Quran-E-Pak

सूरा-अस-साफ़्फ़ात | Surah 37

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सूरा-अस-साफ़्फ़ात

| मक्का कालीन | आयत 182| 

सफ़ बांधने वाले

सूरा-अस-साफ़्फ़ात | Surah 37

अल्लाह के नाम से जो बहुत मेहरबान, रहम करने वाला है।

क़सम है परा जमा कर सफ बान्धने वाले (फ़रिश्तों) की| (1) 

फिर झिड़क कर डांटने वालों की| (2) 

फिर कुरआन तिलावत करने वालों की। (3) 

बेशक तुम्हारा माबूद एक ही है। (4) 

परवरदिगार है आस्मानों का और जमीन का और जो उन दोनों के दरमियान है, और परवरदिगार है मरिकों (मुकामाते तुलूअ) का। (5) 

बेशक हम ने मुजैयन किया आस्माने दुनिया को सितारों की जीनत से| (6)

और हर सरकश शैतान से महफूज़ किया। (7)

और मलाए आला (ऊपर की मजलिस) की तरफ़ कान नहीं लगा सकते, हर तरफ़ से (अंगारे) मारे जाते हैं। (8) 

भगाने को और उन के लिए दाइमी अजाब है। (9) 

सिवाए उस के जो उचक कर ले भागा तो उस के पीछे एक दहकता हुआ अंगारा लगा। (10) 

पर आप (स) उन से पूछः क्या उन का पैदा करना ज़ियादा मुश्किल है या जो (मखलूक) हम ने पैदा की? बेशक हम ने उन्हें चिपकती हुई मिट्टी (गारे) से पैदा किया। (11) 

बल्कि आप ने (उन की हालत पर) तअज्जुब किया और वह मजाक उड़ाते हैं। (12) 

और जब उन्हें नसीहत की जाए तो वह नसीहत कुबूल नहीं करते। (13)

और जब कोई निशानी देखते हैं तो वह हँसी में उड़ा देते हैं। (14) 

और उन्हों ने कहा यह तो सिर्फ खुला जादू है। (15)

क्या जब हम मर गए और हम मिट्टी और हड्डियां हो गए? क्या हम फिर उठाए जाएंगे? (16) 

क्या हमारे पहले बाप दादा (भी)? (17) 

आप (स) फ़रमा दें हाँ! और तुम जलील ओ खार होगे| (18) 

पर इस के सिवा नहीं कि वह एक ललकार होगी, पर नागहां वह देखने लगेंगे। (19)

और वह कहेंगे, हाए हमारी ख़राबी! यह बदले का दिन है। (20) 

यह फैसले का दिन है, वह जिस को तुम झुटलाते थे। (21) 

तुम जमा करो जालिमों और उन के साथियों को और जिस की वह परस्तिश करते थे। (22) 

अल्लाह के सिवाए| पर तुम उन को जहन्नम का रास्ता दिखाओ। (23)

और उन को ठहराओ, बेशक उन से पुर्सिश होगी। (24) 

तुम्हें क्या हुआ? तुम एक दूसरे की मदद नहीं करते। (25) 

बल्कि वह आज सर झुकाए फ़रमांबरदार (अपने आप को पकड़वाते) हैं। (26)

और उन में से एक दूसरे की तरफ़ बाहम सवाल करते हुए रुख करेगा। (27) 

वह कहेंगे बेशक तुम हम पर दाएं तरफ़ से (बड़े जोर से) आते थे| (28) 

वह कहेंगे (नहीं) बल्कि तुम ईमान लाने वाले न थे| (29) 

और हमारा तुम पर कोई जोर न था, बल्कि तुम एक सरकश कोम थे। (30) 

पर हमपर हमारे रब की बात साबित हो गई, बेशक हम अलबत्ता (मज़ा) चखने वाले हैं। (31) 

पर हम ने तुम्हें बहकाया, बेशक हम (खुद) गुमराह थे। (32) 

पर बेशक वह उस दिन अजाब में (भी) शरीक रहेंगे। (33) 

बेशक हम इसी तरह करते हैं मुजिमों के साथ| (34) 

बेशक जब उन से कहा जाता था कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं (तो) वह तकब्बुर करते थे। (35)

और वह कहते हैं: क्या हम अपने माबूदों को छोड दें? एक शायर दीवाने की खातिर। (36) 

बल्कि वह (स) हक के साथ आए हैं और वह (स) तस्दीक करते हैं रसूलों की| (37) 

बेशक तुम दर्दनाक अजाब ज़रूर चखने वाले हो। (38) 

और तुम्हें बदला न दिया जाएगा मगर (उस के मुताबिक़) जो तुम करते थे। (39) 

(हाँ) मगर अल्लाह के खास किए हुए (चुने हुए) बन्दे| (40) 

उन के लिए रिजक मालूम (मुकर्रर) है। (41) 

(यानी) मेवे, और वह एजाज़ वाले होंगे। (42) 

नेमत के बागात में| (43) 

तखतों पर आमने सामने। (44) 

दौरा होगा उन के आगे बहते हुए (साफ) मशरूब के जाम का। (45) 

सफ़ेद रंग का, पीने वालों के लिए लज्जत (देने वाला)। (46) 

न उस में दर्दसर होगा और न वह उस से बहकी बहकी बातें करेंगे। (47)

और उन के पास होंगी नीची निगाहों वालियां, बड़ी बड़ी आँखों वालियां| (48) 

गोया वह अंडे हैं पोशीदा रखे हुए। (49) 

फिर उन में से एक दूसरे की तरफ़ बाहम सवाल करते हुए रुख करेगा। (50) 

उन में से एक कहने वाला कहेगाः बेशक दुनिया में) मेरा एक हमनशीन था। (51) 

वह कहा करता था क्या तू (क़ियामत को) सच मानने वालों में से है? (52) 

क्या जब हम मर गए और हम हो गए मिट्टी और हड्डियां, क्या हमें बदला दिया जाएगा? (53) 

वह कहेगा क्या तुम झांकने वाले हो (दोज़खी को झांक कर देख सकते हो?) (54) 

तो वह झाँकेगा तो उसे देखेगा दोज़ख के दरमियान में| (55) 

वह कहेगा अल्लाह की कसम! करीब था कि तू मुझे हलाक कर डाले| (56) 

और अगर मेरे रब की नेमत न होती तो मैं ज़रूर (अज़ाब के लिए) हाजिर किए जाने वालों में से होता। (57) 

तो क्या अब हम मरने वाले नहीं हैं? (58) 

सिवाए हमारी पहली मौत (जिस से हम दो चार हो चुके) और न हम अज़ाब दिए जाने वालों में से होंगे? (59) 

बेशक यही है अजीम कामयाबी| (60) 

पर इस जैसी नेमत के लिए चाहिए कि ज़रूर अमल करें अमल करने वाले। (61) 

क्या यह बेहतर जियाफ्त है या थोहर का दरख्त? (62) 

बेशक हम ने उस को एक फ़ितना बनाया है ज़ालिमों के लिए। (63) 

बेशक वह एक दरख्त है जहन्नम की जड़ (गहराई) में निकलता है। (64) 

उस का खोशा, गोया कि वह शैतानों के सर (साँपों के फन) हैं। (65) 

बेशक वह उस से खाएंगे, सो उस से पेट भरेंगे| (66) 

फिर बेशक उस (खाने) पर उन के लिए खौलता हुआ पानी (पीप) मिला मिला कर (दिया जाएगा। (67) 

फिर उन की वापसी जहन्नम की तरफ़ होगी। (68) 

बेशक उन्हों ने अपने बाप दादा को गुमराह पाया था। (69) 

सो वह उन के नक्शे कदम पर दौड़ते जाते थे। (70)

और तहक़ीक़ उन से पहले गुमराह हुए थे (उन के) अगलों में से अक्सर (71) 

तहक़ीक़ हम ने उन में डराने वाले (रसूल) भेजे थे। (72) 

सो आप (स) देखें कैसा हुआ उन का अन्जाम जिन्हें डराया गया था? (73) 

मगर अल्लाह के खास किए हुए बन्दे (बन्दगाने खास का अन्जाम कितना अच्छा हुआ)। (74) 

और तहकीक़ नूह (अ) ने हमें पुकारा, सो हम खूब दुआ कुबूल करने वाले हैं। (75) 

और हम ने उसे और उस के घर वालों को बड़ी मुसीबत से नजात दी। (76) 

और हम ने किया उस की औलाद को बाकी रहने वाली| (77) 

और हम ने उस का जिक्रे खैर) बाद में आने वालों में छोड़ा। (78) 

नूह (अ) पर सलाम हो सारे जहानों में। (79) 

बेशक हम इसी तरह नेकोकारों को जज़ा देते हैं। (80) 

बेशक वह हमारे मोमिन बन्दों में से थे। (81) 

फिर हम ने दूसरों को गर्क कर दिया। (82)

और बेशक इब्राहीम (अ) उसी के तरीके पर चलने वालों में से थे| (83) 

जब वह अपने रब के पास आए साफ दिल के साथ| (84) 

(याद करो) जब उस ने अपने बाप और अपनी क़ौम से कहाः तुम किस (वाहियात) चीज़ की परस्तिश करते हो? (85) 

क्या तुम अल्लाह के सिवा झूट मूट के माबूद चाहते हो? (86) 

सो तमाम जहानों के परवरदिगार के बारे में तुम्हारा क्या गुमान है? (87) 

फिर उस ने सितारों को एक नज़र देखा। (88) 

तो उस ने कहा बेशक मैं बीमार हूँ। (89) 

पर वह लोग पीठ फेर कर उस से फिर गए। (90) 

फिर वह उन के माबूदों में छुप कर घुस गया, फिर वह (बतौरे तमसखर) कहने लगाः क्या तुम नहीं खाते? (91) 

क्या हुआ तुम्हें? तमु बोलते नहीं? (92) 

फिर वह पूरी कुव्वत से मारता हुआ उन पर जा पड़ा। (93) 

फिर वह (बुत परस्त) मुतवज्जुह हुए उसकी तरफ दौड़ते हुए (आए)। (94) 

उस ने फ़रमाया क्या तुम (उनकी) परस्तिश करते हो? जो तुम खुद तराशते हो। (95) 

हालांकि अल्लाह ने तुम्हें पैदा किया, और जो तुम करते (बनाते) हो। (96) 

उन्हों ने (एक दूसरे को) कहाः उस के लिए एक इमारत (आतिश खाना) बनाओ, फिर उसे आग में डाल दो। (97) 

फिर उन्हों ने उस पर दाओ करना चाहा तो हम ने उन्हें जेर कर दिया। (98)

और इब्राहीम (अ) ने कहाः मैं अपने रब की तरफ़ जाने वाला हूँ, अनक़रीब वह मुझे राह दिखाएगा। (99) 

ऐ मेरे रब! मुझे अता फरमा (नेक औलाद) सालेहीन में से| (100) 

पर हम ने उसे एक बुर्दबार लड़के की बशारत दी। (101) 

फिर जब वह उस के साथ दौडने (की उम्र को) पहुंचा तो इब्राहीम (अ) ने कहा कि ऐ मेरे बेटे! बेशक मैं ख्वाब में देखता हूँ कि मैं तुझे जुबह कर रहा हूँ। अब तू देख कि तेरी क्या राए है? उस ने कहा ऐ मेरे अब्बाजान! आप को जो हुक्म किया जाता है वह करें, आप मुझे जल्द ही पाएंगे इंशाअल्लाह (अगर अल्लाह ने चाहा) सबर करने वालों में से| (102) 

पर जब दोनों ने हुक्मे इलाही को मान लिया, बाप ने बेटे को पेशानी के बल लिटाया। (103) 

और हम ने उस को पुकारा कि ऐ इब्राहीम (अ)! (104) 

तहकीक तू ने ख्वाब को सच कर दिखाया, बेशक हम नेकोकारों को इसी तरह जज़ा दिया करते हैं। (105) 

बेशक यह खुली आजमाइश (बड़ा इम्तिहान था)। (106) 

और हम ने एक बड़ा जबीहा (कुरबानी को) उस का फ़िदया दिया। (107) 

और हम ने उसका ज़िक्रे खैर बाद में आने वालों में बाकी रखा| (108) 

सलाम हो इब्राहीम (अ) पर| (109) 

इसी तरह हम नेकोकारों को जज़ा दिया करते हैं। (110) 

बेशक वह हमारे मोमिन बन्दों में से था। (111) 

और हम ने उसे बशारत दी इसहाक (अ) की (कि वह) एक नबी सालेहीन में से होगा। (112) 

और हम ने उस पर बरकत नाज़िल की और इसहाक (अ) पर, और उन दोनों की औलाद में नेकोकार (भी हैं) और अपनी जान पर सरीह जुल्म करने वाले (भी)। (113) 

और तहकीक़ हम ने मूसा (अ) और हारून (अ) पर एहसान किया। (114) 

और हम ने उन दोनों को और उन की कौम को बड़े गम (फ़िरऔन के मज़ालिम) से नजात दी। (115) 

और हम ने उन की मदद की, तो वही गालिब रहे। (116)

और हम ने उन दोनों को वाजेह किताब दी। (117)

और उन दोनों को सीधे रास्ते की हिदायत दी। (118)

और हम ने उन दोनों का ज़िक्रे खैर बाद में आने वालों में बाकी रखा। (119) 

सलाम हो मूसा (अ) और हारून (अ) पर। (120) 

बेशक हम इसी तरह नेकोकारों को जज़ा देते हैं। (121) 

बेशक वह हमारे मोमिन बन्दों में से थे। (122)

और बेशक इल्यास (अ) रसूलों में से थे| (123) 

(याद करो) जब उस ने अपनी कौम से कहा क्या तुम (अल्लाह से) नहीं डरते? (124) 

क्या तुम बअल (बुत) को पुकारते हो? और तुम सब से बेहतर पैदा करने वाले को छोड़ते हो। (125) 

(यानी) अल्लाह को (जो) तुम्हारा भी रब है और तुम्हारे पहले बाप दादा का (भी) रब है। (126) 

पर उन्हों ने उसे झुटलाया तो बेशक वह ज़रूर हाज़िर किए जाएंगे (पकड़े जाएंगे)। (127) 

अल्लाह के मुखलिस (ख़ास बन्दों) के सिवा। (128)

और हम ने उस का ज़िक्रे खैर बाकी रखा बाद में आने वालों में| (129) 

सलाम हो इलयास (अ) पर। (130) 

बेशक हम इसी तरह नेकोकारों को जज़ा दिया करते हैं। (131) 

बेशक वह हमारे मोमिन बन्दों में से थे| (132) 

और बेशक लूत (अ) रसूलों में से थे। (133) 

(याद करो) जब हम ने नजात दी उसे ओर उस के सब घर वालों को। (134) 

पीछे रह जाने वालों में से एक बुढ़िया के सिवा। (135) 

फिर हम ने और सब को हलाक किया। (136)

और बेशक तुम सुबह होते और रात में उन पर (उन की बस्तियों से) गुज़रते हो। (137) 

तो क्या तुम अक्ल से काम नहीं लेते? (138)

और बेशक यूनुस (अ) अलबत्ता रसूलों में से थे| (139) 

जब वह भाग कर भरी हुई कश्ती (के पास) गए। (140) 

तो उन्हों ने कुरआ डाला, सो वह (कश्ती से) धकेले गए। (141) 

फिर उन्हें मछली ने निगल लिया और वह (अपने आप को) मलामत कर रहे थे। (142) 

फिर अगर वह तसबीह करने वालों में से न होते। (143) 

तो वह उस के पेट में कियामत के दिन तक रहते। (144) 

फिर हम ने उन्हें चटयल मैदान में फेंक दिया और वह बीमार थे। (145)

और हम ने उगाया उस पर एक बेलदार दरख्त। (146)

और हम ने उसे एक लाख या उस से ज़ियादा लोगों की तरफ़ भेजा। (147) 

सो वह लोग ईमान लाए और हम ने उन्हें एक मुद्दत तक के लिए फाइदा उठाने दिया। (148) 

पर आप (स) उन से पूछे क्या तेरे रब के लिए बेटियां हैं और उन के लिए बेटे? (149) 

क्या हम ने फरिश्तों को औरत जात पैदा किया है? और वह देख रहे थे? (150) 

याद रखो, बेशक वह अपनी बुहतान तराजी से कहते हैं। (151) 

(कि) अल्लाह साहिबे औलाद है, और वह बेशक झूटे हैं। (152) 

क्या उस ने बेटियों को बेटों पर पसंद किया? (153) 

तुम्हें क्या हो गया है? तुम कैसा फ़सला करते हो? (154) 

तो क्या तुम गौर नहीं करते? (155) 

क्या तुम्हारे पास कोई खुली सनद है? (156) 

तो अपनी वह किताब ले आओ अगर तुम सच्चे हो। (157) 

और उन्हों ने उस के और जिन्नात के दरमियान एक रिश्ता ठहराया, और तहकीक जान लिया जिन्नात ने के बेशक वह (अजाब में) हाजिर (गिरफ्तार किए जाएंगे। (158) 

अल्लाह उस से पाक है जो वह बयान करते हैं। (159) 

सिवाए अल्लाह के चुने हुए बन्दे| (160) 

तो बेशक तुम और वह जिन की तुम परस्तिश करते हो। (161) 

तुम नहीं बहका सकते उस (अल्लाह) के खिलाफ़ (किसी को)। (162) 

उस के सिवा जो जहन्नम में जाने वाला है। (163) 

और (फ़रिश्तों ने कहा, हम में से कोई भी ऐसा नहीं जिस का एक मुअय्यन दर्जा न हो। (164) 

और बेशक हम ही सफ़ बस्ता रहने वाले हैं। (165) 

और बेशक हम ही तसबीह करने वाले हैं। (166) 

और बेशक वह (कुफ़फ़ारे मक्का) कहा करते थे। (167) 

अगर हमारे पास होती पहले लोगों की कोई (किताबे) नसीहत। (168) 

तो हम ज़रूर अल्लाह के मुंतखिब बन्दों में से होते। (169) 

फिर उन्हों ने उस का इन्कार किया तो वह अनक़रीब (उस का अन्जाम) जान लेंगे। (170)

और हमारा वादा अपने बन्दों (यानी) रसूलों के लिए पहले (ही) सादिर हो चुका है। (171) 

बेशक वही फतह मन्द होंगे। (172) 

और बेशक अलबत्ता हमारा लशकर ही गालिब रहेगा। (173) 

पर आप (स) एक वक्त तक (थोड़ा अर्सा) उन से एराज़ करें। (174)

और उन्हें देखते रहें, पर अनक़रीब वह (अपना अन्जाम) देख लेंगे। (175) 

तो क्या वह हमारे अजाब के लिए जल्दी कर रहे हैं? (176) 

तो जब वह उन के मैदान में नाज़िल होगा तो उन की सुबह बुरी होगी जिन्हें डराया जा चुका है। (177) 

और आप (स) एक मुद्दत तक (थोड़ा अर्सा) उन से एराज करें। (178)

और देखते रहें, पर अनक़रीब वह (अपना अन्जाम) देख लेंगे। (179) 

पाक है तुम्हारा रब इज्जत वाला रख, उस से जो वह बयान करते हैं। (180) 

और सलाम हो रसूलों पर। (181) 

और तमाम तारीफें अल्लाह के लिए जो तमाम जहानों का रब है। (182)

***

37. THE ALIGNERS

(as-Saffat)

In the name of God, the Gracious, the Merciful.

1. By the aligners aligning.

2. And the drivers driving.

3. And the reciters of the Reminder.

4. Your God is indeed One.

5. Lord of the heavens and the earth, and everything between them; and Lord of the Easts.

6. We have adorned the lower heaven with the beauty of the planets.

7. And guarded it against every defiant devil.

8. They cannot eavesdrop on the Supernal Elite, for they get bombarded from every side.

9. Repelled—they will have a lingering torment.

10. Except for him who snatches a fragment— he gets pursued by a piercing projectile.

11. Inquire of them, “Are they more difficult to create, or the others We created?” We created them from sticky clay.

12. But you wonder, and they ridicule.

13. And when reminded, they pay no attention.

14. And when they see a sign, they ridicule.

15. And they say, “This is nothing but plain magic.

16. When we have died and become dust and bones, shall we be resurrected?

17. And our ancestors of old?”

18. Say, “Yes indeed, and you will be totally subdued.”

19. It will be a single nudge, and they will be staring.

20. They will say, “Woe to us. This is the Day of Judgment.”

21. “This is the Day of Separation, which you used to deny.

22. Gather those who did wrong, and their mates, and what they used to worship.

23. Besides God, and lead them to the way to Hell.

24. And stop them. They are to be questioned.”

25. What is the matter with you? Why do you not help one another?

26. In fact, on that Day, they will be submissive.

27. They will come to one another, questioning one another.

28. They will say, “You used to come at us from the right.”

29. They will say, “You yourselves were notbelievers.

30. We had no authority over you. You yourselves were rebellious people.

31. The Word of our Lord has been realized against us. We are tasting it.

32. We seduced you. We were seducers.”

33. On that Day, they will share in the punishment.

34. Thus We deal with the sinners.

35. When it was said to them, “There is no god except God,” they grew arrogant.

36. And said, “Are we to abandon our gods for a mad poet?”

37. In fact, he came with the truth, and he confirmed the messengers.

38. Most assuredly, you will taste the painful punishment.

39. And you will be repaid only for what you used to do.

40. Except for God’s sincere servants.

41. For them is a known provision.

42. Fruits; and they will be honored.

43. In the Gardens of Bliss.

44. On furnishings, facing one another.

45. They will be offered a cup of pure drink.

46. White; a delight to those who drink.

47. Never polluted, and never intoxicating.

48. With them will be bashful women with lovely eyes.

49. As if they were closely guarded pearls.

50. Then they will approach one another, questioning.

51. One of them will say, “I used to have a friend.

52. Who used to say, “Are you of those who believe?

53. That after we die and become dust and bones, we will be called to account?”

54. He will say, “Will you have a look?”

55. He will look, and will see him in the pit of Hell.

56. He will say, “By God, you almost ruined me.

57. Were it not for the grace of my Lord, I would have been among the arraigned.”

58. “We will not die.

59. Except for our first death, and we will not be punished.”

60. This is the supreme triumph.

61. For the like of this let the workers work.

62. Is this a better hospitality, or the tree of Bitterness?

63. We made it an ordeal for the unjust.

64. It is a tree that grows from the bottom of Hell.

65. Its fruits are like the devils’ heads.

66. They will eat from it, and fill their bellies with it.

67. Then, on top of it, they will have a brew of boiling liquid.

68. Then their return will be to the Blaze.

69. They had found their parents astray.

70. And rushed along in their footsteps.

71. And most of the ancients before them went astray.

72. Even though We sent messengers to warn them.

73. So observe the end of those who were warned.

74. Except for the sincere servants of God.

75. And Noah called out to Us, and We are the Best of responders.

76. And We saved him and his family from the great calamity.

77. And We made his descendants the survivors.

78. And We left mention of him among those who succeeded.

79. Peace be upon Noah among all people.

80. We thus reward the righteous.

81. He was one of Our believing servants.

82. Then We drowned the others.

83. Of his kind was Abraham.

84. When he came to his Lord with a sound heart.

85. He said to his father and his people, “What are you worshiping?

86. Is it falsified gods, instead of God, that you want?

87. So what is your opinion about the Lord of the Worlds?”

88. Then he took a glance at the stars.

89. And said, “I am sick.”

90. But they turned their backs on him, and went away.

91. Then he turned to their gods, and said, “will you not eat?

92. What is it with you, that you do not speak?”

93. Then he turned on them, striking with his right hand.

94. And they came running towards him.

95. He said, “Do you worship what you carve?

96. When God created you, and what you manufacture?”

97. They said, “Build a pyre for him, and throw him into the furnace.”

98. They wished him ill, but We made them the losers.

99. He said, “I am going towards my Lord, and He will guide me.”

100. “My Lord, give me one of the righteous.”

101. So We gave him good news of a clement boy.

102. Then, when he was old enough to accompany him, he said, “O My son, I see in a dream that I am sacrificing you; see what you think.” He said, “O my Father, do as you are commanded; you will find me, God willing, one of the steadfast.”

103. Then, when they had submitted, and he put his forehead down.

104. We called out to him, “O Abraham!

105. You have fulfilled the vision.” Thus We reward the doers of good.

106. This was certainly an evident test.

107. And We redeemed him with a great sacrifice.

108. And We left with him for later generations.

109. Peace be upon Abraham.

110. Thus We reward the doers of good.

111. He was one of Our believing servants.

112. And We gave him good news of Isaac, a prophet, one of the righteous.

113. And We blessed him, and Isaac. But among their descendants are some who are righteous, and some who are clearly unjust to themselves.

114. And We blessed Moses and Aaron.

115. And We delivered them and their people from the terrible disaster.

116. And We supported them, and so they were the victors.

117. And We gave them the clarifying Scripture.

118. And We guided them upon the straight path.

119. And We left with them for later generations.

120. Peace be upon Moses and Aaron.

121. Thus We reward the righteous.

122. They were of Our believing servants.

123. Also Elijah was one of the messengers.

124. He said to his people, “Do you not fear?

125. Do you call on Baal, and forsake the Best of Creators?

126. God is your Lord, and the Lord of your ancestors.”

127. But they called him a liar, and thus they will be brought forward.

128. Except for God’s sincere servants.

129. And We left with him for later generations.

130. Peace be upon the House of Elijah.

131. Thus We reward the virtuous.

132. He was one of Our believing servants.

133. And Lot was one of the messengers.

134. We saved him and his family, all of them.

135. Except for an old woman who lagged behind.

136. Then We annihilated the others.

137. You pass by them in the morning.

138. And at night. Do you not understand?

139. And Jonah was one of the messengers.

140. When he fled to the laden boat.

141. He gambled and lost.

142. Then the fish swallowed him, and he was to blame.

143. Had he not been one of those who praised.

144. He would have stayed in its belly until the Day they are raised.

145. Then We threw him into the wilderness, and he was sick.

146. And We made a gourd tree grow over him.

147. Then We sent him to a hundred thousand, or more.

148. And they believed, so We gave them enjoyment for a while.

149. Ask them, “Are the daughters for your Lord, while for them the sons?”

150. Or did We create the angels females, as they witnessed?”

151. No indeed! It is one of their lies when they say,

152. “God has begotten.” They are indeed lying.

153. So He preferred girls over boys?

154. What is the matter with you? How do you judge?

155. Will you not reflect?

156. Or do you have some clear proof?

157. Then bring your book, if you are telling the truth.

158. And they invented a relationship between Him and the jinn. But the jinn know that they will be arraigned.

159. God be glorified, far above what they allege.

160. Except for God’s sincere servants.

161. Surely, you and what you serve.

162. Cannot seduce away from Him.

163. Except for he who will be roasting in Hell.

164. “There is not one of us but has an assigned position.

165. And we are the arrangers.

166. And we are the glorifiers.”

167. Even though they used to say.

168. “Had we received advice from the ancients,

169. We would have been God's faithful servants.”

170. But they rejected it, so they will find out.

171. Our Word has already gone out to our servant messengers.

172. It is they who will be supported.

173. And Our troops will be the victors.

174. So disregard them for a while.

175. And watch them—they will soon see.

176. Are they seeking to hasten Our punishment?

177. When it descends into their yard, miserable will be the morning of those forewarned.

178. So avoid them for a while.

179. And watch—they will soon see.

180. Exalted be your Lord, the Lord of Glory, beyond their allegations.

181. And peace be upon the messengers.

182. And praise be to God, the Lord of the Worlds.

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