So do not hurry against them. We are counting for them a countdown.
85.
On the Day when We will gather the righteous to the Most Merciful, as guests.
86.
And herd the sinners into hell, like animals to water.
87.
They will have no power of intercession, except for someone who has an agreement
with the Most Merciful.
88.
And they say, “The Most Merciful has begotten a son.”
89.
You have come up with something monstrous.
90.
At which the heavens almost rupture, and the earth splits, and the mountains
fall and crumble.
91.
Because they attribute a son to the Most Merciful.
92.
It is not fitting for the Most Merciful to have a son.
93.
There is none in the heavens and the earth but will come to the Most Merciful as
a servant.
94.
He has enumerated them, and counted them one by one.
95.
And each one of them will come to Him on the Day of Resurrection alone.
96.
Those who believe and do righteous deeds, the Most Merciful will give them love.
97.
We made it easy in your tongue, in order to deliver good news to the righteous,
and to warn with it a hostile people.
98.
How many a generation have We destroyed before them? Can you feel a single one
of them, or hear from them the slightest whisper?
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