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सूरा-अल-अहक़ाफ़ | Surah 46

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सूरा-अल-अहक़ाफ़

| मक्का कालीन | आयत  35| 

रेगिस्तान

सूरा-अल-अहक़ाफ़ | Surah 46
अल्लाह के नाम से जो बहुत मेहरबान, रहम करने वाला है।

किताब का नाज़िल करना गालिब, हिक्मत वाले अल्लाह (की तरफ़) से है। (2) 

हम ने नहीं पैदा किया है आस्मानों और जमीन को और जो उन दोनों के दरमियान है मगर हक के साथ और एक मुकर्ररा मीआद (के लिए) और जिन लोगों ने कुफ़ किया जिस से वह डराए जाते हैं (उस से) रूगर्दानी करने वाले हैं। (3) 

आप (स) फ़रमा दें भला तुम देखो (सोचो) तो जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो मुझे दिखाओ कि उन्हों ने जमीन से क्या पैदा किया? या उन के लिए आस्मानों में कुछ साझा है? ले आओ मेरे पास इस से पहले की कोई किताब या कोई इल्मी आसार (निशानात) अगर तुम सच्चे हो। (4)

और उस से बड़ा गुमराह कौन है? जो अल्लाह के सिवा उस को पुकारता है जो उसे जवाब न देगा कियामत के दिन तक, और वह उन के पुकारने से (भी) बेखबर है। (5) 

और जब लोग (मैदाने हश्र) में जमा किए जाएंगे वह उन के दुश्मन होंगे और वह उन की इबादत के मुकिर होंगे। (6) 

और जब उन पर हमारी वाजेह आयात पढ़ी जाती हैं तो वह कहते हैं जिन्हों ने इनकार किया हक के बारे में जब कि वह उन के पास आ गयाः यह खुला जादू है। (7) 

क्या वह कहते हैं कि उस ने इसे खुद बना लिया है, आप (स) फरमा दें: अगर मैं ने इसे खुद बना लिया है तो तुम मुझे अल्लाह से (बचाने का) कुछ भी इखतियार नहीं रखते, वह खूब जानता है जो तुम इस (के बारे) में बातें बनाते हो, वह काफ़ी है इस का गवाह मेरे और तुम्हारे दरमियान, और वह है बख्शने वाला, रह्म करने वाला। (8) 

आप (स) फ़रमा दें कि मैं रसूलों में नया नहीं हूँ, और मैं नहीं जानता कि मेरे साथ और तुम्हारे साथ क्या किया जाएगा, मैं सिर्फ उस की पैरवी करता हूँ जो मेरी तरफ वहि किया जाता है, और मैं सिर्फ साफ़ साफ़ डर सुनाने वाला हूँ। (9) 

आप (स) फ़रमा देंः भला तुम देखो तो अगर (यह कुरआन) अल्लाह के पास से है, और तुम ने इस का इन्कार किया, और गवाही दी एक गवाह ने बनी इस्राईल में से उस जैसी किताब पर, और वह ईमान ले आया, और तुम ने तकब्बुर किया (तुम अड़े रहे), बेशक अल्लाह हिदायत नहीं देता ज़ालिम लोगों को| (10) 

और काफिरों ने मोमिनों के लिए (के बारे में) कहाः अगर (यह) बेहतर होता तो वह इस की तरफ़ हम पर पहल न करते, और जब उन्हों ने इस से हिदायत न पाई तो अब कहेंगेः यह पुराना झूट है। (11)

और इस से पहले मूसा (अ) की किताब (तौरेत) थी रहनुमा और रहमत, और है यह किताब (उस की) तस्दीक करने वाली अरबी ज़बान में ताकि जालिमों को डराए, और खुशखबरी है नेकोकारों के लिए। (12) 

बेशक जिन लोगों ने कहा कि हमारा रब अल्लाह है, फिर वह (उस पर) काइम रहे, तो कोई खौफ़ नहीं उन पर और न वह गमगीन होंगे। (13) 

यही लोग अहले जन्नत है, हमेशा उस में रहेंगे, (यह) उन की जज़ा है जो वह अमल करते थे। (14) 

और हम ने इन्सान को माँ बाप के साथ हुस्ने सुलूक का हुक्म दिया, उस की माँ उसे तकलीफ़ के साथ (पेट में) उठाए रही और उस ने। उसे तकलीफ़ के साथ जना, और उस का हमल और उस का दूध छुड़ाना 30 महीने में (हुआ) यहां तक कि वह अपनी जवानी को पहुंचा और हुआ चालीस (40) 

साल का तो उस ने अर्ज की: ऐ मेरे रब! मुझे तौफीक दे कि मैं तेरी नेमत का शुक्र करूँ जो तू ने मुझ पर इनआम फ़रमाई और मेरे माँ बाप पर, और यह कि मैं नेक अमल करूँ जिसे तू पसंद करे, और मेरे लिए मेरी औलाद में इस्लाह कर दे (नेक बना दे), बेशक मैं ने तेरी तरफ़ (तेरे हुजूर) तौबा की और बेशक मैं फ़रमांबरदारों में से हूँ। (15) 

यही वह लोग हैं जिन के बेहतरीन अमल हम कुबूल करते हैं जो उन्हों ने किए और हम उन की बुराइयों से दरगुज़र करते हैं, (यह) अहले जन्नत में से (होंगे), सच्चा वादा है जो उन्हें वादा दिया जाता था। (16) 

और जिस ने अपने माँ बाप के लिए कहाः तुम पर तुफ़! क्या तुम मुझे यह खबर देते हो कि मैं (रोजे हश्र) निकाला जाऊंगा, हालांकि बहुत से गिरोह गुज़र चुके हैं मुझ से पहले, और वह दोनों अल्लाह से फ़र्याद करते हैं (और उस को कहते हैं): तेरा बुरा हो, तू इमान ले आ, बेशक अल्लाह का वादा सच्चा है, तो वह कहता है कि यह तो सिर्फ पहलों (अगलों) की कहानियां हैं। (17) 

यही लोग हैं जिन पर अजाब की बात साबित हो गई (उन) उम्मतों में जो इन से कब्ल गुज़र चुकी जिन्नात में से और इन्सानों में से, बेशक वह खसारा पाने वालों में से थे| (18)

और हर एक के लिए दरजे हैं, उस (के मुताबिक़) जो उन्हों ने किया ताकि वह उन को उन के आमाल का पूरा (बदला) दे, और उन पर जुल्म न किया जाएगा। (19) 

और जिस दिन लाए जाएंगे काफ़िर आग के सामने (उन से कहा जाएगा): तुम अपनी नेमतें अपनी दुनिया की जिन्दगी में हासिल कर चुके हो और उन का फाइदा (भी) उठा चुके हो, पर आज तुम्हें रुस्वाई के अज़ाब का बदला दिया जाएगा, इस लिए कि तुम ज़मीन में नाहक तकब्बुर करते थे, और इस लिए कि तुम नाफ़रमानियां करते थे| (20)

और कौमे आद के भाई (हूद) को याद कर, जब उस ने अपनी कौम को (सर ज़मीने) अहक़ाफ़ में डराया, और गुजर चुके हैं डराने वाले (नबी) उस से पहले और उस के बाद (भी) कि तुम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करो, बेशक मैं डरता हूँ तुम पर एक बड़े दिन के अजाब से। (21) 

वह बोलेः क्या तू हमारे पास इस लिए आया कि हमें हमारे माबूदों से फेर दे, पर तू जो कुछ हम से वादा करता है हम पर ले आ अगर तू सच्चों में से है (सच्चा है)। (22) 

उस ने कहाः इस के सिवा नहीं कि इल्म अल्लाह के पास है और मैं जिस (पैगाम) के साथ भेजा गया हूँ वह तुम्हें पहुंचाता हूँ, लेकिन मैं देखता हूँ कि तुम लोग जहालत करते हो। (23) 

फिर जब उन्हों ने उस को देखा कि एक अब उन की वादियों की तरफ़ चला आ रहा है, तो वह बोलेः यह हम पर बारिश बरसाने वाला बादल है, (नहीं) बल्कि यह वह है जिस की तुम जल्दी करते थे, एक आन्धी जिस में दर्दनाक अज़ाब है। (24) 

वह तहस नहस कर देगी हर शै को अपने रब के हुक्म से, पर (उन का यह हाल होगया कि) उन के मकानों के सिवा कुछ न दिखाई देता था, इसी तरह हम मुहिम लोगों को बदला दिया करते हैं। (25) 

और हम ने उन्हें उन (बातों) में इस कद्र कुदरत दी थी कि तुम्हें उस पर उस क़द्र कुदरत नहीं दी, और हम ने उन को दिए कान और आँखें और दिल, पर न उन के कान और न उन की आँखें और न उन के दिल उन के कुछ भी काम आए, जब वह इन्कार करते थे अल्लाह की आयात का, और उन को उस (अजाब) ने घेर लिया जिस का वह मज़ाक़ उड़ाते थे। (26) 

और तहकीक हम ने हलाक कर दी तुम्हारे इर्द गिर्द की बस्तियां, और हम ने बार बार अपनी निशानियां दिखाई ताकि वह लौट आएं। (27) 

फिर क्यों न उन की मदद की उन्हों ने जिन्हें बना लिया था (अल्लाह का) कुर्ब हासिल करने के लिए अल्लाह के सिवा माबूद, बल्कि वह उन से गाइब हो गए, और यह उन का बुहतान था जो वह इतिरा करते (घड़ते थे)। (28) 

और जब हम आप (स) की तरफ़ जिन्नात की एक जमाअत फेर लाए, वह कुरआन सुनते थे, पर वह आप (स) के पास हाज़िर हुए तो उन्हों ने (एक दूसरे को) कहाः चुप रहो, फिर जब पढ़ना तमाम हुआ तो वह अपनी कौम की तरफ़ डर सुनाते हुए लौटे। (29) 

उन्हों ने कहा कि ऐ हमारी कौम! हम ने एक किताब सुनी है जो नाज़िल की गई है मूसा (अ) के बाद, अपने से पहले की तसदीक करने वाली, वह रहनुमाई करने वाली (दीने) हक की तरफ़ और राहे रास्त की तरफ़| (30) 

ऐ हमारी क़ौम! अल्लाह की तरफ़ बुलाने वाले (की बात) कुबूल कर लो और उस पर ईमान ले आओ, (अल्लाह) तुम्हें तुम्हारे गुनाह बख्श देगा और वह तुम्हें दर्दनाक अज़ाब से पनाह देगा। (31)

और जो अल्लाह की तरफ़ बुलाने वाले की बात को कुबूल न करेगा, वह जमीन में (अल्लाह को) आजिज़ करने वाला नहीं, और उस (अल्लाह) के सिवा उस के लिए कोई हिमायती नहीं, यही लोग खुली गुमराही में हैं। (32) 

क्या उन्हों ने नहीं देखा? कि अल्लाह ही है जिस ने आस्मानों को और जमीन को पैदा किया, और वह उन के पैदा करने से नहीं थका, वह उस पर कादिर है कि मुदी को जिन्दा करे, हाँ! बेशक वह हर शै पर कुदरत रखने वाला है। (33) 

और जिस दिन काफ़िर आग (जहन्नम) के सामने पेश किए जाएंगे, (पूछा जाएगा) क्या यह हक़ (अरे वाक़ई) नहीं? वह कहेंगेः । हमारे रब की कसम, हाँ (यह हक़ है), अल्लाह तआला फरमाएगाः पर तुम अजाब चखो जिस का तुम इन्कार करते थे| (34) 

पर आप (स) सबर करें जैसे ऊलूलअज्म (बाहिम्मत) रसूलों ने सबर किया, और उन के लिए (अजाब की) जल्दी न करें, वह जिस दिन देखेंगे (वह अजाब) जिस का उन से वादा किया जाता है (उन्हें ऐसा मालूम होगा कि) गोया वह दुनिया में सिर्फ दिन की एक घड़ी ठहरे थे, (पैगाम) पहुंचाना है, पर हलाक न होंगे मगर नाफरमान लोग| (35)

***

46. THE DUNES

(al-Ahqaf)

In the name of God, the Gracious, the Merciful.

1. Ha, Meem.


2. The sending down of the Scripture is from God, the Honorable, the Wise.


3. We did not create the heavens and the earth and what lies between them except with reason, and for a finite period. But  the blasphemers continue to ignore the warnings they receive.


4. Say, “Have you considered those you worship instead of God? Show me which portion of the earth they have created. Or do they own a share of the heavens? Bring me a scripture prior to this one, or some trace of knowledge, if you are truthful.”


5. Who is more wrong than him who invokes, besides God, those who will not answer him until the Day of Resurrection, and are heedless of their prayers?


6. And when humanity is gathered, they will be enemies to them, and will renounce their worship of them.


7. When Our revelations are recited to them, plain and clear, those who disbelieve say of the truth when it has come to them, “This is obviously magic.”


8. Or do they say, “He invented it himself”? Say, “If I have invented it, there is nothing you can do to protect me from God. He knows well what you are engaged in. He is sufficient witness between me and you. He is the Forgiver, the Merciful.”


9. Say, “I am not different from the other messengers; and I do not know what will be done with me, or with you. I only follow what is inspired in me, and I am only a clear warner.”


10. Say, “Have you considered? What if it is from God and you disbelieve in it? A witness from the Children of Israel testified to its like, and has believed, while you turned arrogant. God does not guide the unjust people.”


11. Those who disbelieve say to those who believe, “If it were anything good, they would not have preceded us to it.” And since they were not guided by it, they will say, “This is an ancient lie.”


12. And before it was the Book of Moses, a model and a mercy. And this is a confirming Book, in the Arabic language, to warn those who do wrong—and good news for the doers of good.


13. Those who say, “Our Lord is God,” then lead a righteous life—they have nothing to fear, nor shall they grieve.


14. These are the inhabitants of Paradise, where they will dwell forever—a reward for what they used to do.


15. We have enjoined upon man kindness to his parents. His mother carried him with difficulty, and delivered him with difficulty. His bearing and weaning takes thirty months. Until, when he has attained his maturity, and has reached forty years, he says, “Lord, enable me to appreciate the blessings You have bestowed upon me and upon my parents, and to act with righteousness, pleasing You. And improve my children for me. I have sincerely repented to You, and I am of those who have surrendered.”


16. Those are they from whom We accept the best of their deeds, and We overlook their misdeeds, among the dwellers of Paradise—the promise of truth which they are promised. 


17. As for him who says to his parents, “Enough of you! Are you promising me that I will be raised up, when generations have passed away before me?” While they cry for God’s help, “Woe to you! Believe! The promise of God is true!” But he says, “These are nothing but tales of the ancients.”


18. Those are they upon whom the sentence is justified, among the communities that have passed away before them, of jinn and humans. They are truly losers.


19. There are degrees for everyone, according to what they have done, and He will repay them for their works in full, and they will not be wronged.


20. On the Day when the faithless will be paraded before the Fire: “You have squandered your good in your worldly life, and you took pleasure in them. So today you are being repaid with the torment of shame, because of your unjust arrogance on earth, and because you used to sin.”


21. And mention the brother of Aad, as he warned his people at the dunes. Warnings have passed away before him, and after him: “Worship none but God; I fear for you the punishment of a tremendous Day.”


22. They said, “Did you come to us to divert us from our gods? Then bring us what you threaten us with, if you are being truthful.”


23. He said, “The knowledge is only with God, and I inform you of what I was sent with; but I see you are an ignorant people.”


24. Then, when they saw a cloud approaching their valley, they said, “This is a cloud that will bring us rain.” “In fact, it is what you were impatient for: a wind in which is grievous suffering.”


25. It will destroy everything by the command of its Lord. And when the morning came upon them, there was nothing to be seen except their dwellings. Thus We requite the guilty people.


26. We had empowered them in the same way as We empowered you; and We gave them the hearing, and the sight, and the minds. But neither their hearing, nor their sight, nor their minds availed them in any way. That is because they disregarded the revelations of God; and so they became surrounded by what they used to ridicule.


27. We have destroyed many townships around you, and diversified the signs, so that they may return.


28. Why then did the idols, whom they worshiped as means of nearness to God, not help them? In fact, they abandoned them. It was their lie, a fabrication of their own making.


29. Recall when We dispatched towards you a number of jinn, to listen to the Quran. When they came in its presence, they said, “Pay attention!” Then, when it was concluded, they rushed to their people, warning them.


30. They said, “O our people, we have heard a Scripture, sent down after Moses, confirming what came before it. It guides to the truth, and to a straight path.


31. O our people! Answer the caller to God, and believe in Him; and He will forgive you your sins, and will save you from a painful punishment.”


32. He who does not answer the caller to God will not escape on earth, and has no protectors besides Him. Those are in obvious error.


33. Do they not realize that God, who created the heavens and the earth, and was never tired by creating them, is Able to revive the dead? Yes indeed; He is Capable of everything.


34. On the Day when those who disbelieved are presented to the Fire: “Is this not real?” They will say, “Yes, indeed, by our Lord.” He will say, “Then taste the suffering for having disbelieved.”


35. So be patient, as the messengers with resolve were patient, and do not be hasty regarding them. On the Day when they witness what they are promised, it will seem as if they had lasted only for an hour of a day. A proclamation: Will any be destroyed except the sinful people?   

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