Quran-E-Pak

सूरा- अल-अम्बिया | Surah 21

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सूरा- अल-अम्बिया

| मक्का कालीन | आयत 112 | 

रसूल (जमा)

सूरा- अल-अम्बिया | Surah 21


अल्लाह के नाम से जो बहुत मेहरबान, रहम करने वाला है 

लोगों के लिए उन के हिसाब (का वक्त) करीब आ गया, और वह गलत में (उस से) मुँह फेर रहे हैं। (1) 

उन के पास उन के रब (की तरफ़) से कोई नई नसीहत नहीं आती। मगर वह उसे खेलते हुए (बे परवाह हो कर) सुनते हैं। (2) 

उन के दिल गफलत में हैं और जालिमों ने चुपके चुपके सरगोशी की कि यह (मुहम्मद रसूलुल्लाह) क्या हैं! मगर एक बशर तुम ही जैसे, क्या (फिर भी) तुम जादू के पास आओगे? जबकि तुम देखते हो। (3) 

आप (स) ने फ़रमाया मेरा रब । जानता है हर बात जो आस्मानों में और ज़मीन में (होती है, और वह सुनने वाला जानने वाला है। (4) 

बल्कि उन्हों ने कहा (यह) परेशान ख्वाब हैं, बल्कि उस ने घड़ लिया है, बल्कि वह तो एक शायर है, पर वह हमारे पास कोई निशानी लाए जैसे पहले (नबी निशानियां दे कर) भेजे गए थे। (5) 

उन से कब्ल कोई बस्ती जिस को हम ने हलाक किया (निशानियां देख कर भी) ईमान नहीं लाई, तो क्या यह ईमान ले आएंगे? (6)

और हम ने (रसूल) नहीं भेजे तुम से पहले मगर मर्द, हम उन की तरफ़ वहि भेजते थे, पर याद रखने वालों से पूछ लो अगर तुम नहीं जानते। (7)

और हम ने उन के ऐसे जिस्म नहीं बनाए कि वह खाना न खाते हों, और वह न थे हमेशा रहने वाले| (8) 

फिर हम ने उन से अपना वादा सच्चा कर दिया, पर हम ने उन्हें बचा लिया और जिस को हम ने चाहा, और हम ने हद से बढ़ने वालों को हलाक कर दिया। (9) 

तहकीक हम ने तुम्हारी तरफ़ एक किताब नाज़िल की जिस में तुम्हारा जिक है, तो क्या तुम समझते नहीं? (10)

और हम ने हलाक कर दी कितनी ही बस्तियां, कि वह जालिम थीं, और हम ने उन के बाद दूसरे गिरोह (और लोग) पैदा किए| (11)

फिर जब उन्हों ने हमारे अजाब की आहट पाई तो उस वक्त उस से भागने लगे। (12) 

तुम मत भागो और लौट जाओ उसी तरफ़ जहां तुम्हें आसाइश दी गई थी और अपने घरों की तरफ़, ताकि तुम्हारी पूछ गछ हो। (13) 

वह कहने लगे हाए हमारी शामत! बेशक हम ज़ालिम थे| (14) 

 (बराबर) उन की यह पुकार रही, यहां तक कि हम ने उन्हें कटी हुई खेती और बुझी हुई आग (की तरह ढेर कर दिया। (15) 

और हम ने नहीं पैदा किया आस्मान को और ज़मीन को और जो उन के दरमियान में है खेलते हुए (बेकार) | (16) 

अगर हम कोई खिलौना बनाना चाहते तो हम उस को अपने पास से बना लेते, अगर हम करने वाले होते (अगर हमें यह करना होता। (17) 

बल्कि हम फेंक मारते हैं, हक को बातिल पर, पर वह उस का भेजा (कचुम्बर) निकाल देता है तो वह उसी वक्त नाबूद हो जाता है, और तुम्हारे लिए उस (वात) से खराबी है जो तुम बनाते हो। (18) 

और उसी के लिए है जो आस्मानो में और जमीन में है और जो उस के पास हैं वह सरकशी नहीं करते उस की इबादत से और न वह थकते हैं। (19)

और रात दिन तस्बीह (उस की पाकीजगी) बयान करते हैं सुस्ती नहीं करते। (20) 

क्या उन्हों ने जमीन से कोई और माबूद बना लिए हैं कि वह उन्हें (मरने के बाद दोबारा उठा कर खड़ा करेंगे। (21) 

अगर उन दोनों (आस्मान ओ ज़मीन) में और माबूद होते अल्लाह के सिवा तो अलबत्ता (ज़मीन ओ आस्मान) दरहम बरहम हो जाते, पर अर्श अजीम का रब अल्लाह उस से पाक है जो वह बयान करते हैं। (22) 

वह उस से पूछताछ नहीं कर सकते उस के (बारे में) जो वह करता है बल्कि वह पूछताछ किए जाएंगे। (23) 

क्या उन्हों ने उस के सिवा और माबूद बनाए हैं? फ़रमा दें, पेश करो अपनी दलील, यह किताब है जो मेरे साथ हैं, और किताब जो मुझ से पहले नाज़िल हुई हैं, अलबत्ता उन में अक्सर नहीं जानते हक़ को, पर वह रूगर्दानी करते हैं। (24)

और तुम से पहले हम ने कोई रसूल नहीं भेजा मगर हम ने वहि भेजी उस की तरफ़ कि मेरे सिवा कोई माबूद नहीं, पर मेरी इबादत करी| (25) 

उन (मुश्रिकों) ने कहा कि अल्लाह ने एक बेटा बना लिया है, वह उस (तोहमत) से पाक है, बल्कि मुअज्जज़ बन्दे हैं। (26) 

वह बात में उस से सबक़त नहीं करते और वह उस के हुक्म पर अमल करते हैं। (27) 

वह जानता है जो उन के सामने और उन के पीछे है, और वह सिफ़ारिश नहीं करते, मगर जिस के लिए उस की रजा हो, और वह उस के खौफ से डरते रहते हैं। (28)

और उन में से जो कोई यह कहे कि बेशक उस के सिवा मैं माबूद हूँ, पर उस शख्स को हम सजाए जहन्नम देंगे, इसी तरह हम जालिमों को सजा देते हैं। (29) 

क्या काफ़िरों ने नहीं देखा? कि आस्मान और जमीन दोनों मिले हुए थे, पर हम ने दोनों को खोल दिया, और हम ने पानी से हर शै को जिन्दा किया, तो क्या (फिर भी) वह ईमान नहीं लाते? (30) 

और हम ने जमीन में पहाड़ बनाए ताकि वह उन (लोगों) के साथ झुक न पड़े, और हम ने उस में कुशादा रास्ते बनाए ताकि वह राह पाएं। (31) 

और हम ने बनाया आस्मान एक महफूज छत और वह उस की निशानियों से रूगर्दानी करते हैं। (32) 

और वही है जिस ने पैदा किया रात और दिन को, और सूरज और चाँद को, सब (अपने अपने) मदार में तैर रहे हैं। (33) 

और हम ने आप (स) से पहले किसी बशर के लिए हमेशा रहना नहीं (तजवीज) किया, पर अगर आप (स) इन्तिकाल कर गए तो क्या वह हमेशा रहेंगे? (34) 

हर जी (मुतनफ़िस) को मौत (का जाइका) चखना है, और हम तुम्हें बुराई और भलाई से आजमाइश में मुब्तला करेंगे, और हमारी तरफ ही तुम लौट कर आओगे। (35) 

और जब काफ़िर तुम्हें देखते हैं तो तुम्हें सिर्फ एक हँसी मज़ाक़ ठहराते हैं, कि क्या यह है? वह जो तुम्हारे माबूदों को (बुराई से) याद करता है, और वह अल्लाह के ज़िक से मुन्किर हैं। (36) 

इन्सान को पैदा किया गया है जल्द बाज़, अनकरीब मैं तुम्हें अपनी निशानियां दिखाता हूँ, सो तुम जल्दी न करो। (37) 

और वह कहते हैं कि यह वादाए (अजाब) कब (आएगा)? अगर तुम सच्चे हो। (38) 

काश काफ़िर उस घड़ी को जान लेते जब वह न रोक सकेंगे (दोज़ख की) आग को अपने चेहरों से, और न अपनी पीठों से, और न वह मदद किए जाएंगे। (39) 

बल्कि (कियामत) उन पर अचानक आएगी तो वह उन्हें हैरान (बद हवास) कर देगी, पर उन्हें उसे लौटाने की सकत न होगी और न उन्हें मोहलत दी जाएगी। (40) 

और अलबत्ता मजाक उड़ाई गई आप (स) से पहले रसूलों की, पर उन में से जिन्हों ने मज़ाक उड़ाया उन्हें उस (अज़ाब ने) आ घेरा जिस का वह मज़ाक़ उड़ाते थे। (41) 

फ़रमा दे, रहमान (के अजाब) से रात और दिन तुम्हारी कौन निगहबानी करता है? बल्कि वह अपने रब की याद से रूगर्दानी करते हैं। (42) 

क्या हमारे सिवा उन के कुछ और माबूद हैं? जो उन्हें (मसाइब से) बचाते हैं, वह सकत नहीं रखते अपनी मदद की (भी) और न वह हम से (बचाने के लिए) साथी पाएंगे। (43) 

बल्कि हम ने उन को उन के बाप दादा को साज़ ओ सामान दिया यहांतक कि उन की उम्र दराज़ हो गई। पर क्या वह नहीं देखते कि हम जमीन को उस के किनारों से घटाते (मुन्किरों पर तंग करते आ रहे हैं, फिर क्या वह गालिब आने वाले हैं। (44) 

आप (स) फरमा दें इस के सिवा नहीं कि मैं तुम्हें वहि से डराता हूँ, और बहरे पुकार नहीं सुनते जब भी उन्हें डराया जाए। (45) 

और अगर उन्हें तेरे रब के अजाब की एक लपट छुए तो वह ज़रूर कहेंगे हाए हमारी शामत! हम जालिम थे। (46) 

और हम कियामत के दिन मीजाने अदल काइम करेंगे तो किसी शख्स पर कुछ भी जुल्म न किया जाएगा। और अगर (कोई अमल) राई के एक दाने के बराबर भी होगा तो हम उसे ले आएंगे, और काफ़ी हैं हम हिसाब लेने वाले| (47) 

और हम ने मूसा (अ) और हारून (अ) को (हक ओ बातिल में) फ़र्क करने वाली (किताब) और रोशनी अता की, और परहेज़गारों के लिए नसीहत। (48) 

जो लोग अपने रब से बगैर देखे डरते हैं और वह कियामत से खौफ खाते हैं। (49)

और यह बाबरकत नसीहत है (जो) हम ने नाज़िल की है तो क्या तुम उस के मुन्किर हो? (50) 

और तहक़ीक़ अलबत्ता हम ने उस से कब्ल इब्राहीम (अ) को फ़हम सलिम दी थी और हम उस के जानने वाले थे। (51) 

जब उस ने कहा अपने बाप से और अपनी कौम से, क्या हैं यह मूर्तियाँ? जिन के लिए तुम जमे बैठे हो। (52) 

वह बोले हम ने पाया अपने बाप दादा को उन की पूजा करते। (53) 

उस (इब्राहीम अ) ने कहा तहक़ीक़ तुम और तुम्हारे बाप दादा सरीह गुमराही में रहे। (54) 

वह बोले क्या तुम हमारे पास हक़ लाए हो? या दिल लगी करने वालों में से हो। (55) 

उस ने कहा बल्कि तुम्हारा रब मालिक है आस्मानों और जमीन का, वह जिस ने उन्हें पैदा किया और उस बात पर मैं गवाहों में से (गवाह) हूँ। (56)

और अल्लाह की कसम! अलबत्ता मैं तुम्हारे बुतों से ज़रूर चाल चलूंगा, उस के बाद जबकि तुम पीठ फेर कर चले जाओगे। (57) 

पर उस ने उन के एक बड़े के सिवा सब को रेज़ा रेज़ा कर डाला, ताकि वह उस की तरफ रुजूझ करें। (58) 

कहने लगे कौन है जिस ने हमारे माबूदों के साथ यह किया? बेशक वह तो जालिमों में से है। (59) 

बोले हम ने सुना है कि एक जवान इन (बुतों) के बारे में बातें करता है, उस को इब्राहीम (अ) कहा जाता है। (60) 

बोले तो उसे लोगों की आँखों के सामने ले आओ ताकि वह देखें। (61) 

उन्हों ने कहा कि ऐ इब्राहीम (आ)! क्या यह तू ने हमारे माबूदों के साथ किया है? (62) 

उस ने कहा बल्कि यह उन के बड़े ने किया है तो उन (ही) से पूछ लो अगर वह बोलते हैं। (63) 

पर वह सोच में पड़ गए अपने दिलों में, फिर उन्हों ने कहा बेशक तुम ही जालिम हो (नाहक पर हो)। (64) 

फिर वह अपने सरों पर औन्धे किए गए (उन की मत पलट गयी), तू खूब जानता है कि यह नहीं बोलते। (65) 

उस ने कहा क्या तुम फिर अल्लाह के सिवा उन की परस्तिश करते हो? जो न तुम्हें कुछ नफ़ा पहुंचा सकें और न नुक्सान पहुंचा सकें। (66) 

तुफ़ है तुम पर! और (उन) बुतों पर जिन की तुम अल्लाह के सिवा परस्तिश करते हो? क्या तुम फिर भी नहीं समझते? (67) 

वह कहने लगे उसे जला डालो और अपने माबूदों की मदद करो अगर तुम्हें कुछ करना है। (68) 

हम ने हुक्म दिया, ऐ आग! तू इब्राहीम (अ) पर ठंडी हो जा और सलामती। (69) 

और उन्हों ने उस के साथ फ़रेब का इरादा किया तो हम ने उन्हें कर दिया इन्तिहाई जियांकार। (70) 

और हम ने उसे और लूत (अ) को उस सर जमीन की तरफ़ (भेज कर) बचा लिया, जिस में हम ने जहानों के लिए बरकत रखी। (71)

और उस को अता किया इसहाक (अ) (बेटा), और याकूब (अ) पोता, और हम ने उन सब को नेकोकार बनाया। (72)

और हम ने उन्हें पेश्वा बनाया, वह हमारे हुक्म से हिदायत देते थे और हम ने उन की तरफ़ वहि भेजी नेक काम करने की, और नमाज काइम करने, और ज़कात अदा करने की, और वह हमारी ही इबादत करने वाले थे। (73)

और हम ने लूत (अ) को हुक्म दिया (हिम्मत ओ नबुव्वत) और इल्म (दिया) और हम ने उसे उस बस्ती से बचा लिया जो गन्दे काम करती थी, बेशक वह थे बुरे और बदकार लोग। (74)

और हम ने उसे अपनी रहमत में दाखिल किया, बेशक वह नेकोकारों में से है। (75)

और (याद करो) जब उस से कब्ल नूह (अ) ने पुकारा तो हम ने उस की दुआ कुबूल कर ली, फिर हम ने उसे और उस के लोगों को नजात दी बड़ी बेचैनी (सख्ती) से| (76) 

और हम ने उस को मदद दी उन लोगों पर जिन्हों ने हमारी आयतों को झुटलाया, बेशक वह बुरे लोग थे, फिर हम ने उन सब को गर्क कर दिया। (77)

और (याद करो) जब दाऊद (अ) और सुलेमान (अ) एक खेती के बारे में फैसला कर रहे थे जब उस में रात के वक्त एक क़ौम की बकरियां चर गईं, और हम उन के फैसले के वक्त मौजूद थे। (78) 

पर हम ने सुलेमान (अ) को । (सहीह फैसले की) फहम दी और हर एक को हम ने हुक्म (हिक्मत ओ नबुधत) और इल्म दिया, और हम ने पहाड़ों को दाऊद (अ) के साथ मुसख्खर कर दिया, वह तसबीह करते थे और परिन्दे (भी मुसख्खर किए) और करने वाले हम थे। (79)

और हम ने उसे तुम्हारे लिए एक लिबास (बनाने) की कारीगरी सिखाई ताकि वह तुम्हें तुम्हारी लड़ाई से बचाए, पर क्या तुम शुक्र करने वाले हो? (80) 

और हम ने तेज चलने वाली हवा सुलेमान (अ) के लिए (मुसख्खर की) वह उस के हुक्म से उस सरज़मीन में (शाम) की तरफ़ चलती, जिस में हम ने बरकत दी, और हम हर शै को जानने वाले हैं। (81) 

और शैतानों में से (मुसख्खर किए) जो गोता लगाते थे उस के लिए, और उस के सिवा और काम (भी) करते थे, और हम उन को संभालते थे। (82) 

और अय्यूब (अ) को (याद करो) जब उस ने अपने रब को पुकारा कि मुझे तकलीफ़ पहुंची है और तू रहम करने वालों में सब से बड़ा रह्म करने वाला है। (83) 

तो हम ने कुबूल कर ली उस की (दुआ), पर उसे जो तकलीफ़ थी हम ने खोल दी (दूर कर दी) और हम ने उसे उस के घर वाले दिए, और उन के साथ उन जैसे (और भी) रहमत फ़रमा कर अपने पास से, और इबादत करने वालों के लिए नसीहत। (84)

और इस्माईल (अ), और इदरीस (अ), और जुलकिफ़्ल (अ), यह सब सब्र करने वालों में से थे। (85)

और हम ने उन्हें अपनी रहमत में दाखिल किया, बेशक वह नेकोकारों में से थे| (86) 

और (याद करो) जब मछली वाले (यूनुस अ अपनी क़ौम से) गुस्से में भर कर चल दिए, पर उस ने गुमान किया कि हम हरगिज़ उस पर तंगी (गिरफ्त) न करेंगे (जब मछली निगल गई तो उस ने अन्धेरों में पुकारा कि (ऐ अल्लाह) तेरे सिवा कोई माबूद नहीं, तू पाक है, बेशक मैं जालिमों (कुसूरवारों) में से था। (87) 

फिर हम ने उस की (दुआ) कुबूल कर ली और हम ने उसे गम से नजात दी, और इस तरह हम मोमिनों को नजात दिया करते हैं। (88) 

और (याद करो) जब जकरिया (अ) ने अपने रब को पुकारा ऐ मेरे रब! मुझे अकेला (लावारिस) न छोड़ और तू (सब से) बेहतर वारिस है। (89) 

फिर हम ने उस की (दुआ) कुबूल कर ली और हम ने उसे अता किया यहिया (अ) और हम ने उस के लिए उस की बीवी को दुरुस्त (औलाद के काबिल) कर दिया बेशक वह सब नेक कामों में जल्दी करते थे, वह हमें उम्मीद ओ खौफ़ से पुकारते थे| और वह हमारे सामने आजिज़ी करने वाले थे। (90) 

(और याद करो मरयम अ को) जिस ने अपनी इफ्फ़त की हिफाजत की, फिर हम ने उस में अपनी रूह फूंक दी, जहानों के लिए निशानी बनाया। (91) 

बेशक यह है तुम्हारी उम्मत (मिल्लत) यकता उम्मत, और मैं तुम्हारा रब हूँ, पर मेरी इबादत करो। (92) 

और उन्हों ने अपना काम (दीन) बाहम टुकड़े टुकड़े कर लिया, सब हमारी तरफ़ रुजूझ करने वाले (लौटने वाले) है। (93) 

पर जो कोई नेक काम करे और वह ईमान वाला हो तो अकारत नहीं (जाएगी) उस की कोशिश, और बेशक हम उस के लिख लेने वाले हैं। (94) 

उस बस्ती पर (दुनिया में लौट कर आना) हराम है, जिसे हम ने हलाक कर दिया कि वह लौट कर नहीं आएंगे। (95) 

यहां तक कि जब याजूज ओ माजूज खोल दिए जाएंगे, और वह हर टीले से दौड़ते आएंगे। (96) 

और सच्चा वादा करीब आजाएगा तो अचानक मुन्किरों की आँखें फटी की फटी रह जाएंगी, हाए हमारी शामत! तहकीक़ हम इस से गफलत में थे, बल्कि हम ज़ालिम थे। (97) 

बेशक तुम और वह जिन की तुम परस्तिश करते हो अल्लाह के उस में दाखिल होने वाले हो। (98) 

अगर यह माबूद होते तो उस में दाखिल न होते, और वह सब उस में सदा रहेंगे| (99) 

उन के लिए वहां चीख ओ पुकार है, और वह उस में कुछ न सुन सकेंगे| (100) 

बेशक जिन लोगों के लिए हमारी तरफ़ से पहले (ही) भलाई ठहर चुकी वह लोग उस से दूर रखे जाएंगे। (101) 

वह न सुनेंगे उस की आहट (भी) और उन के दिल जो चाहेंगे वह उस (आराम ओ राहत) में हमेशा रहेंगे। (102) 

उन्हें गमगीन न करेगी बड़ी घबराहट, और फ़रिश्ते उन्हें लेने आएंगे, यह है (वह) दिन जिस का तुम से वादा किया गया था। (103) 

जिस दिन हम आस्मान लपेट देंगे, जैसे तहरीर के कागज का तूमार लपेटा जाता है, जैसे हम ने पहली बार पैदाइश की थी हम उसे फिर लौटा देंगे, यह वादा हम पर (हमारे ज़िम्मे) है, बेशक हम पूरा करने वाले हैं। (104) 

और तहक़ीक़ हम ने ज़बूर में नसीहत के बाद लिखा कि जमीन के वारिस हमारे नेक बन्दे होंगे। (105) 

बेशक इस में इबादत गुज़ार लोगों के लिए (बशारत) एक बड़ी ख़बर है। (106) 

और हम ने नहीं भेजा आप (स) को मगर तमाम जहानों के लिए रहमत। (107) 

आप (स) फ़रमा दें इस के सिवा नहीं कि मेरी तरफ़ वहि की गई है कि बस तुम्हारा माबूद माबूद यकता है, पर क्या तुम हुक्म बरदार हो? (108) 

फिर अगर वह रूगर्दानी करें तो कह दो कि मैं ने तुम्हें ख़बरदार कर दिया है बराबरी पर (यकसां तौर से) और मैं नहीं जानता जो तुम से वादा किया गया है वह करीब है या दूर? (109) 

बेशक वह जानता है पुकार कर कही हुई बात को (भी) और वह (भी) जानता है जो तुम छुपाते हो। (110) 

और मैं नहीं जानता शायद (अजाब में ताखीर) तुम्हारे लिए आजमाइश हो और एक मुद्दत तक फाइदा पहुंचाना हो। (111) 

नबी (स) ने कहा ऐ मेरे रब! तू हक के साथ फैसला फ़रमा, और हमारा रब निहायत मेहरबान है, उस से मदद तलब की जाती है (उन बातों) पर जो तुम बयान करते (बनाते) हो। (112)

***

21. THE PROPHETS

(al-Anbiya)

In the name of God, the Gracious, the Merciful.

1. Mankind’s reckoning has drawn near, but they turn away heedlessly.


2. No fresh reminder comes to them from their Lord, but they listen to it playfully.


3. Their hearts distracted, the wrongdoers confer secretly, “Is this anything but a mortal like you? Will you take to sorcery, with open-eyes?”


4. He said, “My Lord knows what is said in the heaven and the earth; and He is the Hearer, the Knower.”


5. And they said, “A jumble of dreams,” and, “He made it up,” and, “He is a poet,” “let him bring us a sign, like those sent to the ancients.”


6. None of the towns We destroyed before them had believed. Will they, then, believe?


7. We did not send before you except men, whom We inspired. Ask the people of knowledge, if you do not know.


8. And We did not make them mere bodies that ate no food, nor were they immortal.


9. Then We fulfilled Our promise to them, and We saved them together with whomever We willed, and We destroyed the extravagant.


10. We have sent down to you a Book, containing your message. Do you not understand?


11. How many a guilty town have We crushed, and established thereafter another people?


12. Then, when they sensed Our might, they started running away from it.


13. Do not run, but come back to your luxuries, and to your homes, that you may be questioned.


14. They said, “Woe to us. We were unfair.”


15. This continued to be their cry, until We made them silent ashes.


16. We did not create the sky and the earth and what is between them for amusement.


17. If We wanted amusement, We could have found it within Us, were We to do so.


18. In fact, We hurl the truth against falsehood, and it crushes it, so it vanishes. Woe unto you, for what you describe.


19. To Him belongs everyone in the heavens and the earth. Those near Him are not too proud to worship Him, nor do they waver.


20. They praise night and day, without ever tiring.


21. Or have they taken to themselves gods from the earth who resurrect?


22. If there were in them gods other than God, they would have gone to ruin. So glory be to God, Lord of the Throne, beyond what they allege.


23. He will not be questioned about what He does, but they will be questioned.


24. Or have they taken, besides Him, other gods? Say, “Bring your proof. This is a message for those with me, and a message of those before me.” But most of them do not know the truth, so they turn away.


25. We never sent a messenger before you without inspiring him that: “There is no god but I, so worship Me.”


26. And they say, “The Most Merciful has taken to himself a son.” Be He glorified; they are but honored servants.


27. They never speak before He has spoken, and they only act on His command.


28. He knows what is before them, and what is behind them; and they do not intercede except for him whom He approves; and they tremble in awe of Him.


29. And whoever of them says, “I am a god besides Him,” We will reward him with Hell. Thus We reward the wrongdoers.


30. Do the disbelievers not see that the heavens and the earth were one mass, and We tore them apart? And We made from water every living thing. Will they not believe?


31. And We placed on earth stabilizers, lest it sways with them, and We placed therein signposts and passages, that they may be guided.


32. And We made the sky a protected ceiling; yet they turn away from its wonders.


33. It is He who created the night and the day, and the sun and the moon; each floating in an orbit.


34. We did not grant immortality to any human being before you. Should you die, are they then the immortal?


35. Every soul will taste death. We burden you with adversity and prosperity—a test. And to Us you will be returned.


36. When those who disbelieve see you, they treat you only with ridicule, “Is this the one who mentions your gods?” And they reject the mention of the Merciful.


37. The human being was created of haste. I will show you My signs, so do not seek to rush Me.


38. And they say, “When will this promise come true, if you are truthful?”


39. If those who disbelieve only knew, when they cannot keep the fire off their faces and off their backs, and they will not be helped.


40. In fact, it will come upon them suddenly, and bewilder them. They will not be able to repel it, and they will not be reprieved.


41. Messengers before you were also ridiculed, but those who jeered were surrounded by what they had ridiculed.


42. Say, “Who guards you against the Merciful by night and by day?” But they turn away from the mention of their Lord.


43. Or do they have gods who can defend them against Us? They cannot help themselves, nor will they be protected from Us.


44. We have given these enjoyments, and their ancestors, until time grew long upon them. Do they not see how We gradually reduce the land from its extremities? Are they then the victors?


45. Say, “I am warning you through inspiration.” But the deaf cannot hear the call when they are being warned.


46. And when a breath of your Lord’s punishment touches them, they say, “Woe to us, we were truly wicked.”


47. We will set up the scales of justice for the Day of Resurrection, so that no soul will suffer the least injustice. And even if it be the weight of a mustard-seed, We will bring it up. Sufficient are We as Reckoners.


48. We gave Moses and Aaron the Criterion, and illumination, and a reminder for the righteous.


49. Those who fear their Lord in private, and are apprehensive of the Hour.


50. This too is a blessed message that We have revealed. Are you going to deny it?


51. We gave Abraham his integrity formerly, and We knew him well.


52. When he said to his father and his people, “What are these statues to which you are devoted?”


53. They said, “We found our parents worshiping them.”


54. He said, “You and your parents are in evident error.”


55. They said, “Are you telling us the truth, or are you just playing?”


56. He said, “Your Lord is the Lord of the heavens and the earth, the One who created them, and I bear witness to that.


57. “By God, I will have a plan for your statues after you have gone away.”


58. So he reduced them into pieces, except for their biggest, that they may return to it.


59. They said, “Who did this to our gods? He is certainly one of the wrongdoers.”


60. They said, “We heard a youth mentioning them. He is called Abraham.”


61. They said, “Bring him before the eyes of the people, so that they may witness.”


62. They said, “Are you the one who did this to our gods, O Abraham?”


63. He said, “No. It was this biggest of them that did it. Ask them, if they can speak.”


64. Then they turned to one another, and said, “You yourselves are the wrongdoers.”


65. But they reverted to their old ideas: “You certainly know that these do not speak.”


66. He said, “Do you worship, instead of God, what can neither benefit you in anything, nor harm you?


67. Fie on you, and on what you worship instead of God. Do you not understand?”


68. They said, “Burn him and support your gods, if you are going to act.”


69. We said, “O fire, be coolness and safety upon Abraham.”


70. They planned to harm him, but We made them the worst losers.


71. And We delivered him, and Lot, to the land that We blessed for all people.


72. And We granted him Isaac and Jacob as a gift; and each We made righteous.


73. And We made them leaders, guiding by Our command; and We inspired them to do good works, and to observe the prayer, and to give out charity. They were devoted servants to Us.


74. And Lot—We gave him judgment and knowledge, and We delivered him from the town that practiced the abominations. They were wicked and perverted people.


75. And We admitted him into Our mercy; for He was one of the righteous.


76. And Noah, when he called before. So We answered him, and delivered him and his family from the great disaster.


77. And We supported him against the people who rejected Our signs. They were an evil people, so We drowned them all.


78. And David and Solomon, when they gave judgment in the case of the field, when some people’s sheep wandered therein by night; and We were witnesses to their judgment.


79. And so We made Solomon understand it, and to each We gave wisdom and knowledge. And We subjected the mountains along with David to sing Our praises, and the birds as well—surely We did.


80. And We taught him the making of shields for you, to protect you from your violence. Are you, then, appreciative?


81. And to Solomon the stormy wind, blowing at His command towards the land that We have blessed. We are aware of everything.


82. And of the devils were some that dived for him, and performed other, lesser tasks. But We kept them restrained.


83. And Job, when he cried out to his Lord, “Great harm has afflicted me, and you are the Most Merciful of the merciful.”


84. So We answered him, lifted his suffering, and restored his family to him, and their like with them—a mercy from Us, and a reminder for the worshipers.


85. And Ishmael, and Enoch, and Ezekiel; each was one of the steadfast.


86. And We admitted them into Our mercy. They were among the righteous.


87. And Jonah, when he stormed out in fury, thinking We had no power over him. But then He cried out in the darkness, “There is no god but You! Glory to You! I was one of the wrongdoers!”


88. So We answered him, and saved him from the affliction. Thus We save the faithful.


89. And Zechariah, when he called out to his Lord, “My Lord, do not leave me alone, even though you are the Best of heirs.”


90. So We answered him, and gave him John. And We cured his wife for him. They used to vie in doing righteous deeds, and used to call on Us in love and awe, and they used to humble themselves to us.


91. And she who guarded her virginity. We breathed into her of Our spirit, and made her and her son a sign to the world.


92. This community of yours is one community, and I am your Lord, so worship Me.


93. But they splintered themselves into factions. They will all return to Us.


94. Whoever does righteous deeds, and is a believer, his effort will not be denied. We are writing it down for him.


95. There is a ban on the town that We had destroyed—that they will not return.


96. Until, when Gog and Magog are let loose, and they swarm down from every mound.


97. The promise of truth has drawn near. The eyes of those who disbelieved will stare in horror: “Woe to us. We were oblivious to this. In fact, we were wrongdoers.”


98. You and what you worship besides God are fuel for Hell. You will descend into it.


99. Had these been gods, they would not have descended into it. All will abide in it.


100. In it they will wail. In it they will not hear.


101. As for those who deserved goodness from Us, they will be kept away from it.


102. They will not hear its hissing, and they will forever abide in what their hearts desire.


103. The Supreme Fear will not worry them, and the angels will receive them: “This is your Day which you were promised.”


104. On the Day when We fold the heaven, like the folding of a book. Just as We began the first creation, We will repeat it—a promise binding on Us. We will act.


105. We have written in the Psalms, after the Reminder, that the earth will be inherited by My righteous servants.


106. Indeed, in this is a message for people who worship.


107. We have not sent you except as mercy to mankind.


108. Say, “It is revealed to me that your God is One God. Are you going to submit?”


109. But if they turn away, say, “I have informed you sufficiently. Although I do not know whether what you are promised is near or far.”


110. He knows what is said openly, and He knows what you conceal.


111. “And I do not know whether it is perhaps a trial for you, and an enjoyment for a while.”


112. He said, “My Lord, judge with justice.” And, “Our Lord is the Gracious, Whose help is sought against what you allege.”  

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